नई दिल्ली। Speak with Brain। इसका अर्थ विस्तृत है। बोलने के प्रति सकरात्मक रवैया रखना चाहिए। यानी खुलकर बोलना चाहिए। मन में कोई बात नहीं रखनी चाहिए। इसका मतलब यह नहीं आपकी आप बोलने में सिर्फ जीभ का ही प्रयोग करें। इसमें दिमाग का भी बराबर प्रयोग करें। यानी Speak with Brain। ठीक कहा गया है कि हमेशा तोल-मोल के बोलना चाहिए। इसे ऐसे समझें।
मनुष्य के पास जुबान नाम का इतना तीखा और धारदार शस्त्र हैं,जो अच्छे अच्छो को पराजित कर देता हैं। कहते हैं की बिना हड्डी की जीभ जब बोलने लगती हैं ,तो कइयों की हड्डियां तोड़ देती हैं। हमें बचपन से सिखाया जाता हैं कि पहले सोचो फिर बोलो ,क्योंकि जैसे कमान से निकला हुआ तीर वापस नहीं आता, ठीक उसी तरह मुख से निकला हुआ वचन वापस नहीं लिया जा सकता। शादी, त्योहार, जन्मदिन आदि अवसरों पर जब घर-परिवार के संबंधी, मित्र आदि मिलते हैं, तो माहौल में चुहुलपुहुल, हंसीमजाक, ताने मारना, कटाक्ष करना आदि मुहावरों के प्रयोग का एक स्वाभाविक वातावरण निर्माण करता है।
इतना ही काफी नहीं हमें सदैव सही समय और सही जगह पर सही शब्द का प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करने से न केवल हमारा मूल्य बढ़ेगा, अपितु हम सभी के हृदय में सन्मानित स्थान को प्राप्त कर पाएंगे। परन्तु यह संभव तभी हो पाएगा जब हम बोलने से पूर्व सोचने का संस्कार धारण करेंगे। क्योंकि जैसा हम सोचेंगे, वैसे ही हमारे बोल निकलेंगे। इसलिए भविष्य में आनेवाली दुर्गति से बचने के लिए बोलने से पहले सोचे न की बोलने के बाद। तो अगली बार नहीं अभी से आप दूसरों से तोल-मोल के बोलें।