Guest Column : पुलिस और राजनीति… तेल और पानी का मेल

आम जनता पुलिस से अपने बचाव के लिए मदद मांग सकती है और रिपोर्ट दर्ज करवा सकती है। पुलिस का कर्तव्य और दायित्व है कि वह समाज में चोरी, डकैती, हत्या, दंगे जैसे अपराधों पर नियंत्रण के साथ समाज में शांति व्यवस्था बनाए रखे। देश की सारी संपत्ति, सार्वजनिक जगहों की सुरक्षा पुलिस करती है। सभी नागरिकों के जान की सुरक्षा करना पुलिस की अहम जिम्मेदारी है।

निशिकांत ठाकुर

हर किसी का सम्मान नहीं किया जाता और हर कोई सम्मान का हकदार भी नहीं होता। दरअसल, सम्मान हृदय का भावोद्गार होता है जो उस खास के प्रति व्यक्त किया जाता है, जिसका संपर्क—सान्निध्य हमें उल्लासित करता है, प्रेरणा देता है, मार्गदर्शन करता है और हौसला बढ़ाता है। डर से किया गया सम्मान महज मजबूरी है, लाचारी है, बेबसी है। हृदय से स्वयं प्रकट हुआ स्नेह अथवा अपनापन ही असली सम्मान है। उसके लिए जरूरी नहीं कि वह पास ही हो। वह कहीं भी हों, उनकी चर्चा या स्मरण मात्र से उनके प्रति आदर से मस्तक का झुक जाना ही सम्मान है। भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमण ने पुलिस के प्रति आमजन के बीच गिरते सम्मान पर एनसीआर में पिछले दिनों आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि निराशा के समय में भी अब लोग पुलिस के पास जाने से कतराते हैं, क्योंकि निष्पक्षता की कमी और राजनीतिक वर्ग के साथ घनिष्ठ संबंध के कारण खाकी वर्दी का इकबाल काफी कम हुआ है। मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि कुछ पुलिसवालों की भ्रष्टाचारी और उनकी ज्यादतियों के कारण लोगों में उनको लेकर विश्वास कम हुआ है। उन्होंने कहा, ‘यही नहीं, अक्सर पुलिस अधिकारियों ने शासन परिवर्तन के बाद परेशान किए जाने की शिकायत की है।’ चीफ जस्टिस ने कहा, ‘पुलिस को राजनीतिक वर्ग के साथ गठजोड़ को तोड़कर सामाजिक वैधता और जनता के विश्वास को फिर से हासिल करने का प्रयास करना चाहिए। उनको नैतिकता और अखंडता के साथ खड़ा होना चाहिए। यह सभी संस्थानों के लिए सही है।’ मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘पुलिस अधिकारी आधारभूत संरचना और श्रमशक्ति की कमी, निम्न स्तर पर अमानवीय स्थिति, आधुनिक उपकरणों की कमी, सबूत जुटाने के संदिग्ध तरीके, रूलबुक का पालन करने में विफल रहे हैं। अधिकारियों की जवाबदेही की कमी ऐसे मुद्दे हैं, जो पुलिस व्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं।’

