दरभंगा। मिथिला में आम महोत्सव चल रहा है। प्रदर्शनी में जो आम हैं, सब मिथिला इलाके के आम हैं। आम को लेकर मिथिला का इलाका शुरू से ही समृद्ध रहा है। उत्पादन में भी, प्रयोग में भी। मिथिला के आम की चर्चा चलती है, तो एक फिरंगी की याद आती है। पूरी दुनिया घूमने, 500 अलग—अलग वनस्पतियों की खोज करने के बाद भारत आया वह फिरंगी। आया तो फिर भारत में रहकर आम की दुनिया में रम गया। बिहार के दरभंगा में रहते हुए न उसने न सिर्फ आम की दर्जनों नयी वेरायटी विकसित की बल्कि आम पर एक मुकम्मल किताब भी लिखी। वह किताब छप न सकी, लेकिन वह मशहूर फिरंगी अध्येता और आम का खास चित्तेरा सवा सौ साल बाद भी दरभंगा और आसपास के लोगों के मानस में जीवंतता से रचा—बसा हुआ है। वह फिरंगी विद्वान कोई और नहीं जर्मन वनस्पतिशास्त्री चार्ल्स मैरिस थे। वही मैरिस, जो वनस्पतिशास्त्र के क्षेत्र में अपने काम की वजह से लिनन सोसायटी के फेलो बने। जिन्हें अपने काम की वजह से विक्टोरिया मेडल आफ आनर भी मिला था। जो ब्रिटेन की महारानी के गार्डन के प्रमुख बन गये थे।आम के उस खास फिरंगी विद्वान का नाम था चार्ल्स मैरिस। मूल रूप से यार्कशायर के रहनेवाले। पिता मोची थे पर अपने लगन से मैरिस दुनिया के मशहूर वनस्पतिशास्त्री बन गये। मैरिस 1882 में भारत पहुंचे। 1882 से 1898 तक दरभंगा में रहे। यानी उस समय के दरभंगा नरेश महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह की मृत्यु तक। महाराजा की मृत्यु के बाद मैरिस ग्वालियर चले गये। वहां राजा के यहां चीफ गार्डन सुपरिटेंडेंट बन गये। दरभंगा में रहते हुए मैरिस ने महाराजा के साथ मिलकर आनंदबाग की प्लानिंग की। उस बाग में चंदन, रूद्राक्ष जैसे पेड़ों की कई वेरायटियां लगी, सैकड़ों किस्म के फूल, यह सब तो वे किये ही लेकिन इन सबके साथ मैरिस का एक अहम काम रहा आम के वेरायटी को विकसित करना। मैरिस ने महाराजा के नाम पर लक्ष्मेश्वर भोग विकसित किया, फिर शाह पसंद, सुंदर पसंद, दुर्गा भोज जैसी करीब 40 अलग—अलग खास वेरायटियां। दरभंगा राज में मैरिस सुपरिटेंडेंट के तौर पर जुड़े थे। मैरिस ने यह सब करते हुए भारत में आम की दुनिया पर एक और खास काम किया था। एक किताब तैयार की थी। उसका नाम था— कल्टिवेटेड मैंगोज आफ इंडिया। वह किताब छप न सकी। इस किताब में मैरिस ने भारत के सौ से अधिक आमों के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी, सुंदर रेखाचित्रों के साथ। जानकार बताते हैं कि वह किताब अब भी लंदन के रॉयल बोटनिकल गार्डन के आर्काइव में सुरक्षित है।
पता नहीं मैरिस के उस किताब में किन 100 वेरायटियों की चर्चा होगी। वह देखने, पढ़ने का सौभाग्य आज तक नहीं मिल सका है, पर आज सरिसब में जो मिथिला आम महोत्सव चल रहा है, वहां 139 प्रकार के आम प्रदर्शित किये गये हैं। आम के नाम को एक बार सुन ही लिजिए। नाम सुन के भी तो मुंह को पनिया सकते हैं। मन ही मन प्रसन्न हो सकते हैं ।
फिलहाल एक नजर मिथिला आम महोत्सव में प्रदर्शित आम के नाम : १. लक्ष्मीश्वर भोग २. महाराजा पंसद ३. शाह पसंद ४. कर्पुरिया ५. जय बहार ६. बाबा आम ७. गोलैया ८. मोहर ठाकुर ९ . लाल मालदह १०. मोर ठाकुर ११ . बंका १२. कंचन १३. छपरा कंचन १४. लाल कंचन १५. ककरिया १६. मेहता भदैया १७. दरभंगी भदैया १८. असनी १ ९ . तमंचा २०. नरोई २१ . मोइउद्दीन खरबुजा २२. परी २३. लडुबा २४. जानकी भोग २५ . दुर्गाभोग २६. कृष्णभोग २७. सौब्जा २८. मोहनभोग २ ९ . सिनुरीया ३०. चौरबी ३१ . सहरबा ३२. श्रीभागलड्डुबा ३३. बरबरीया ३४. बथुआ ३५. राढि ३६ . राधाभोग ३७. मनधनझाक बम्बइ ३८. ककड़ीया ३ ९ . सेरहा ४०. कलकतिया ४१ . गुलाबखास ४२. बुआसिनभोग ४३. गौरीभोग ४४. कुण्डल ४५. डोमा बम्बई ४६. नारायण भोग ४७. श्यामाभोग ४८. खोपरबा ४ ९ . गोपालभोग ५० . उजरी बम्बई ( खरड़ख ) ५१. बेलहा ५२. सजमनिया ५३. सौदा बम्बई ५४ . करैलबा ५५ . जलमरै ५६. पहाड़पुरी सिनुरीया ५७. धुमनाहा ५८. कौआ पहाड़ी ६०. खिरबा ६१. केरबी ६२. रोहणीया ६३. हीरादागी बड़की ६४ . हीरादागी छोटकी ६५ . पाहुनपदौना ६६. जर्दा ६७. मुफर्ररह ६८. करीअम्बा ६ ९ . गुलाबपाल ७०. साहपशीन ७१. सुपड़ीया ७२. सपेता ७३. सौरीया ७४ . महमूद ७५. महमूद केरबा ७६. केरबा ७७. सकड़चुनियां ७८. केतकी ७ ९ . फैजली ८०. लतराहा ८१ . लालमोहन ८२. रघुनाथभोग ८३. सुन्दरप्रसाद ८४ . नेजरा बम्बई ८५. चौरिया ८६. जहूर ८७. नकूब्बी ८८. जड़मरई ८९ . सोनहा