निशिकांत ठाकुर
देश के पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के पहले चरण के मतदान के लिए उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र दाखिल करना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही इन राज्यों के सभी दलों के नेताओं में भगदड़ मच गई है। वह इसलिए, क्योंकि इस बार कौन जीत रहा है और किस दल में जाने से वह फिर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच सकते हैं, इसकी जद्दोजहद मची है। दलबदलू इन नेताओं के तर्क भी अजीबोगरीब हैं। किसी का कहना है कि पार्टी में उनका सम्मान नहीं हुआ, तो कोई कहता है कि उन्हें उचित पद नहीं मिला। वहीं, किसी का तर्क है कि वह इतने दिनों तक अपमान का घूंट पीते रहे। इसके अलावा और भी अनेकानेक तर्कों से, अपनी वाचाल प्रवृत्ति से मतदाताओं को सम्मोहित करके बरगला देते हैं कि जिससे एक सामान्य मतदाता यह समझने लगता है कि सच में इस ‘महान’ व्यक्ति के साथ ‘अन्याय’ हुआ, जिसके कारण वह ‘समाजसेवा’ नहीं कर पाया। लेकिन, यह बात समझ से परे है कि ऐसे तथाकथित नेता क्या चुनकर केवल सम्मान पाने के लिए ही विधानसभा-लोकसभा में जाते हैं या जनप्रतिनिधि के रूप उनका प्रतिनिधित्व ज्यादा महत्व रखता है? फिलहाल तो यही हो रहा है । जब भी आप देश की राजनीति या उसके बारे में जानना चाहेंगे तो आज इतने राजनेता, जो अब तक विपक्षी घाट का पानी पी रहे थे, वह पाला अदल-बदलकर संभावित सत्तारूढ़ होने जा रही पार्टी के घाट के पानी का स्वाद चखने चले गए हैं । इसी परिपेक्ष्य में डॉ. राम मनोहर लोहिया से जब एक पत्रकार ने जानना चाहा कि आप सरकार की कमियों पर इस तरह हावी रहते हैं, लेकिन यदि आप स्वयं कभी सत्तारूढ़ हुए तो क्या जिनपर आप अंगुली उठा रहे हैं उसे ठीक कर लेंगे, तो डॉ. लोहिया का उत्तर था ‘मेरा काम सरकार की कमियों को बताकर उसे सही रास्ते पर लाना है, लेकिन यदि मैं कभी सत्तारूढ़ होऊंगा और वह सरकार भी सही काम नहीं करेगी तो फिर सरकार को सही रास्ते पर लाने के लिए विपक्ष की कुर्सी पर बैठ जाऊंगा । लेकिन , अब ऐसा कोई जानता के लिए समर्पित जन नायक कहां दिखता है जो जनता के लिए सरकारी सुख छोड़कर विपक्ष में आकर सरकार से जनहित की बात करता हो –सरकार से आंखें मिलाकर जनता का हित जानना चाहता हो ।
अब राज्यवार समझते हैं कि वर्तमान में किस राज्य में किसकी सरकार है। साल 2022 में जिन पांच राज्यों में चुनाव होनेवाले हैं, उनमें पंजाब एकलौता राज्य है, जहां कांग्रेस सत्तारूढ़ है। पंजाब विधानसभा का कार्यकाल 27 मार्च को समाप्त हो रहा है, जिसके चलते साल के शुरू में चुनाव होने हैं। कांग्रेस सूबे में अपनी सत्ता के बचाए रखने के लिए सीएम चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की अगुवाई में जद्दोजहद कर रही है तो आम आदमी पार्टी इस बार नंबर दो से नंबर वन बनने की जुगाड़ में है। वहीं, अकाली दल ने बसपा के साथ हाथ मिला रखा है तो भाजपा ने कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखदेव सिंह ढींढसा की पार्टी के साथ गठबंधन किया है। बता दें कि 117 सीटों वाले पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 77 सीटें जीतकर दस साल के बाद सत्ता में लौटी थी, जबकि शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन केवल 18 सीटों पर सिमट गया था। आम आदमी पार्टी 20 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी दल बनी थी। कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन चार साल के बाद कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया। पंजाब में सरकार बनाने के लिए किसी भी दल या संगठन को 59 का आंकड़ा हासिल करना पड़ेगा ।
40 सीटों वाले गोवा विधानसभा का कार्यकाल 15 मार्च को समाप्त हो रहा है। राज्य में पिछला विधानसभा चुनाव फरवरी 2017 में हुआ था । कांग्रेस 15 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन सरकार नहीं बना सकी थी। भाजपा ने 13 सीटें जीती थीं और एमजीपी, जीएफपी व दो निर्दलिय विधायकों के सहारे सरकार बनाने में सफल रही। मनोहर पर्रिकर गोवा के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन 17 मार्च, 2019 को मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद डॉ. प्रमोद सावंत राज्य के मुख्यमंत्री बने। गोवा का चुनाव 2022 के शुरू में होना है, लेकिन इस बार कांग्रेस और भाजपा ही नहीं, बल्कि ममता बनर्टी की टीएमसी और आम आदमी पार्टी भी अपनी किस्मत आजमाने उतरी हैं। भाजपा गोवा में पिछले 10 साल से सत्ता में है, जिसके चलते उसे सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पूरी ताकत झोंक रखी है। वहीं, कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए हाथ-पांव मार रही है, लेकिन टीएमसी उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा बनी है। कांग्रेस के कई नेता पार्टी छोड़कर टीएमसी का दामन थाम चुके हैं। 2017 में आम आदमी भले ही खाता नहीं खोल सकी थी, लेकिन इस बार किंगमेकर बनने की जुगत में है।
