Bollywood News, प्रसिद्ध गायिका ऊषा उत्थुप ने कहा, राजनीति और कला के मेल से होगा नुकसान ही

आजकल कला क्षेत्र के कई लोग राजनीतिक गलियारों में जाने से खुद को धन्य मानते हैं। हालांकि, कुछ नामचीन लोग इसे सही नहीं मानते हैं। प्रख्यात गायिका ऊषा उत्थुप का मानना है कि कला और राजनीति का मेल ठीक नहीं है और इससे नुकसान ही होता है।

नई दिल्ली। ऊषा उत्थुप ने कोलकाता में आयोजित एक कार्यक्रम में अपनी जीवनी ‘‘द क्वीन ऑफ़ इंडियन पॉप : द ऑथराइज़्ड बायोग्राफी ऑफ़ ऊषा उत्थुप’’ के अंग्रेजी अनुवाद के विमोचन पर कहा, ‘‘कला और राजनीति का बिल्कुल भी मेल नहीं होना चाहिए। यह किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं है।’’

गायिका की यह जीवनी मूल रूप से ‘‘उल्लास की नाव’’ शीर्षक से विकास कुमार झा द्वारा हिंदी में लिखी गई। अंग्रेजी में इस पुस्तक का अनुवाद लेखक की बेटी सृष्टि झा ने किया है। ऊषा उत्थुप ने वर्ष 1969 से बंगाली, हिंदी, अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में पॉप गाने गाए हैं।

पश्चिम बंगाल में 1986 में वाम मोर्चे की सरकार ने बाढ़ राहत के लिए धन जुटाने के लिए एक संगीत और नृत्य समारोह का आयोजन किया था और उसमें स्थानीय और कई बॉलीवुड सितारों को प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया गया था। उस कार्यक्रम में ऊषा उत्थुप की एक प्रस्तुति के बाद ‘संस्कृति बनाम अपसंस्कृति’ (संस्कृति बनाम पतनशील संस्कृति) के विषय पर व्यापक बहस छिड़ गई थी, जिसकी वजह से उन्हें एक मंत्री के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

अब उस विवाद के तीन दशकों से अधिक समय के बाद, पॉप आइकन ऊषा उत्थुप ने उस प्रकरण को ‘‘अभूतपूर्व’’ करार दिया है, क्योंकि उस समय इस बहस को लेकर कलकत्ता उच्च न्यायालय, मीडिया और तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु गायिका के साथ खड़े थे। उस प्रकरण को याद करते हुए प्रख्यात गायिका ने कहा, ‘‘अगर मैं उन दिनों को याद करती हूं, तो मुझे याद आता है कि कैसे पूरा मीडिया मेरे साथ खड़ा था, तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु मेरे साथ खड़े थे, बंगाल के लोग मेरे साथ मजबूती के साथ खड़े थे। मैं कलकत्ता उच्च न्यायालय को एक कलाकार के अधिकार को बरकरार रखने के लिए धन्यवाद देती हूं। यह एक प्यारी तस्वीर थी, पीछे मुड़कर देखने पर एक अद्भुत तस्वीर…. ।’’