नई दिल्ली। सबसे चिंतनीय बात यह कि इनकी रिटायरमेंट में सिर्फ दो दिन बच रहे थे । अब यह नहीं कह सकते कि जाते जाते पैसे इकट्ठे कर रहे थे या फिर सारी नौकरी में ’ऊपरी कमाई’ ही करते रहे थे । कुछ कह नहीं सकते लेकिन इतना कह सकते हैं कि विदा होने से पहले यह कलंक का टीका क्यों लगवाया और यदि ये रिश्लत लेते पकड़े न जाते तो दो दिन बाद इनकी विदाई पार्टी में इनकी ईमानदारी के गुणगान करते सहयोगी थकते नहीं और फूलों के हार गले में डालकर इन्हें बड़े सम्मान के साथ घर तक छोड़कर आते पर बदकिस्मती देखिये, टूटी कहां कमंद जहां पानी कम था, जब सिर्फ दो दिन की नौकरी ही बची थी तब पकड़े गये !
यह रिश्वत कांड भी रोज़ ही सामने आते हैं लेकिन कुछ अधिकारी यह समझते हैं कि वे तो बड़ी एहतियात से सब खेल करते हैं, वे नहीं फंसने वाले । यह वैसा ही आश्चर्य है जैसे श्मशान घाट पर दूसरों के अंतिम संस्कार में जाने वाले सोचते है कि वे तो ज़िदा रहने वाले हैं । यदि इंसान ऐसा न सोचकर यह सोचे कि मौत का एक दिन मुतमईन है, तो शायद ज़िंदगी की सच्चाई समझ कर अच्छी राह पर चले ! कितने भी रिश्वत कांड सामने आयें, दूसरे अधिकारी इससे सबक नहीं लेते,वे पुलिस के बिछाये जाल में फंस ही जाते हैं और फिर पछताते हैं । तब तक चिड़िया खेत चुग चुकी होती हैं !
मुझे हमेशा प्रसिद्ध कथाकार मोहन राकेश की कहानी “आखिरी सामान’ याद आती है । इसमें रिश्वत लेने के बाद रिकवरी के लिए घर का सामान नीलाम किये जाने के बाद उस अधिकारी की पत्नी सीढ़ियां उतर रही है और लेखक इशारा करता है कि यही आखिरी सामान नीलाम होने जा रहा है। असल में आखिरी सामान समाज में अधिकारी की प्रतिष्ठा या सम्मान होता है, जो नीलाम हो जाता है और अधिकारी का परिवार समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहता !
फिर भी रिश्वत या कहिये भ्रष्टाचार ही नये समाज का शिष्टाचार बन गया है और यह रिश्वत डायन हमारे समाज को खाये जात है ! हमारे समाज में जब लड़की के लिए रिश्ता ढूढ़ते हैं, तब यही चर्चा सामने आती है कि लड़का सरकारी नौकरी करता हो और मासिक वेतन चाहे कम हो लेकिन पोस्ट ऐसी हो, जिससे ’ऊपरी कमाई’ खूब होती हो । इस तरह समाज इस रिश्वतखोरी को स्वीकार कर चुका है और यह बहुत बड़ा दुखांत है !