यहां इस घटना का उल्लेख करना आवश्यक है कि गाजियाबाद के एसएसपी पवन कुमार को शासन ने पिछले महीने निलंबित कर दिया। जिले में पहली बार पद पर रहते हुए कोई एसएसपी इस प्रकरण में निलंबित हुआ है। उनके निलंबित होने के पीछे का कारण यह बताया जा रहा है कि उन्होंने बढ़ते हुए अपराध पर नियंत्रण नहीं किया। साथ ही आम जनता से बेहतर तालमेल की कमी के अलावा भाजपा नेताओं से उनकी टकराहट को प्रमुख कारण माना जा रहा है। 2009 बैच का यह आईपीएस अधिकारी सात महीने के अपने गाजियाबाद कार्यकाल में कई बार चर्चा में रहे। कई कारणों से उनकी चर्चा भी हुई। अब इस सच्चाई की जांच तो होगी ही और सच क्या है, यह भी एक—न—एक दिन सामने तो आएगा ही, लेकिन यह बात तो ठीक ही है कि जिन्हें जनता के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए, वे जनता से कोसों दूर चले जाते हैं। एक अपनापन का भाव पुलिस और नागरिक के बीच होने की बात कही जाती है, उस मामले में वे शून्य हो जाते हैं। राजनीतिज्ञ तो लगभग उन्हें अपना गुलाम ही समझने लगते हैं और यदि वह उनके इशारे पर कुछ करने से आनाकानी करते हैं तो फिर उनका हश्र यही होता है जो गाजियाबाद के एसएसपी पवन कुमार का हुआ। कहा तो यही जा रहा है सत्तासीन दल के कुछ नेताओं की शिकायत पर उन्हें निलंबित किया गया, उन्हें अपमानित किया गया। अब ऐसी स्थिति में पुलिस अधिकारी करे तो क्या! निश्चित रूप से इस पर भी देश के माननीय प्रधान न्यायाधीश को विचार करना चाहिए। गाजियाबाद के एसएसपी पर गाज गिरना तो एक उदाहरण है, जबकि देश के कई पुलिस अधिकारी ऐसे हैं जो अपनी नौकरी बचाने के लिएं सत्तासीन की जी-हजूरी करने को मजबूर हो जाते हैं।

दरअसल, हम पुलिस की भूमिका के बारे में पुलिस सेवाओं की शर्तों से अनभिज्ञ रहते हैं। भारतीय पुलिस को हमारी सुरक्षा के असीमित अधिकार दिए गए हैं। जिस प्रकार सीमा पर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हमारे जवान दिन—रात लगे रहते हैं, उसी प्रकार आंतरिक सुरक्षा के लिए हमारी पुलिस भी सदैव तत्पर रहती है। देश के अंदर की सुरक्षा और कानून—व्यवस्था की देखरेख पुलिस करती है। समाज में किसी भी प्रकार के अपराध को रोकना पुलिस का कर्तव्य है। लोग कभी भी अपनी सुरक्षा या किसी भी प्रकार की गंभीर समस्या के खिलाफ शिकायत पुलिस से कर सकती है।

राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति कितना लगाव तथा समर्पण पुलिस का होता है, इसका एक ज्वलंत उदाहरण बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पाण्डेय को लिया जा सकता है। गुप्तेश्वर पाण्डेय 1987 बैच के आईपीएस हैं। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत के मामले में बिहार सरकार का खुलकर पक्ष लेने के कारण वह देशभर में चर्चित हुए थे। बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पाण्डेय पहले प्रदेश में ‘रॉबिनहुड’ की भूमिका में नजर आते थे। अपने उच्च पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर सत्ता लोभ के कारण उन्होंने राजनीति में कदम रखा और नेता बन गए। पुलिस की वर्दी का त्याग करके नेता का रूप धारण करने के बाद भी बिहार की विवादित राजनीति के कारण उन्हें वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में टिकट से वंचित रहना पड़ा। अब पिछले कुछ दिनों से वह बिल्कुल नए अवतार में नजर आ रहे हैं। गेरुआ वस्त्र धारण करके गुप्तेश्वर पाण्डेय अब कथावाचक बन गए हैं। देशभर के शहरों के मंदिरों में घूम—घूम कर आध्यात्मिक प्रवचन देते हैं। ऐसा होता है पुलिस का राजनीतिज्ञों के साथ संबंध। अधिकारी जानते हैं कि यदि इन राजनीतिज्ञों को साधकर नहीं रखा गया तो उनके भविष्य का हश्र क्या होगा और फिर बचाने वाला कोई और नहीं होगा, उन्हें उन्हीं राजनीतिज्ञों के शरणागत होना पड़ता है।

