डेरी कोआपरेटिव पुनर्जीवन के लिए एनडीडीबी और उत्तर प्रदेश सरकार मिलकर कर रहे हैं प्रयास: एनडीडीबी चेयरमैन डॉ मीनेश शाह

आगरा। राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड के चेयरमैन डॉ मीनेश शाह ने आगरा में कहा कि उत्तर प्रदेश में डेरी सेक्टर के विकास के लिए एनडीडीबी वचनबद्ध है, जिसके लिए वह उत्तर प्रदेश सरकार के साथ मिलकर कार्य कर रही है। पराग नाम से विख्यात प्रदेश कोआपरेटिव डेरी संघ को पुनर्जीवित करने के लिए एक खाका तैयार हो चुका है और इसकी बेकार पड़ी क्षमता के बेहतर इस्तेमाल के लिए बातचीत चल रही है।

“लगभग एक साल पहले वाराणसी दुग्ध यूनियन की 2 लाख लीटर प्रति दिन की क्षमता वाले डेरी प्लांट की कमान जब हमने अपने हाथों में ली, तब यह मुश्किल से 6,000 से 7,000 लीटर पर काम कर रही थी। आज वही एक लाख लीटर प्रति दिन से ज्यादा पर संचालित हो रहा है। इस उदाहरण से पता चलता है कि दुग्ध उत्पादकों को बेहतर सेवाएं प्रदान करने और संचालन में व्यावसायिक और कार्य कुशलता लाने से उत्तर प्रदेश में डेरी कोआपरेटिव को पुनर्जीवित किया जा सकता है। लेकिन, कोआपरेटिव रणनीतियों के माध्यम से उत्तर प्रदेश में डेरी सेक्टर को पुनर्जीवित करने के लिए डेरी कोआपरेटिव और दुग्ध उत्पादक संगठनों दोनों को मिलकर काम करना होगा,” डॉ शाह ने कहा।

वे मंगलवार को आगरा में उपभोक्ताओं के घरों तक खुले ठन्डे दूध की बिक्री के लिए मोबाइल दुग्ध वेंडिंग वैन के उद्घाटन के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे। इसके अलावा उन्होंने आस-पास के गावों में बल्क दुग्ध शीतलीकरण संयंत्र और एक बायो-गैस प्लांट का भी उट्घाटन किया, जहाँ गुणवत्ता युक्त चारे को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने सहज मिल्क प्रोडूसर कंपनी लिमिटेड के डेरी किसानों को मक्के के बीज भी वितरित किये।

उन्होंने कहा कि बनारस, गोरखपुर और रायबरेली में दुग्ध उत्पादक संगठनों सहित उत्तर प्रदेश में डेरी कोआपरेटिव की सहायता के लिए एनडीडीबी ने महत्वपूर्ण पहल की हैं, डॉ शाह ने कहा कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में किसानों को सेवाएं प्रदान करने वाले संगठनों की विविधता से दुग्ध उत्पादकों की स्थिति बेहतर रहती है।

किसान की दूध खरीद आय का लगभग 70 प्रतिशत खर्च चारे पर होता है। बेहतर चारे की उपलब्धता की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए डॉ. शाह ने कहा कि एनडीडीबी इस दिशा में बड़ी पहलें कर रहा है, जिसमें राष्ट्रीय पशुधन मिशन के अंतर्गत सर्टिफाइड चारा बीजों को बढ़ावा और चारा प्लस एफपीओ का गठन शामिल हैं। लम्बी अवधि का चारा बनाना, फसल अवशेष को सुरक्षित करना, संपूर्ण मिश्रित राशन आदि अनेक दूसरी पहलें भी की जा रही हैं।

लगभग 54 प्रतिशत महिला दुग्ध उत्पादकों सहित एक लाख से अधिक डेयरी किसानों की सदस्यता वाले सहज की एक दिवसीय यात्रा पर आए श्री शाह ने कहा कि यह दुग्ध उत्पादक संगठन 5,000 बायो-गैस संयंत्र स्थापित करने का लक्ष्य बना रहा है, जोकि गैस पंप सहित मात्र छह से सात हजार रुपये की लागत पर सिस्तेमा बायो से खरीदे जाएंगे, जिनकी कीमत पहले लगभग 35,000 रुपये तक थी।

“यह कंपनी के साथ मोल-भाव से संभव हो पाया कि आप इन बायोगैस परियोजनाओं से अर्जित कार्बन क्रेडिट को ध्यान में रखें और किसानों को बायो-गैस किट न्यूनतम कीमत पर उपलब्ध करायें। मुझे बताते हुए हर्ष हो रहा है कि अब हम पूरे भारत में दुग्ध किसान संगठनों के लिए कम से कम 50,000 बायो गैस संयंत्र स्थापित करने का लक्ष्य बना रहे हैं, क्योंकि इससे किसानों की आय में सहायता के अलावा पर्यावरण से निपटने में भी मदद मिलेगी,” डॉ शाह ने बताया।

अपनी स्थापना के समय के नौ साल से भी कम समय में सहज द्वारा किए गए काम की सराहना करते हुए डॉ. शाह ने कहा, “प्रतिदिन 4 लाख किलोग्राम से अधिक दूध की खरीदी के साथ एमपीसी एक अग्रणी संस्था के रूप में उभरते हुए पश्चिमी यूपी के 10 जिलों में फैल गए हैं। इनके बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कुल राजस्व (लगभग 850 करोड़ रुपये) का 87 प्रतिशत सदस्य किसानों को खरीद मूल्य, बोनस, लाभांश और प्रोत्साहन राशि के माध्यम से वापस दिया जाता है।’

सहज का कहना है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान इसकी सदस्यता 30 प्रतिशत बढ़कर लगभग 1.25 लाख और राजस्व 25 प्रतिशत बढ़कर 1,000 करोड़ रुपये को पार करने की उम्मीद है, साथ ही इन जिलों में संगठित संगठनों के बीच इसकी बाजार हिस्सेदारी 33 प्रतिशत है।