धर्मेन्द्र सिंह लोधी
श्रीराम केवल एक नाम नहीं है, राम संपूर्ण जीवन पद्धति हैं, संपूर्ण संस्कृति हैं, पूर्ण परम्परा हैं, संपूर्ण जीवन चरित्र हैं, संपूर्ण सनातन हैं। श्रीराम भारतवर्ष की सांस्कृतिक परम्परा की संपूर्णता हैं। राम का नाम मानव जाति के कल्याण का मार्ग है।
पांच सौ वर्षो की लंबी प्रतिक्षा के बाद 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम का भव्य मंदिर, राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ, मूर्तरूप ले रहा है। राम मंदिर का निर्माण केवल भारतवर्ष के समस्त सनातनी जन समुदाय की आकांक्षा की पूर्णता नहीं है, बल्कि भारतवर्ष का सांस्कृतिक पुनरुत्थान है।
विगत् लगभग सात हजार वर्षों से अधिक समय से श्रीराम भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक परम्परा का मूल आधार रहे हैं। इन सात हजार वर्षों में भारत ने कई सामाजिक-सांस्कृतिक उतार चड़ाव देखे, कई चीजें बनी कई मिटी, लेकिन श्रीराम सर्वदा सनातन रहे। 11 वीं सदी में मुस्लिम आक्रमण और बाद में इस्लामिक सत्ता और मुगल शासन की स्िापना के बाद भारत में इस्लाम का प्रचार-प्रसार बहुत प्रबलता के साथ किया गया। हिन्दुओं का धर्मान्तरण किया गया, हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त किया गया, हिन्दू देवताओं का अपमान किया गया। उसी समय राम जन्मभूमि अयोध्या में श्रीराम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्ज़िद का निर्माण बाबर ने कराया। मंदिरों को तोड़ना मुसलमान शासकों की मानसिक विकृति का परिचायक है। अपने दर्प और धार्मिक मतान्धता के कारण मुसलमान शासकों ने भारत की सनातन सांस्कृतिक परम्परा, समृद्धषाली आध्यात्मिक वैभव आदि को नष्ट करने की पुरजोर कोषिष की। लेकिन भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परम्परा के केन्द्र बिन्दु तो प्रभु श्रीराम हैं। श्रीराम सनातन हैं और सनातन को कभी समाप्त नहीं किया जा सकता है।
श्रीराम भारतवर्ष की महान वैभवशाली सनातन संस्कृति का मूल हैं। श्रीराम नाम से ही हमारी संस्कृति और सनातन परम्पराऐं विकसित और पल्लवित हुई है। युगों-युगों से ‘राम‘ नाम के प्रवाह से भारतवर्ष का समग्र जड़-चेतन राम मय हो गया है। श्रीराम दर्शन, धर्म, और समाज का विषय न रहकर भारतवर्ष के जन-जन की आत्मा में समाहित हो गये हैं। श्रीराम केवल एक नाम अथवा एक विचार मात्र नही हैं, यह वास्तव में एक शक्ति पुंज है, जो संपूर्ण मानव जाति को पुरुषार्थी जीवन की प्रेरणा देते हैं।
भगवान श्रीराम का जीवन एक आदर्श और मर्यादित जीवन है। आज अगर भारतवर्ष इतिहास की अप्राप्यता में अपना मस्तक समुन्नत जातियों के समक्ष ऊंचा उठाकर चल सकता है तो, आदर्श चरित्र श्रीराम की विद्यमान्यता के कारण ही यह संभव है। यदि हमें प्राचीनतम ऐतिहासिक जाति होने का गौरव प्राप्त है, तो श्रीराम के अनुकरणीय जीवन के कारण। यदि आज भारतवर्ष के सनातनियों को धार्मिक सत्यनिष्ठा, सत्यन्ध, सभ्य और दृढ़व्रत होने का अभिमान है, तो भारत के धर्म प्राण श्रीराम की विराजमानता से है। वस्तुतः श्रीराम का जीवन सर्वमर्यादाओं का उत्तम आदर्श है भारतवर्ष में ‘राम‘ का चरित्र होना ही राष्ट्र की संपूर्णता का प्रतीक है। क्योकि श्रीराम जैसे आदर्श गुणों से युक्त नागरिकों से बनने वाला राष्ट्र निःसंदेह एक महान राष्ट्र कहलायेगा।
श्रीराम ‘सनातन‘ हैं, उनका आदि और अंत नहीं है। वे अनादि काल से भारतीय परम्परा और भारतीयों के हृदय में विद्यमान हैं, और अनन्त काल तक विद्यमान्य रहेंगे। ‘राम‘ नाम संपूर्ण मानव जाति के लिए ऊर्जा का सर्वोत्तम स्त्रोत है। भारतीय दर्शन में ‘राम‘ नाम को ही समस्त कष्टों और दुखों से मुक्ति प्रदान करने वाला माना गया है। इसीलिए सहस्त्रों वर्षों से भारतवर्ष के लोक जीवन में ‘राम-राम‘ और ‘जय राम जी की‘ जैसे शब्द अभिवादन के सर्वश्रेष्ठ प्रकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
