बचपन हर गम से बेगाना होता है फिर भी क्यूं मजबूर हैं बच्चे

बचपन में लाचारी और गरीबी की नजर लग जाती है इस देश के लिये एक अभिशाप बन जायेगा जिससे नां सिर्फ हमको आपको बल्कि पूरे देश और दुनिया इसके बोझ तले खुद को दवा महसूस करेगी।

बचपन हर गम से बेगाना होता है अक्सर इस गीत को हम और आप गुगुनाते हैं लेकिन शायद आपको यह नहीं पता होगा की जिस बचपन के गीत को हम गुनगुनाते हैं पूरी दुनियां में वही बचपन खेलने कुदने के समय में मजदूरी करते जीवन गुजारने को विवश होता है। हाथों में उसके कलम का आना अच्छा लगता है उसको भी स्कूल जाना अच्छा लगता है बाल मजदूरी से उबरने वालों बच्चों का नया जीवन अब इस मंत्र को साकार कर रहा हैं कहते हैं कि बचपन जिंदगी का बहुत खूबसूरत सफर होता है बचपन में कोई चिंता नहीं होती है एक निश्चिंत जीवन का भरपूर आनंद लेना ही बचपन होता है लेकिन कुछ बच्चों के बचपन में लाचारी और गरीबी की नजर लग जाती है जिस कारण से उन्हें बाल श्रम जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना पेंसिल पोर्टल और ऑपरेशन मुस्कान जैसी कई बड़ी पहल से बच्चों को श्रम की दुनिया से बाहर निकालने में सफलता मिली है।तो वहीं आज भी बिहार और उत्तरप्रदेश जैसे राज्य इससे पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाये हैं।

भारत जैसे देश में कैलाश सत्यार्थी जैसे लोग बचपन लूटने वालों से लङाई लङ रहे हैं फिर भी हाल ही में प्रकाशित हुई अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में बाल मजदूरी में बच्चों की संख्या बढ़ कर करोड़ में पहुंच चुकी है जो दो दशक में पहली बार बढ़ी है और कोरोना की वजह से अभी लाखों और बच्चे बाल मजदूरी के जोखिम में हैं। बाल श्रम आज पूरी दुनिया के सामने एक बड़ी समस्या और अपराध है जिसे जड़ से उखाड़ फेंकना बेहद जरूरी है यह बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ है जिसे रोकना हम सबकी जिम्मेदारी है।नहीं तो यह इस देश के लिये एक अभिशाप बन जायेगा जिससे नां सिर्फ हमको आपको बल्कि पूरे देश और दुनिया इसके बोझ तले खुद को दवा महसूस करेगी।