बीमारी का समय रहते पता लगाने से बचेगी जान: बच्चों में गैर-संचारी रोगों के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत

बैठक में बच्चों, किशोरों और युवाओं के लिए किफायती और सुलभ सुविधाएं उपलब्ध कराने का आह्वान किया गया। साथ ही समय रहते बीमारी का पता लगाने और निगरानी के उपायों की जरूरत पर भी जोर दिया गया

नई दिल्ली। एक उच्च स्तरीय बैठक में गैर-संचारी रोगों (NCDs), खासकर टाइप 1 डायबिटीज के जल्दी निदान और इलाज को लेकर गहन चर्चा की गई। बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि NCDs का समय पर पता लगाने और उपचार करने से न सिर्फ मरीज की देखभाल बेहतर होती है, बल्कि उनकी जिंदगी की गुणवत्ता में भी सुधार आता है। यह बैठक ब्रेकथ्रू T1D और फ्रेंड्स ऑफ मेवाड़ ने यूनिसेफ के सहयोग से आयोजित की गई थी।

ब्रेकथ्रू T1D की ग्लोबल एम्बेसडर पद्मजा कुमारी परमार ने इस बैठक की मेजबानी की। इस बैठक में कई तरह के संगठनों और व्यक्तियों ने भाग लिया, जिसमें ब्रेकथ्रू T1D, यूनिसेफ, फ्रेंड्स ऑफ मेवाड़, धर्मार्थ संस्थान, चिकित्सक, नागरिक समाज संगठन और इम्पेशंट नेटवर्क शामिल थे। इम्पेशंट नेटवर्क, टाइप 1 डायबिटीज से जूझ रहे लोगों और समुदाय के सदस्यों का एक समूह है।

गैर-संचारी रोग (NCDs) दुनिया भर के लिए एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बन गए हैं, जो हर साल होने वाली 170 लाख असामयिक पहले मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। इसमें से 86 फीसदी मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। भारत में भी बीमारियों का बोझ संक्रामक रोगों से गैर-संचारी रोगों की ओर शिफ्ट हो रहा है, जहां कुल मौतों में से 66 फीसदी हिस्सा NCDs का हैं और इसमें से भी 22 फीसदी मौतें असामयिक हैं।

ब्रेकथ्रू T1D ग्लोबल एंबेसडर पद्मजा कुमारी परमार ने कहा, “टाइप 1 डायबिटीज जैसी गैर-संचारी बीमारी से निपटने के लिए स्वास्थ्य सेवा और समय पर उपचार तक पहुंच बेहद जरूरी है। NCDs से जोखिम वाले बच्चों और युवाओं के स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के लिए हमें विभिन्न हितधारकों के एक साथ आगे आने की ज़रूरत है। साझेदारों के साथ यह सहयोग पहलों, प्रतिबद्धता और नवाचार की प्रगति और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आने वाली कई पीढ़ियों तक गैर-संचारी रोगों जैसे टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित बच्चों को आवश्यक देखभाल और सहायता मिल सके।”

टाइप 1 डायबिटीज से जूझ रहे बच्चों और उनके माता-पिता को संबोधित करते हुए पद्मजा कुमारी परमार ने कहा, “आपको हमेशा अपनी ज़िंदगी को बेहतरीन और स्वस्थ तरीके से जीने का प्रयास करना चाहिए। टाइप 1 डायबिटीज के बारे में कई गलतफहमियां और मिथक हैं, इसलिए आपको इस बीमारी और उसके इलाज के बारे में सही जानकारी लेनी चाहिए। सकारात्मक रहें क्योंकि यह टाइप 1 डायबिटीज और उसके परिणामों से निपटने में मदद करता है।”

भारत में ऐसे कई बच्चे और युवा हैं जो टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित हैं। उन्हें, खासकर लड़कियों को स्वास्थ्य सेवा और इंसुलिन थेरेपी तक पहुंचने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है।यूनिसेफ इंडिया की प्रतिनिधि सिंथिया मैककैफ्री ने बच्चों और युवाओं में गैर-संचारी रोगों (NCDs) के समय रहते पता लगाने, देखभाल और प्रबंधन की जरूरत पर बोलते कहा, “यूनिसेफ का मकसद बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना, बच्चों को जीवित रहने और आगे बढ़ने में मदद करना है। महामारी का बोझ गैर-संचारी रोगों की ओर शिफ्ट हो रहा है, जिसमें टाइप 1 डायबिटीज भी शामिल है और यह दुनिया के साथ-साथ भारत में भी बच्चों और किशोरों के बीच बढ़ रहा है। इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। कमजोर समुदायों के बच्चे और युवा सबसे अधिक जोखिम में हैं क्योंकि उन्हें अक्सर वैश्विक NCD लक्ष्यों से बाहर रखा जाता है, इस वजह से उनके इलाज योग्य बीमारियों की सही पहचान नहीं हो पाती और उन्हें समय पर इलाज भी नहीं मिल पाता है।”

डायबिटीज फाइटर्स ट्रस्ट एंड इम्पेशेंट नेटवर्क फेलो की संस्थापक मृदुला कपिल भार्गव पिछले तीन दशकों से अधिक समय से टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित हैं और मरीजों के अधिकारों के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है। इंसुलिन और ब्लड शुगर की जांच बहुत ज़रूरी है, लेकिन महंगे इलाज के कारण कई बार, खासकर युवा लड़कियों और महिलाओं के लिए स्थिति खराब हो जाती है। जब इलाज और समाधान मौजूद हैं, तो ये सभी के लिए सुलभ, उपलब्ध और किफायती होने चाहिए। भारत में इम्पेशेंट नेटवर्क सरकार, यूनिसेफ और दूसरे लोगों से अपील कर रहा है कि टाइप 1 डायबिटीज से जुड़ी नीतियां और समाधान व्यक्तिगत जरूरतों और अनुभवों को ध्यान में रखकर बनाए जाएं।”