बलरामपुर चीनी मिल्स लिमिटेड भी पर्यावरण को बचाने में जुटा

बीसीएमएल द्वारा बनाए जाने वाले रिन्यूएबल बाई-प्रोडक्ट सीमित जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को बायोडिग्रेडेबल विकल्पों में बदलने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

नई दिल्ली। भारत की सबसे बड़ी इंटीग्रेटेड चीनी मिलों में से एक, बलरामपुर चीनी मिल्स लिमिटेड (बीसीएमएल) ने कंपनी द्वारा सक्रियता से तैयार किये गये अपने इको-फ्रेंडली उत्‍पादों और उत्‍पादन की स्‍थायी पद्धतियों की मदद से सस्‍टेनेबिलिटी की वकालत की है। कंपनी ने अपने आगामी पीएलए-मैन्युफैक्चरिंग वेंचर का ऐलान किया है। कंपनी का उद्देश्य इसके जरिए सिंगल-यूज-प्लास्टिक के बाजार में कदम रखना और इस क्षेत्र में एक स्थायी बदलाव लाना है।

कंपनी का दूरदर्शी नजरिया इसके उन मुख्य परिचालन सिद्धांतों पर आधारित है जिनका लक्ष्य कम संसाधनों के जरिए अधिकतम उत्पादन करना है। सतत विकास की दिशा में बीसीएमएल की यात्रा 6 सबसे अधिक महत्‍वपूर्ण अवधारणाओं – एकीकरण, शून्य तरल उत्सर्जन, वित्तीय समझदारी, बायेफ्युल, केन कॉम्पिटेंस और डिजिटलीकरण द्वारा तय की गई है।

बीसीएमएल एक ओर गन्ने की एक यूनिट से अधिकतम वैल्यू हासिल करने में सक्षम है और दूसरी ओर इसे लगाई गई पूंजी पर अच्‍छ रिटर्न मिल रहा है। इंटीग्रेशन की प्रक्रिया में ना सिर्फ पर्यावरण से जुड़े बड़े फायदे मिलते हैं बल्कि इसके सभी हितधारकों के लिए वित्‍तीय महत्‍व भी बढ़ता है। बीसीएमएल की डिस्टिलरी क्षमता का विस्तार उन अहम कारकों में से एक रहा है, जिसके कारण कंपनी को व्यवसाय को बढ़ाने के लिए उधार ली जाने वाली धनराशि की जरूरत काफी कम हो गई है। बायो फ्युल पर फोकस ने बलरामपुर चीनी मिल्स की किस्मत बदल दी है। कंपनी डिस्टिलरी व्यवसाय में भारी निवेश के जरिए 2018 की राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति पर आगे बढ़ने वाली अग्रणी कंपनियों में से है। 2017-18 के 360 किलो लीटर प्रति दिन ( KLPD) से लेकर 1050 किलो लीटर प्रति दिन की भारी क्षमता तक, बीसीएमएल ने अपनी डिस्टिलरी क्षमता को तेजी से बढ़ाया है।

बीसीएमएल न केवल प्राथमिक कच्चे माल यानी गन्ने की गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ाने के लिए सक्रिय रूप से निवेश करती है, बल्कि गन्‍ने के बेहतर विकल्‍प पेश करने के लिए आधुनिक गन्ना अनुसंधान संस्थानों के साथ सहयोग भी करती है। यह डिजिटलीकरण लागू करने वाली पहली चीनी कंपनियों में से एक है। डिजिटलीकरण ने कंपनी को सामान्य प्लेटफ़ॉर्म के आसपास डेटा को एक जगह एकत्र करने और सोच-समझकर निर्णय लेने में मदद की है ।

अपनी सभी डिस्टिलरीज को सफलतापूर्वक जीरो लिक्विड डिस्चार्ज में बदलने से लेकर, सभी के लिए अनिवार्य किए जाने के पहले ही चीनी उत्पादन करने वाले संयंत्रों में इंसीनरेशन बॉयलर्स लगाने, कंडेनसेट वाटर (घनीभूत जल) को रिसाइकिल या कम करने के लिए अत्याधुनिक इकाइयों की स्थापना में सक्रिय निवेश करने और कई दूसरे कामें के जरिए, बीसीएमएल के दूरदर्शी नजरिए को कंपनी द्वारा आगे बढ़कर उठाए गए उल्लेखनीय कदमों के रूप में देखा जा सकता है।

 

बीसीएएल द्वारा बनाए जाने वाले रिन्यूएबल बाई-प्रोडक्ट सीमित जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को बायोडिग्रेडेबल विकल्पों में बदलने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। पॉली लैक्टिक एसिड उत्पादन में कंपनी का नया निवेश स्‍थायी विकास को बढ़ावा देने की दिशा में कंपनी के प्रयासों का प्रमाण है। 2,000 करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश के साथ, बीसीएमएल का लक्ष्य बायोप्लास्टिक उत्पादन के बाजार में प्रवेश करना है। इस उद्यम के जरिए प्रमुख चीनी निर्माता का लक्ष्य पॉली लैक्टिक एसिड (पीएलए) का उत्पादन करने के लिए चीनी का ज्‍यादा से ज्‍यादा इस्तेमाल करना और एसयूपी की खपत को काफी कम करना है।

देश में व्यापक रूप से उगाई जाने वाली फसल जैसे गन्ने से प्राप्त पीएलए बायोप्लास्टिक न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि इसमें ऐसे गुण भी हैं जिससे यह जीवाश्म ईंधन आधारित प्लास्टिक की जगह ले सकता है जिससे देश की ऊर्जा के लिए दूसरों पर निर्भरता कम हो सकती है। इंफ्रास्ट्रक्चर पर होने वाले व्यय में कटौती करने और मौजूदा संसाधनों का लाभ उठाने के लिए, कंपनी ने एक मौजूदा चीनी संयंत्र के निकट एक “ग्रीनफील्ड साइट” पर आगामी प्रोजेक्ट स्थापित करने की योजना बनाई है।

 

बाई-प्रोडक्ट्स का सोच-समझकर इस्तेमाल करके, बीसीएमएल ने सफलतापूर्वक कंपनी में ही एक सर्कुलर इकोनॉमी स्थापित की है। उद्योग जगत के दिग्गजों के नेतृत्व में, कंपनी ने बायोफ्युल्‍स की अपनी क्षमता कीको पहचाना और भविष्य में ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने की जरूरत को समझा है। इसे देखते हुए, कंपनी ने 1995 में इस सेक्टर में काफी निवेश किया और डिस्टिलरी और कोजनरेशन के व्यवसाय में कदम रखा। भारत के बायोफ्युल उत्पादन में अपना योगदान बढ़ाने के लिए, बलरामपुर चीनी मिल्स ने एक निर्णायक कदम उठाया और अपनी मैजापुर इकाई में केवल इथेनॉल का उत्पादन किया जाने लगा।