सुप्रीम कोर्ट के चंडीगढ़ मेयर वाले फैसले पर ये है अहम बात

पूरे मामले में अब दूध का दूध और पानी का पानी हो चुका है। इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी की अनदेखी बिल्कुल नहीं की जानी चाहिए कि हम चंडीगढ़ में लोकतंत्र की हत्या नहीं होने देंगे। इस टिप्पणी के माध्यम सुप्रीम कोर्ट ने जो संदेश दिया है वह निश्चित रूप से लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है।

कृष्णमोहन झा

निहायत अफसोस की बात है कि चंडीगढ़ के मेयर पद के चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए चुनाव अधिकारी ने वैध मतपत्रों के साथ खिलवाड़ करने में भी कोई संकोच नहीं किया। अपनी इस अशोभनीय हरकत के लिए एक ओर तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार का सामना करना पड़ा और दूसरी ओर उनकी इस हरकत ने समूची भाजपा को भी शर्मसार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को अच्छी तरह देखने परखने के पश्चात् चंडीगढ़ में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को विजयी घोषित कर दिया है और चुनाव अधिकारी के ऊपर मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया है। आम आदमी पार्टी अब अगर अपनी दोहरी जीत का जश्न मना रही है तो यह स्वाभाविक ही है परन्तु भाजपा के लिए यह आत्ममंथन करने का समय है कि उसे आखिर एक शहर के मेयर पद के चुनाव में अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने की क्या आवश्यकता थी। अब स्थिति यह है कि न तो उसके पास मेयर की कुर्सी है , न ही यह साबित करने के लिए कोई तर्क है कि चुनाव अधिकारी ने मतपत्रों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की ।
दरअसल चंडीगढ़ के नवनिर्वाचित नगर निगम में संख्याबल के हिसाब से मेयर पद के चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार की जीत पहले से ही सुनिश्चित मानी जा रही थी। इस सच्चाई से वाकिफ होने के बावजूद भाजपा यह प्रयास कर रही थी कि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को चुनाव में मुंह की खानी पड़े। शायद यही सोचकर मेयर चुनाव कराने के लिए अनिल मसीह को चुनाव अधिकारी बनाया गया था जो अतीत में भाजपा के अल्र्पसंख्रक मोर्चा के पदाधिकारी रह चुके थे। दरअसल 18 फरवरी को जब चंडीगढ़ प्रशासन ने मेयर के चुनाव को ऐन वक्त पर इसलिए स्थगित कर दिया क्योंकि अनिल मसीह अचानक अस्वस्थ हो गये थे तभी संदेह के बादल गहराने लगे थे।इसके बाद आम आदमी पार्टी ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया । हाईकोर्ट ने चुनाव स्थगित करने के चंडीगढ़ प्रशासन के आदेश को रद्द करते हुए 30 जनवरी को चुनाव कराने और चुनाव प्रक्रिया की वीडियोग्राफी कराने के आदेश दिए। 30 जनवरी को मेयर पद के चुनाव हेतु मतदान हुआ तो आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कुलदीप कुमार को 20 मत प्राप्त हुए और भाजपा उम्मीदवार मनोज सोनकर को 16 मत मिले। इस गणना के हिसाब से कुलदीप कुमार को विजयी घोषित किया जाना चाहिए था परन्तु पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह ने कुलदीप कुमार को मिले 20 मतों में से 8 मतों को अवैध करार देते हुए भाजपा उम्मीदवार मनोज सोनकर को विजयी घोषित कर दिया। वीडियो क्लिप में अनिल मसीह आम आदमी पार्टी को मिले कुछ मतों को निरूपित करते हुए भी दिखाई दे रहे थे। इसके बाद आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कुलदीप कुमार ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में चुनाव अधिकारी के फैसले को चुनौती देते हुए मेयर चुनाव रद्द करने और नये चुनाव कराने की मांग की परंतु हाईकोर्ट ने उन्हें अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया और अगली सुनवाई के लिए तीन सप्ताह बाद की तिथि निश्चित कर दी। अंततः आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार ने जब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की तो वहां अनिल मसीह यह साबित करने में असफल रहे कि चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर के चुनाव में आम आदमी पार्टी के पक्ष में पड़े 20 मतों में आठ मतों को निरूपित करने के पीछे उनकी कोई ग़लत मंशा नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर चुनाव की पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी और मतपत्रों की सूक्ष्म जांच करने के पश्चात् आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कुलदीप कुमार को विजयी घोषित कर दिया और अदालत में गलत बयानी के आरोप में अनिल मसीह पर मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया। अनिल मसीह इस स्थिति की तो स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकते थे। कैमरे के सामने ऐसा ग़लत काम करते वक्त उन्होंने एक पल के लिए भी यह नहीं सोचा कि अदालत में वे अपनी बेगुनाही साबित नहीं कर पाए तो उसका अंजाम क्या होगा।
अब चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर की कुर्सी पर आम आदमी पार्टी के कुलदीप कुमार आसीन हो चुके हैं जिन्हें कांग्रेस का भी समर्थन प्राप्त है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के एक दिन पूर्व भाजपा के मनोज सोनकर ने मेयर पद से इस्तीफा दे दिया था । इस बीच आम आदमी के तीन पार्षद भाजपा में शामिल हो गए थे उन्हें भी अपने फैसले पर पछतावा हो रहा होगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के एक दिन पहले ही उन्होंने जिस तरह अचानक भाजपा में शामिल होने की घोषणा की उस पर भी सवाल उठने लगे थे। आम आदमी पार्टी के तीन पार्षदों के भाजपा में शामिल होने के बावजूद भाजपा चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर ने पद से कुलदीप कुमार को नहीं हटा सकती। नगर निगम में इस समय भाजपा के 17 पार्षद हैं। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के गठबंधन के पास इतना ही संख्या बल है। चंडीगढ़ नगर निगम में बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट का कोई प्रावधान नहीं है। अविश्वास प्रस्ताव के लिए दो तिहाई बहुमत चाहिए जो कि भाजपा के पास नहीं है इसलिए आम आदमी पार्टी के कुलदीप कुमार ही अगले एक साल तक चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर बने रहेंगे।


लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं।