नई दिल्ली। हाल के दिनों में चर्चित राजद्रोह के मुकदमे को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक सरकार का एक ‘‘ उचित मंच ’’ औपनिवेशिक युग के कानून पर फिर से गौर नहीं कर लेता, तब तक राजद्रोह के आरोप में कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए। प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की एक पीठ ने कहा कि देश में नागरिक स्वतंत्रता के हितों और नागरिकों के हितों को संतुलित करने की जरूरत है।
प्रधान न्यायाधीश ने आदेश में कहा, ‘‘ अटॉर्नी जनरल ने पिछली सुनवाई में राजद्रोह कानून के दुरुपयोग के कुछ स्पष्ट उदाहरण दिए थे, जैसे कि ‘‘हनुमान चालीसा’’ के पाठ के मामले में…इसलिए कानून पर पुनर्विचार होने तक, यह उचित होगा कि सरकारों द्वारा कानून के इस प्रावधान का उपयोग न किया जाए।’’
असल में, कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम में इस कानून को खत्म करने की वकालत की थी। उसके बाद से भाजपा और कांग्रेस के कई नेताओं ने इस संदर्भ में अपनी प्रतिक्रियाएं भी दी थीं। बुधवार को पीठ ने केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक राजद्रोह कानून पर ‘‘पुनर्विचार’’ नहीं हो जाता, तब तक राजद्रोह का आरोप लगाते हुए कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए। पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘ हम उम्मीद करते हैं कि जब तक कानून के उक्त प्रावधान पर फिर से विचार नहीं किया जाता है, तब तक केंद्र तथा राज्य नई प्राथमिकियां दर्ज करने, भादंसं की धारा 124ए के तहत कोई जांच करने या कोई दंडात्मक कार्रवाई करने से बचेंगे।’’