नई दिल्ली। भारत सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएमएचएस) के माध्यम से 2016 में मानसिक विकारों की व्यापकता का आकलन किया। सर्वेक्षण के अनुसार, 18 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों में मानसिक विकारों की दर लगभग 10.6 प्रतिशत है, जो देश में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता को दर्शाता है।
इस दिशा में सरकार ने कई महत्वपूर्ण पहल की हैं। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) के तहत, जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (डीएमएचपी) को 767 जिलों में लागू किया गया है। इस कार्यक्रम के तहत आत्महत्या रोकथाम, कार्यस्थल तनाव प्रबंधन, स्कूलों और कॉलेजों में जीवन कौशल प्रशिक्षण और परामर्श जैसी सेवाएं प्रदान की जाती हैं। डीएमएचपी के अंतर्गत जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) पर बाहरी रोगी सेवाएं, मूल्यांकन, परामर्श, दवाएं और अन्य सहायता उपलब्ध कराई जाती हैं। इसके अतिरिक्त, 10 बिस्तरों वाली इन-पेशेंट सुविधा भी प्रदान की जाती है।
सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता बढ़ाने के लिए तृतीयक देखभाल घटक के तहत 25 उत्कृष्टता केंद्रों को मंजूरी दी है और 47 पीजी विभागों की स्थापना/सुदृढ़ीकरण के लिए 19 सरकारी मेडिकल कॉलेजों को सहायता प्रदान की है। 22 नए एम्स में भी मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था की गई है।
देश में 47 सरकारी मानसिक अस्पताल हैं, जिनमें तीन केंद्रीय संस्थान प्रमुख हैं: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु; लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई क्षेत्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान, तेजपुर; और केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान, रांची।
सरकार ने प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा स्तर पर भी सुधार किए हैं, जिसमें 1.73 लाख उप स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में अपग्रेड किया गया है। इन मंदिरों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को भी शामिल किया गया है।