Opinion : राम का भारत और भारत का राम

प्रियदर्शी रंजन

त्रेतायुगीन उस राम से तो सभी अवगत हैं जिस राम में संघर्ष है, त्याग है, तपस्या है, करुणा है , दया है, क्षमा है, सत्य है, न्याय है, सदाचार है, साहस है, धैर्य है, नेतृत्व है. राम एक आदर्श पुत्र हैं ,भाई हैं, पति हैं, राजा हैं, और मित्र हैं. राम संसार की सत्ता हैं, राम ही सर्वोपरि हैं. राम में लोकतंत्र है, राम में समाजवाद है, राम में मानव साथ प्रकृति के हर स्वरूप कल्याण है. लेकिन त्रेता युग के बाद वाले राम की महिमा भी काम नहीं है. त्रेता युग के बाद राम मानव रूप में भले सदृश्य नहीं रहे परन्तु उनका उनकी महिमा जागृत रही है.
दरअसल, युग, शताब्दी और दशक भले ही बदल रहे हों लेकिन राम के अवतार के बाद के कालखंड में अखंड भारतवर्ष में सम्पूर्ण ऊर्जा का संचार शाश्वत तौर पर राम नाम से हो रहा है. महात्मा बुद्ध ने जातक कथा में स्वयं को पूर्वजन्म में दशरथ का पुत्र और लक्ष्मण का भाई राम बताया है. बुद्ध ने संकेतों में ही सही राम को प्रेरक माना है. बौद्ध देश थाईलैंड में आज भी बौद्ध रामायण का मंचन होता है. कबीर भी राम की ऊर्जा से प्रेरित थे. कबीर के राम निर्गुण हैं इसके बाद भी वे राम को अणु-अणु में बेस हुए परमब्रह्म मानते हैं. जबकि तुलसीदास के राम सगुण के राम हैं. असल में राम इस देश के विविधताओं के बीच भी अखंडता के सम्पूर्ण सूत्र हैं. भारतवर्ष को समझना राम को समझना है और राम को समझना भारत को समझना है. राम ने भारतवर्ष के सभ्यता, संस्कृति और भूगोल पर हस्ताक्षर हैं. जब कभी भी यह देश भटकाव की स्थिति में होता है राम इसके उद्धारक बन कर प्रस्तुत होते हैं. और जब-जब राम को भारतवर्ष के जनमानस ने बिसरने की भूल की तब-तब भारत का मूल संकट में रहा है.
उल्लेखनीय है कि भारत में एक ऐसा भी दौर आया जब धर्म (सनातन) सुषुप्त अवस्था में चला गया था. विदेशी शासक रावण की तरह भारत पर अधर्म के सहारे शासन कर रहे थे. उनकी राक्षस रूपी सेना से धर्म के अनुयाई त्रस्त थे. ऐसे में धर्म के अनुयाई दुष्टों के दमन हेतु अवतार की प्रतीक्षा में थे. अवतार तो नहीं हुआ लेकिन “राम का नाम” ही दुष्ट दमन का अस्त्र बन गया. जिसका आरम्भ गोस्वामी तुलसीदास ने किया. सुषुप्त पड़े भारत के पुरुषार्थ और सनातन को गोस्वामी तुलसीदास के राम चरित्र मानस के राम ने उद्वेलित कर दिया. राम के नाम से धर्म के अनुआई आंदोलित होने लगे. गोस्वामी तुलसीदास ने जिस काल में यह अलख जगाया उस काल में भारत पर मुगलों का शासन था. मुग़लकाल के बाद अंग्रेजों के कालखंड में भी राम नाम स्वतंत्रता संग्राम में सबसे बड़ा हथियार था. स्वतंत्रता के लिए मर-मिटने वाले हमारे महापुरुषों का सबसे बड़ा उद्घोष ‘राम’ नाम ही था. राम का नाम लेकर संग्रामी अपना सर्वस्व राष्ट्र को अर्पित कर देते थे. महात्मा गाँधी के भी आदर्श राम ही थे. आज भी भारतीय सेना में ललकार पैदा करने का काम राम नाम से से होता है. जय श्री राम के उद्घोष से हमारी सेना दुश्मन सेना पर टूट पड़ती है.
निःसंकोच यह कहा जा सकता है की गोस्वामी तुलसीदास ने “राम नाम” से भारत के पुनर्जागरण के जिस युग का आरम्भ किया था अब वह प्रचंड हो चुका है. आधुनिक भारत के राष्ट्रवादी नेतृत्वकर्ताओं ने राम नाम के पुनर्जागरण वाले अलख को असीम क्षितिज प्रदान किया है. आदि और वर्तमान के साथ ही राम भारत के भविष्य हैं इसका आकार स्पष्ट हो चुका है. आज के युवाओं में राम के आदर्शों पर चलने कि स्वेच्छा यह शुभ संकेत दे रहा है कि राम भारत के आदि होने के साथ ही वर्तमान और भविष्य भी हैं. भारत वर्ष की व्यवस्था अब राम राज्य के आधार पर आगे बढ़ेगी इसका भी संकेत स्पष्ट है. यूं तो भारत के संविधान में राम राज्य के अनुरूप पहले भी कई अनुच्छेदों में प्रावधान किया गया है लेकिन अब यह और व्यापक हो सकता है. राम नाम की यह गूंज यह आभाष दिला रहा है की भारत में राम राज्य के और भी गुणात्मक परिवर्तन करने वाला है.
असल में भारत का कण-कण में राम समाहित है और राम में भारत का कण-कण समाहित है. यह सौ प्रतिशत सच है कि केवल “राम नाम सत्य है”. हां, भारत में केवल राम नाम सत्य है. भले ही, आधुनिक इतिहासकार भारत का स्वर्णिम काल कुछ भी मानते हों लेकिन तमाम पैमानों पर आंकने के बाद भारत का स्वर्णिम कालखंड त्रेता युग है जिसके नायक राम हैं. आज का स्वर्णिम भारत भी राम का भारत है. उम्मीद की जा सकती है कि सुशाशन की आयातित परिभाषा के बदले शासन अब “राम राज्य” के सिद्धांतों के अनुरूप चलेगी.

(प्रियदर्शी रंजन, आई. ओ. पी. एफ. फॉउन्डेशन के निदेशक हैं.)