पुलिस की राजनीतिज्ञों से सटकर या हटकर रहने में उत्तर प्रदेश के पूर्व आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर का नाम लिया जा सकता है। कहा जाता है कि उनका संबंध कुछ राजनीतिज्ञों के बहुत ही करीबी थे और कुछ राजनीतिज्ञों का खुलकर विरोध भी करते रहे हैंं। फिर परिणाम यह हुआ कि उन पर प्राथमिकी दर्ज कराई गई और उन्हें घसीटकर जेल में बंद कर दिया गया। फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से उन्हें जमानत मिल गई है। उन पर दुष्कर्म के आरोपी सांसद अतुल राय को बचाने और पीड़िता के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र रचने का आरोप था। दुष्कर्म पीड़िता और उसके दोस्त मुकदमें के गवाह सत्यम राय ने सुप्रीम कोर्ट के बाहर 16 अगस्त को वीडियो बनाया। जिसमें अमिताभ ठाकुर पर आरोप लगाया था। इसके बाद दोनों ने आत्मदाह करने की कोशिश की। गंभीर हालत में उन्हे अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां 21 मई को गवाह सत्यम राय और 25 मई 2021 को दुष्कर्म पीड़िता की मौत हो गई। हालांकि अतिाभ ठाकुर को हाईकोर्ट ने जमानत दे दी है। अमिताभ ठाकुर के खिलाफ लखनऊ के हजरतगंज थाने में मामला दर्ज हुआ था। यह भी बताया गया था कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ गोरखपुर से चुनाव लड़ने की घोषणा करने के बाद अमिताभ ठाकुर को 21 अगस्त, 2021 से हाउस अरेस्ट कर लिया गया था । 21 अगस्त को ही वह गोरखपुर और अयोध्या के दौरे पर जाने वाले थे। शुक्रवार को उनके खिलाफ हजरतगंज पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया। जिसके बाद उनको गिरफ्तार कर लिया गया था।

एक साथ देश के पांच राज्यों में जैसे ही विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई थी, उसी दिन पंजाब में सात आईपीएस अफसरों और दो पीपीएस अफसरों का तबादला हो गया। इनमें फिरोजपुर के एसएसपी हरमनदीप सिंह हंस का नाम भी शामिल है। ज्ञात हो कि दो दिन पहले ही जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फिरोजपुर जा रहे थे तब उनके काफिले को रोक दिया गया था। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसे पीएम की सुरक्षा में चूक का मामला बताया था और उसके बाद से ही फिरोजपुर के एसएसपी विवादों में थे। बहरहाल फिरोजपुर के एसएसपी हरमनदीप सिंह हंस की जगह अब डॉ. नरेंद्र भार्गव को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। डॉ. नरेंद्र भार्गव सुलझे हुए पुलिस अधिकारी हैं और गृह मंत्रालय का उन पर विश्वास जताना उनके लिए गौरव की बात है। वैसे स्थानांतरण तो एक नियमित प्रक्रिया है, लेकिन प्रधानमंत्री के काफिले का सड़क के बीचों बीच रुक जाना वैसे तो पुलिस की लापरवाही को तो निश्चित रूप से दर्शाता है। जो भी हो, अब पंजाब में सरकार बदल गई है तो अब पूरा का पूरा महकमा भी बदल जाएगा। फिर भी जो वज्रपात होगा, वह तो पुलिस महकमे पर ही होगा।

यह तो कुछ राज्यों की वह घटना है जो मीडिया के कारण चर्चा में आई, लेकिन जो खबर सुर्खियों में नहीं आ सकी उनकी संख्या कहीं अधिक ही होगी। आखिर अपनी योग्यता के बल पर संविधान द्वारा प्रदत्त अकूत अधिकारों के बावजूद पुलिस अधिकारियों को राजनीतिज्ञों के हाथ की कठपुतली बन कर उनके ही निर्देशों पर चलना पड़ता है। ऐसी स्थिति में उनका आमजन के प्रति नजरिया बदलना स्वाभाविक है, लेकिन जब राजनीतिज्ञों को अपने गुनाहों को ढकने का समय आता है तो वे बहुत चालाकी से कन्नी काटकर अलग हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में केवल एक ही मार्ग है कि देश की सबसे बड़ी सभा सांसद में कोई नियम-कानून बने और न्यायपालिका उसके पालन पर कठोरता से अपना नियंत्रण रखे, तभी पुलिस का राजनीतिज्ञों के साथ कठपुतली बनकर रहने का खेल खत्म हो सकेगा।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)