देव दीपावली: आस्था के दीपों से जगमगाता काशी का कोना-कोना

 

वाराणसी (काशी): कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर देव दीपावली के दिन आज काशी अपने अद्भुत सौंदर्य से श्रद्धालुओं और पर्यटकों को मोहित करने के लिए तैयार है। 84 घाटों पर 17 लाख से अधिक दीपों की जगमगाहट से गंगा मैया का श्रृंगार किया जाएगा। देश-विदेश से आए लाखों श्रद्धालु इस दिव्य और उत्साहमय वातावरण का हिस्सा बनने के लिए काशी पहुंचे हैं।

देव दीपावली का आरंभ पंचगंगा घाट से हुआ, जहाँ साधारण दीपोत्सव धीरे-धीरे एक अद्वितीय महोत्सव का रूप लेने लगा। 1985 में मंगला गौरी मंदिर के महंत नारायण गुरु ने घाटों के सौंदर्यीकरण और दीपोत्सव के माध्यम से देव दीपावली को भव्य स्वरूप देने का संकल्प लिया। बाढ़ के बाद घाटों की सफाई के साथ ही दीयों से सजाने का विचार आया, जिसमें जनता से तेल और घी का योगदान लिया गया। प्रारंभ में पंचगंगा घाट और आसपास के घाटों पर दीये जलाए गए, और धीरे-धीरे यह आयोजन प्रमुख घाटों तक विस्तारित हो गया।

1990 तक इस परंपरा में 30 घाट शामिल हो गए थे। इसके बाद, नारायण गुरु के नेतृत्व में सभी घाटों को रोशन करने के लिए केंद्रीय देव दीपावली महासमिति का गठन किया गया। एक दशक में यह आयोजन अपने वर्तमान स्वरूप में पहुँच गया, जहाँ काशी के सभी घाट श्रद्धा और आस्था के दीयों से ऐसे जगमगाते हैं मानो धरती पर स्वर्ग का प्रतिबिंब साकार हो गया हो।

धार्मिक आस्था और सौंदर्य के इस अद्वितीय संगम ने देव दीपावली को एक राष्ट्रीय महोत्सव का रूप दे दिया है, जो हर वर्ष काशी को एक अलौकिक आनंद से भर देता है।

पूर्णिमा पर शुक्रवार की भोर से ही नगर और ग्रामीण अंचलों में स्नान के लिए गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पडी। श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई और दान पूण्य किया।

गंगा घाटों पर स्नान के लिए पहुंचने वाली भीड़ को देखते हुए नगर क्षेत्र में स्थित घाटों पर सफाई के साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से गंगा में बैरिकेडिंग भी कराई गई। घाटों पर महिलाओं के लिए वस्त्र बदलने लिए भी व्यवस्था गई। नगर के पक्का घाट, बरिया घाट, बाबा घाट, संकठा घाट, कचहरी घाट, नार घाट व फंतहां घाट पर कार्तिक पूर्णिमा पर काफी संख्या में श्रद्धालु स्नान के लिए पहुंचे।

पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था, जिसके बाद उन्हें त्रिपुरारी के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान के बाद दान पुण्‍य करने से सभी कष्‍ट दूर होते हैं।