बघेल एक पुलिस अधिकारी के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सुरक्षा में सेवा दे चुके हैं। उन्होंने कहा है कि किसी भी क्षेत्र को ‘‘गढ़’’ नहीं कहा जा सकता क्योंकि राहुल गांधी और ममता बनर्जी जैसी हस्तियों ने भी अपने गढ़ों में हार का स्वाद चखा है। बनर्जी 2021 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम से अपने पूर्व सहयोगी एवं भाजपा उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी से हार गई थीं, जबकि राहुल गांधी को 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी में भाजपा की स्मृति ईरानी ने हराया था।
भाजपा समर्थक आशुतोष त्रिपाठी ने बताया, ‘‘यह सीट अखिलेश के लिए आसान हो सकती है, लेकिन ऐसा नहीं है। बघेल जी को जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है और नरेंद्र मोदी एवं योगी आदित्यनाथ की सरकारों द्वारा गरीबों के लिए शुरू की गई योजनाओं के कारण लोग भाजपा को वापस लाना चाहते हैं।’’
सपा जिलाध्यक्ष देवेंद्र सिंह यादव ने बताया, ‘‘किसी और के लिए कोई मौका नहीं है। चुनाव एकतरफा है। जीत का अंतर (अखिलेश का) 1.25 लाख से अधिक होगा। आप जाकर लोगों से बात करें, आपको वास्तविकता का पता चल जाएगा। यदि आप इतिहास को देखते हैं इस निर्वाचन क्षेत्र में आपको सपा के लिए यहां के लोगों के प्यार और स्नेह का पता चलेगा।’’
करहल सीट 1993 से सपा का गढ़ रही है। हालांकि, 2002 के विधानसभा चुनाव में यह सीट भाजपा के सोबरन सिंह यादव के खाते में गई थी, लेकिन बाद में वह सपा में शामिल हो गए।
सूत्रों के मुताबिक करहल में लगभग 3.7 लाख मतदाता हैं, जिनमें 1.4 लाख (37 प्रतिशत) यादव, 34,000 शाक्य (ओबीसी) और लगभग 14,000 मुस्लिम शामिल हैं। बघेल के लिए सक्रिय रूप से प्रचार कर रहे भाजपा जिलाध्यक्ष प्रदीप चौहान ने कहा, ‘‘अब कोई ‘गुंडा राज’ नहीं है। भाजपा सीट जीतेगी। जाति ही सब कुछ नहीं है, यादवों में भी सपा के प्रति नाराजगी है।’’ उन्होंने विश्वास के साथ कहा, ‘‘इस चुनाव में ‘खामोश इंकलाब’ होगा।’’
सब्जी मंडी के सब्जी विक्रेता प्रदीप गुप्ता के लिए यह चुनाव क्षेत्र के विकास की उम्मीद है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि अखिलेश जी जीतेंगे। यहां के लोग उनकी जीत चाहते हैं जैसे ही वह मुख्यमंत्री बनेंगे, निर्वाचन क्षेत्र में विकास दिखाई देगा। वह ‘घर के लड़का’ हैं। केवल वे ही यहां विकास सुनिश्चित कर सकते हैं।’’ आस-पास के आठ जिलों-फिरोजाबाद, एटा, कासगंज, मैनपुरी, इटावा, औरैया, कन्नौज और फरुखाबाद के 29 निर्वाचन क्षेत्रों को ‘‘समाजवादी बेल्ट’’ माना जाता है।
2012 में जब सपा ने राज्य में सरकार बनाई, तो इन 29 सीटों में से उसने 25 सीटें जीती थीं, जबकि 2017 में चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ अखिलेश के झगड़े के कारण उसे हार का सामना करना पड़ा और केवल छह सीटें मिलीं। अब, चाचा-भतीजे वोट के बंटवारे को रोकने के लिए एक साथ हैं।
इस क्षेत्र को समाजवादी डॉ राम मनोहर लोहिया की ‘‘कर्मभूमि’’ के रूप में भी जाना जाता है। कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष रहे राजनीतिक विश्लेषक उदयभान सिंह को भी लगता है कि करहल में चुनाव एकतरफा होगा। उन्होंने कहा, ‘‘अखिलेश के अलावा, केवल दो उम्मीदवार बचे हैं। इसलिए अब निर्दलीय द्वारा वोट नहीं काटा जाएगा। यह अखिलेश के लिए एकतरफा चुनाव होगा और इसका परिणाम और उनके पक्ष में होगा।’’