नई दिल्ली। फिल्म ‘अमर सिंह चमकीला’ में चमकीले की कहानी के बहाने से हमारे समाज के दोगलेपन को उभार कर दिखाने का काम ज़्यादा करती है। चमकीला की कहानी के बहाने से लेखक इम्तियाज़ अली और साजिद अली हमें उस दौर के पंजाब, पंजाब के गायकों और पंजाब के श्रोताओं के अंतस में भी ले चलते हैं। बहुत ही कसी हुई और तरतीब से लिखी गई इस फिल्म की स्क्रिप्ट शुरू-शुरू में लड़खड़ाती हुई-सी लगती है। लेकिन फिर लगने लगता है कि यह लड़खड़ाहट नहीं, बल्कि संभल कर चलने से पहले की सर्तकता थी क्योंकि इसके बाद जब यह फिल्म चलना शुरू करती है तो न उंगलियां पॉज़ के बटन पर जाती हैं और न ही नज़रें स्क्रीन से हटती हैं। दिलजीत दोसांझ ने चमकीला की रूह को छुआ है। परिणीति चोपड़ा खूब जंची हैं और प्रभावी रही हैं। अन्य सभी कलाकारों का काम भी प्रशंसनीय रहा है। डी.सी.पी. बने अनुराग अरोड़ा बेहद असरदार रहे। लेकिन जो एक कलाकार दिल-दिमाग पर छाया वह थे टिक्की पा’जी बने अंजुम बत्रा। बेहद असरदार, बेहद गहरा अभिनय रहा उनका।
रूह तक पहुंचेगी फिल्म ’ अमर सिंह चमकीला’
चमकीला की कहानी के बहाने से लेखक इम्तियाज़ अली और साजिद अली हमें उस दौर के पंजाब, पंजाब के गायकों और पंजाब के श्रोताओं के अंतस में भी ले चलते हैं।