नई दिल्ली। 10 मार्च यानी कल पांच राज्यों के चुनावी परिणाम आने वाले हैं। अतीत को आंककर उत्तराखंड और गोवा में गड़बड़ झाले की आशंका है। छोटी विधानसभा वाले दोनों राज्य दिलचस्प हैं। तोड़जोड़ के महारथियों ने देहरादून और पणजी में डेरा जमा रखा है। आशंका घनी है कि ईवीएम का नतीजा जिनके हक़ में आए वो सरकार न बना पाए। अतीत में गोवा में यह हो चुका है और उत्तराखंड में दलबदल से हरीश रावत की सरकार औंधे मुंह गिर चुकी है।
परिवर्तन के लिहाज से पंजाब महत्वपूर्ण है। सबकी नज़र दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर टिकी है। क्या हास्य कवि भगवंत मान की ही लॉटरी लगेगी या चन्नी जैसे और किसी के भाग्य से छीका टूट गिरेगा। हाल ही में चंडीगढ़ म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में बहुमत के बाद भी आप का मेयर नहीं बन पाया। इसे देखकर खिलाड़ियों की आस बनी हुई है।
बीजेपी को शर्मिला के राज्य मणिपुर में थंपिंग बहुमत की आस है। तोड़फोड़ के बिना पूर्वोत्तर राज्य में सरकार बन जाए यह लोकतंत्र के लिए किस्मत की बात है।
इन लावा दुआ राज्यों के चुनाव आंकलन से ज्यादा महत्वपूर्ण विशाल उत्तर प्रदेश को पढ़ पाना है। सात चरणों में हुए इस राज्य चुनाव को देखकर लगता है कि अलग अलग मुद्दों और चरित्र में बंटे यूपी का छोटे राज्य में बटवारा होना जरूरी है।
लोगों की सांसे हैं अटकी, कल कैसा होगा चुनावी परिणाम
सवाल उठता है कि क्या वास्तव में उत्तर प्रदेश भाजपा के हाथ से खिसक रहा है? क्या वास्तव में मोदी मैजिक काम नहीं कर पाया? क्या मोदी-योगी की जोड़ी कोई कमाल नहीं दिखा पाई? क्या वाकई इस चुनावी दौड़ में बुलडोजर से आगे निकल गई साइकिल?