70 सीटों वाली उत्तराखंड विधानसभा का कार्यकाल 23 मार्च 2022 को खत्म हो रहा है, लेकिन सूबे में सियासी हलचल तेज है। यहां कांग्रेस और भाजपा के साथ आम आदमी पार्टी, बसपा और कई छोटे दल किस्मत आजमा रहे हैं। ऐसे में भाजपा के लिए उत्तराखंड चुनाव सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण बना हुआ है, क्योंकि यहां हर पांच साल पर सत्ता बदलने की रिवायत दो दशक से चली आ रही है। ऐसे में कांग्रेस को सत्ता में अपने वापसी करने की उम्मीद दिख रही है तो भाजपा सत्ता परिवर्तन के मिथक को तोड़ने में जुटी है। उत्तराखंड में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 57 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई थी, जबकि विपक्षी दल कांग्रेस को 11 सीटें मिली थीं। त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन चार साल के बाद उन्हें हटाकर भाजपा ने तीरथ सिंह रावत को सत्ता की कमान सौंपी और महज कुछ ही महीने में रावत की जगह पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना दिया गया। ऐसे यह चुनाव पुष्कर धामी के लिए काफी चुनौतीपूर्ण है।
पूर्वोत्तर के 60 सीटों वाले मणिपुर विधानसभा का कार्यकाल 19 मार्च को समाप्त हो रहा है। ऐसे में इससे पहले राज्य में सरकार के गठन की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। 2017 में मणिपुर विधानसभा चुनाव में भाजपा 24 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप उभरी थी और कांग्रेस 17 विधायकों के साथ विपक्षी दल बनी थी। भाजपा ने एनपीपी, एलजेपी और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाया और एन. बीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने थे। ऐसे में भाजपा ने मणिपुर की सत्ता को बचाए रखने के लिए एक बार फिर पूरी ताकत झोंक दी है तो कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए बेताब है।
अब आखिर में देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य तथा जिस रास्ते केंद्रीय सत्ता दिल्ली पहुंचा जाता है, उत्तर प्रदेश की बात। आज इसी राज्य से देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री और न जाने कितने जाने—माने केंद्रीय मंत्री इसी राज्य के रास्ते दिल्ली में विराजमान हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल 14 मई को पूरा हो रहा है। ऐसे में 14 मई से पहले हर हाल में विधानसभा और नई सरकार के गठन की प्रकिया पूरी होनी है। इस राज्य में कुल 403 विधानसभा सीटें हैं। पिछला चुनाव फरवरी-मार्च 2017 में हुआ था और भाजपा की अगुवाई में एनडीए 325 सीटें जीतकर सत्ता में लौटी थी और योगी आदित्यनाथ ने 19 मार्च, 2017 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। सीएम योगी भाजपा के पहले नेता हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है। इसी वजह से पार्टी उन्हीं के चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ रही है। ऐसे में यह उनके लिए अग्निपरीक्षा है। भाजपा अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी है। सूबे में भाजपा की सत्ता को बचाए रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सहित भाजपा नेताओं ने पूरी ताकत झोंक दी है। वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव सूबे में जातीय आधार वाले छोटे दलों के साथ मिलकर भाजपा से दो-दो हाथ करने के लिए उतरे हैं। सपा ने उप्र में आरएलडी, सुभासपा, प्रसपा, जनवादी पार्टी, महान दल सहित करीब एक दर्जन छोटे दलों से गठबंधन किया है। कांग्रेस प्रियंका गांधी की अगुवाई में उप्र चुनाव में उतरी है। प्रियंका महिला कार्ड खेल रही हैं और 40 फीसदी टिकट देने से लेकर उनके लिए तमाम घोषणाएं कर रखी हैं। वहीं, 2022 का चुनाव बसपा के साथ-साथ दलित राजनीति के लिए भी अहम माना जा रहा है। बसपा प्रमुख मायावती ने किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं किया है और 2007 की तरह ब्राह्मण-दलित समीकरण बनाने में जुटी हैं। इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी भी मुस्लिम मतों के सहारे सूबे में अपने पैर जमाने के लिए लालायित हैं। कुल मिलाकर हमें 11 मार्च का इंतजार करना ही होगा, जब मतदाता जागरूकता दिखाते हुए अपने लिए सही, ईमानदार तथा देशहित का भला चाहने वालों को चुनकर उन सबकी सदैव आंखें खोल देंगे जो उन्हें अबतक ठगते आ रहे हैं। बस, महज कुछ दिन और इंतजार कीजिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)