पुरी। राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने वार्षिक रथ यात्रा में भाग लेने के एक दिन बाद, आज सुबह को पवित्र शहर पुरी के समुद्र तट पर कुछ समय बिताया, बाद में उन्होंने प्रकृति के साथ निकटता के अनुभव के बारे में अपने विचार लिखे।
X पर लिखे एक पोस्ट में राष्ट्रपति ने कहा: “ऐसी जगहें हैं जो हमें जीवन के सार के करीब लाती हैं और हमें स्मरण दिलाती हैं कि हम प्रकृति का भाग हैं। पहाड़, जंगल, नदियाँ और समुद्र तट हमारे अंतर्मन को आकर्षित करते हैं। आज जब मैं समुद्र तट पर टहल रही थी, तो आस-पास के वातावरण के साथ मुझे गहरा जुड़ाव महसूस हुआ – शीतल पवन, लहरों की गर्जना और पानी का अथाह विस्तार। यह एक ध्यान में होने जैसा अनुभव था।
मुझे एक गहन शांति की अनुभूति हुई, जो मैंने कल महाप्रभु श्री जगन्नाथजी के दर्शन करते समय महसूस की थी। और ऐसा अकेला मेरा अनुभव नहीं है; हम सब ऐसा महसूस करते हैं, जब हमारा साक्षात्कार उस अनंत से होता है, जो शक्ति हमें कायम रखती है और हमारे जीवन को सार्थकता देती है।
रोज़मर्रा की आपा-धापी में हम प्रकृति से अपना नाता भूल जाते हैं। मानव जाति मानती है कि उसने प्रकृति पर कब्ज़ा कर लिया है और अपने अल्पकालिक लाभों के लिए उसका दोहन कर रही है। इसका नतीजा सबके सामने है। इस साल गर्मी में भारत के कई हिस्से भीषण लू के चपेट में थे। हाल के वर्षों में दुनिया भर में मौसम की अति की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं। आने वाले दशकों में स्थिति और भी विकट होने का अनुमान है।
पृथ्वी की सतह का सत्तर प्रतिशत हिस्सा महासागरों से बना है और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से वैश्विक समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, जिससे तटीय इलाकों के डूबने का ख़तरा है। महासागर और वहाँ पाए जाने वाले वनस्पतियों और जीवों की समृद्ध विविधता को विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के कारण भारी नुकसान हुआ है।
More than seventy percent of the surface of the earth is made up of oceans, and global warming is leading to a rise in global sea levels, threatening to submerge coastal areas. The oceans and the rich variety of flora and fauna found there have suffered heavily due to different… pic.twitter.com/ifp1TeW5Uh
— President of India (@rashtrapatibhvn) July 8, 2024
सौभाग्य से, प्रकृति की गोद में रहने वालों ने ऐसी परंपराएँ कायम रखी हैं जो हमें रास्ता दिखा सकती हैं। उदाहरण के लिए, तटीय क्षेत्रों में रहने हवाओं और समुद्र की लहरों की भाषा पहचानते हैं। हमारे पूर्वजों की तरह वे समुद्र को भगवान के रूप में पूजते हैं।
मेरा मानती हूँ, कि पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण की चुनौती का सामना करने के दो तरीके हैं; व्यापक कदम जो सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की ओर से उठाए जा सकते हैं, और छोटे, स्थानीय कदम जो हम नागरिकों के रूप में उठा सकते हैं। बेशक, ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। हम अपने बच्चों के प्रति ऋणी हैं। तो, आइए बेहतर कल के लिए व्यक्तिगत रूप से, और स्थानीय स्तर पर हम जो कुछ भी कर सकते हैं, उसे करने का संकल्प लें।”