वाल्मीकि रामायण में श्रीराम के ऐसे सोलह गुण बताए गए हैं, जो आदर्श व्यक्तित्व और चरित्र के निर्माण के मूल सूत्र हैं- गुणवान, किसी की निंदा न करने वाला, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, दृढ़प्रतिज्ञ, सदाचारी, सभी प्राणियों का रक्षक, विद्वान, सामर्थ्यशाली, प्रियदर्शन, मन पर अधिकार रखने वाला, क्रोध को जीतने वाला, कांतिमान, वीर्यवान और बुरे कर्मों का विरोधी। श्रीराम के चरित्र में ये सभी गुण विद्यमान है। संपूर्ण मानव जाति को ‘राम‘ के इन आदर्शों से न केवल प्ररेणा लेना चाहिए बल्कि इनका जीवन में अनुसरण भी करना चाहिए।
कहते हैं कलियुग एक दुराचारी युग है। इस कालखण्ड में मानव जाति मर्यादाओं के बंधन को तोड़कर और सत्कर्मों को त्यागकर, दुराचार, दुष्कर्म और अमर्यादित आचरण का अनुसरण करेगी। दिन प्रतिदिन समाज में घटित होने वाली हिंसक घटनाओं, दुष्कर्म, असत्य, झूठ, बेईमानी, कर्तव्य विमूढ़ता और कर्तव्य विमुखता को देखकर यह सत्य ही प्रतीत होता है। ऐसी स्थिति में कलियुग के इस घोर दुराचारी समय में ‘राम‘ का चरित्र कहीं अधिक प्रासंगिक प्रतीत होता है। बदलते सामाजिक परिवेश में सद्गुणों से विमुख होती और दुर्गुणों की ओर अग्रसर होती मानव जाति के लिए ‘राम‘ का चरित्र सर्वाधिक अनुकरणीय है। ऐसा प्रतीत होता है कि आधुनिकता की अंधी दौड़ में और कलियुग के बड़ते प्रभाव में बिगड़ती और चरित्रहीन होती जा रही मानव जाति को संयत करने का एक मात्र उपाय ‘राम‘ ही है।
अयोध्या का भव्य राम मंदिर आने वाले युगों-युगों तक भारतवर्ष के सनातनी जनमानस के अंतस में राम के आदर्श को प्रतिष्ठित करेगा और हमारी आने वाली पीढ़ियों को राम के चरित्र और आदर्शों के अनुकरण की प्रेरण देगा। श्रीराम मर्यादा-पुरुषोत्तम, आदर्श चरित्र और सनातन है। भारतवर्ष की सनातन संस्कृति की पूर्ण प्रतिष्ठा उनके चरित्र में हुई है। ‘राम‘ के नाम में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के लिए आदर्श विद्यमान है। सनातन हिन्दू संस्कृति का स्वरूप श्रीराम नाम के दर्पण में ही पूर्णतः प्रतिबिम्बित हुआ है। आशा की जानी चाहिए कि श्रीराम का चरित्र और उनके आदर्श संपूर्ण विश्व का गेय-ध्येय बने, तभी संपूर्ण मानव जाति सुसंस्कृत बन सकेगी।
किसी भी देष की सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उन्नति और अवनति, उस देष की शासन व्यवस्था पर निर्भर करती है। इस्लामिक शासन के दौरान भारत की संस्कृति और वैभवषाली परम्पराओं का बहुत ह्यास किये जाने के प्रयास किये गयें। आज के भारत में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतवर्ष के आर्थिक उत्थान के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पुनरुत्थान भी किया जा रहा है। भारत के महान् वैभव को पुनर्स्थापत किया जा रहा है। अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण और बालस्वरूप रामलला की प्राण प्रतिष्ठा भारतवर्ष के सांस्कृतिक पुनरुत्थान का आरंभ है। श्रीराम मंदिर के निर्माण से निःसंदेह भविष्य के भारत में हमारी वैभवषाली सांस्कृतिक परम्परा की पुनर्स्थापना होगी और युगों-युगों तक श्रीराम की सदृष्य सनातन रहेगी।
धर्मेन्द्र सिंह लोधी
राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
मध्यप्रदेष शासन
संस्कृति, पर्यटन, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग