मंत्रिमंडल विस्तार से क्या क्षेत्रीय संतुलन बन पाएगी भाजपा…?

आलोक एम इन्दौरिया

मध्य प्रदेश में शनिवार की सुबह हुए शिवराज मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद यह सवाल राजनीतिक फिजाओं में तैर रहा है की क्या इस मंत्रिमंडल विस्तार से भाजपा अपने उद्देश्य में सफल हो पाएगी। यह इसलिए महत्वपूर्ण है की चुनाव में 3 महीने से काम का समय रह गया है और ऐसे समय में इस विस्तार के जहाँ फायदे गिनाये जा रहे हैं तो वहीं नुकसान की संभावनाओं को भी खारिज नहीं किया जा सकता। ऐसा इस कारण कि जहाँ लाभान्वित होने वाले तीन लोग हैं तो इससे प्रभावित होने वाले भाजपा विधायकों की संख्या ज्यादा है।
शनिवार की सुबह राज भवन में शिवराज सिंह के मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया और महामहिम राज्यपाल ने विधायक राजेंद्र शुक्ला ,राहुल लोधी और गौरीशंकर विसेन को मंत्रिमंडल की शपथ दिलाई। इसमें विधायक गौरी शंकर विसेन और राजेंद्र शुक्ला को जहां कैबिनेट मंत्री बनाया गया वही राहुल लोधी को राज मंत्री का पद प्रदान किया गया ‌भाजपा संगठन और सत्ता का ऐसा मानना है कि इस तरीके से भाजपा ने विंध्य, महाकौशल और बुंदेलखंड क्षेत्र से एक-एक मंत्री बनाकर जातिगत और भौगोलिक समीकरण साधने का प्रयास किया है । और अब इस तरह शिवराज कैबिनेट में 34 मंत्री हो गए हैं। बताया जाता है कि चौथा स्थान इसलिए खाली रखा गया क्योंकि आदिवासी या अनुसूचित जाति के विधायक को लेकर किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई।

दरअसल एक लंबे समय से मंत्रिमंडल विस्तार की कवायद चल रही थी जिसका उद्देश्य था भाजपा के द्वारा भौगोलिक और जातिगत समीकरणों को अनुकूल करना ।लेकिन इसमें बहुत देर हो गई है यह इसलिए कि अक्टूबर में आचार संहिता लग जाएगी और इस तरह केवल सितंबर ही काम करने के लिए इन मंत्रियों को मिलेगा। अहम सवाल यह है कि मात्र एक माह में यह तीनों मंत्री विकास या काम का कौन सा पहाड़ खड़ा कर देंगे ? एक और प्रश्न जो उभर के सामने आ रहा है वह यह की इन मंत्रियों से क्षेत्र के लोगों की अचानक पहाड़ जैसी अपेक्षाएं खड़ी हो जाएगी जो इतने कम समय मे किसी भी हालत में पूरी नहीं होगी जिसकी परिणीति एंटी इनकंबेंसी के रूप में इन्हें चुनाव में झेलनी होगी। इस विस्तार में जहां बालाघाट के आदिवासी बेल्ट को साधने की कोशिश की गई है वहीं विन्ध्य से ब्राह्मण को मंत्री पर नवाज कर मूत्र विसर्जन कांड के बाद नाराज ब्राह्मणों को भी एडजस्ट करने की कोशिश की गई है। लेकिन दलित खेमे से मंत्री ना बनाए जाने की चलते इस समाज से दिक्कत खड़ी होने की संभावना है। सबसे ज्यादा विवाद प्रथम बार के विधायक राहुल लोधी को मंत्री बनाए जाने को लेकर दबे जुबान में उठ रहा है जबकि दो और तीन बार के कई विधायक मंत्री बनने की कतार में थे। बताया जाता है कि इन सीनियर विधायकों का रुख इस मामले को लेकर भारी नाराजगी भरा है। तर्क यह दिया जा रहा है कि उमा भारती को ऐडजेस्ट करने के लिए उनके भतीजे को विधायक बनाया गया है लिए। जबकि इसी लोधी समाज के जालम सिंह सीनियर विधायक है क्या उनकी वरिष्ठता को दरकिनार करना इसी लोधी समाज की नाराजगी का वायस नही बनेगा क्योंकि हर एक की अपनी लॉबी है और, प्रहलाद पटेल और जालिम सिंह इन दोनों भाइयों की भी लोधी समाज में गहरी पकड़ है।

बरहाल भाजपा संगठन और शिवराज ने मंत्रिमंडल विस्तार करके अपने राजनीतिक उद्देश्य को हासिल करने का प्रयास जरूर किया है मगर राजनीतिक विश्लेषकों का यह मानना है कि यह उतना कारगर नहीं होगा क्यूँकि इससे ” तीन प्रसन्न तो तेरह नाराज”” वाली हालत होने की संभावना को खारिज करना नामुमकिन है। लेकिन इस विस्तार से शिवराज ने जहां उमा भारती की दम पर लोधी वोटों को बिखरने से बचाने का मुकम्मल प्रयास कर लिया है वही विंध के ब्राह्मणों की नाराजगी भी कुछ हद तक दूर करने में कामयाबी हासिल कर ली है। अब इसके नतीजे क्या होंगे यह विधानसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे।


( लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)