महाकुंभ नगर। तीर्थराज प्रयाग में संगम के किनारे अखाड़ों के तम्बू सज चुके हैं। एक ओर भारत का सनातन लोक पवित्र त्रिवेणी में डुबकी लगाने को आतुर है तो दूसरी ओर अखाड़ों की 52 मढ़ियों के संत अपनी-अपनी धुनी लगाकर कुटियों के सामने साधनारत हो चुके हैं। इनके दर्शन मात्र से श्रद्धालु अपने को धन्य मान रहे हैं। ये मढ़िया क्या हैं आइये संत की वाणी से जानते हैं।
संन्यासी परम्परा में प्रवेश करने के लिए सबसे पहले मढ़ियों में दीक्षा लेनी होती है, यहीं से संन्यासी बनने की प्रारम्भिक प्रक्रिया शुरू होती है। अखाड़ों की 52 मढ़ियां 52 शक्ति पीठों की प्रतीक हैं। ये मढ़ियां चार मठों से ही निकली हुई हैं। ये कहीं-न-कहीं चार मठों से जुड़ी हुई हैं। चार आम्नाय हैं, चार वेद हैं, ये चारों वेदों से भी संबंधित हैं। ये सब एक सूत्र में बंधे हुए हैं। ये सब शक्ति की प्रतीक हैं। अखाड़ों की 52 मढ़िया आज के समय में हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए एक प्रकार से बटालियन हैं।
यह बातें श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव महंत यमुनापुरी जी महाराज ने हिन्दुस्थान समाचार से एक विशेष वार्ता में कही। उन्होंने कहा कि इन मढ़ियों के अलग-अलग कार्यक्षेत्र होते थे। ये जो अखाड़े बने थे, ये विशुद्ध रूप से शस्त्रधारी नागाओं के लिए बने थे, जिन्हें शास्त्र की दीक्षाएं, वेद-वेदांत, उपनिषद का ज्ञान प्राप्त करना था,वह मठों में ही रहते थे। उन्होंने बताया कि मठों से अखाड़ों में वहीं सन्यासी आए जो विशुद्ध रूप से सनातन धर्म की रक्षा के लिए युद्ध को चुना। उस समय इनके पास कोई चारा नहीं बचा था। कोई उपदेश नहीं मान रहा था। विदेशी आक्रांताओं द्वारा बहन,बेटियों एवं माताओं की अस्मत लुटी जा रही थी। मठ, मंदिर, गुरूकुल सारी व्यवस्थाएं विध्वंस की जा रही थी। विदेशी आक्रांताओं का हिन्दू समाज में कितना अत्याचार सहा है, आज हमसब कल्पना नहीं कर सकते हैं। इन परिस्थितियों में साधु-संतों को शस्त्र उठाना पड़ा था। इन्होंने कई मठ व मंदिरों की रक्षा की। इन नागाओं को आज भी धर्मयोद्धा कहा जाता है।
उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य है कि आजादी के बाद भी मठ-मंदिरों एवं साधु-संतों के बलिदानी इतिहास को सही से नहीं लिखा गया। पण्डित नेहरू ने इतिहास लेखन का कार्य कम्युनिष्टों को देकर भारत के गौरवशाली इतिहास को विकृत कर दिया। उन्हें महिमा मण्डित किया गया, उन्हें प्रामाणिक लेखक माने गए। पण्डित नेहरू के कार्यकाल में बाहरी आक्रांताओं को महान भी घोषित किया गया और हमारे राष्ट्र के प्रति न्योछावर होने वाले वीर योद्धाओं को कोई स्थान नहीं दिया गया। इतना ही नहीं इन विकृत इतिहास हमारे बच्चों के दिमागों में भर दिया गया। बच्चों के कच्चे मस्तिष्क होते हैं उन्हें वही विकृत इतिहास पढ़ाया गया, वह आज उसे ही सत्य मानते हैं। इन लोगों ने महाराजा विक्रमादित्य, छत्रपति शिवाजी, महारानी लक्ष्मी बाई, तात्यां टोपे के बारे में क्या लिखा। हमलोगों ने तो अपने इतिहास को मौखिक रूप से ही याद करते आए हैं, और उसे ही पीढ़ियों में बताते रहते हैं। उन्होंने कहा कि महानिर्वाणी पंचायती अखाड़ों के साधु व संतों ने काशी के बाबा विश्वनाथ मंदिर को मुगलों को बचाया।
उन्होंने बताया कि मढ़ियों की व्यवस्था आज भी कायम है। मढ़ियों से दावे हैं, और दावों से फिर अखाड़े हैं। ऐसी ही हमारे यहां कई पदवियां हैं। मढ़ी के संत ही सभी पदों के लिए पदाधिकारियों को चुनते हैं। अखाड़े में सर्वोच्च पद अध्यक्ष का होता है। जिन्हें आप वर्तमान की शासन व्यवस्था में राष्ट्रपति कह सकते हैं। उन्होंने कहा कि महाकुंभ सनातनियों को धर्म से जोड़ने वाला समागम है। यहां संत, गृहस्थ समेत सभी श्रद्धालु भक्ति की रसधार में गोता लगायेंगे। यह भक्ति, ज्ञान व कर्म का समागम है। उन्होंने अपने संदेश में कहा कि यहां भक्तजन पर्यटन या पिकनिक के भाव से न आएं,बल्कि अध्यात्मिक व तीर्थाटन के भाव से आएं और यहां असीम प्रवाहित ऊर्जा को अपने जीवन में संचित करें।