Happy Birthday : आज है सीएम नीतीश कुमार का जन्मदिन, लोग दे रहे हैं उन्हें शुभकामना

जर्मन दार्शनिक ओटो वॉन बिस्मार्क का एक बहुत ही प्रसिद्ध वाक्य है ‘‘ असंभव को संभव बनाने की कला ही राजनीति है’’ और आधुनिक राजनीति के माहिर शिल्पकार नीतीश कुमार से बेहतर इन शब्दों को कौन समझ सकता है। वर्तमान में बिहार की राजनीति देखें तो नीतीश कुमार के बगैर इसकी कल्पना करना मुमकिन नहीं है।

पटना। अपने बूते राजनीति में एक अलग मुकाम बनाने वाले बिहार के मुख्यमत्री नीतीश कुमार का आज जन्मदिन है। नीतीश कुमार की राजनीति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2020 में हुए विधान विधान सभा चुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी रहने के बावजूद वह मुख्यमंत्री बने हुए हैं। नीतीश को समय के साथ चलना और शांति से अपने विरोधियों को चित करने में माहिर माना जाता है। शायद यही कारण है कि बिहार में वह पिछले 17 सालों से एक छत्र राज करते आ रहे हैं। भले ही नीतीश कुमार की पार्टी जदयू पहले जैसा नहीं रही लेकिन उससे नीतीश के कद को बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है। सियासत की नजाकत को समझने वाले नीतीश बिहार में 7 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। भले ही उन्हें विपक्ष की ओर से कुर्सी कुमार कहा जाता हो लेकिन जनता नीतीश कुमार के साथ चुनाव दर चुनाव खड़ी रही है। मंडल की राजनीति से नेता बनकर उभरे नीतीश कुमार ने छात्र आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। नीतीश कुमार को बिहार को अच्छा शासन मुहैया कराने का श्रेय दिया जाता है।

जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले आंदोलन में अपने साथ राजनीति में कदम रखने वाले लालू प्रसाद और राम विलास पासवान के विपरीत कुमार को लंबे समय तक चुनावी सफलता नहीं मिली थी। उन्हें 1985 के विधानसभा चुनाव में लोक दल के उम्मीदवार के तौर पर हरनौत विधानसभा सीट से पहली बार सफलता मिली, हालांकि उस चुनाव में कांग्रेस ने भारी बहुमत हासिल किया था। यह चुनाव तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ महीने बाद हुआ था। पहली चुनावी जीत के चार साल बाद वह बाढ़ लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए। यह वही दौर था जब सारण से लोकसभा सदस्य रहे लालू प्रसाद पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। उस वक्त जनता दल के भीतर मुख्यमंत्री के लिए नीतीश ने लालू का समर्थन किया था। इसी दौरान नीतीश ने भी 1990 के दशक के मध्य में ही जनता दल और लालू से अपनी राह अलग कर ली तथा बड़े समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस के साथ समता पार्टी का गठन किया। उनकी समता पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया और नीतीश ने एक बेहतरीन सांसद के रूप में अपनी पहचान बनाई तथा अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में बेहद ही काबिल मंत्री के तौर पर छाप छोड़ी।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जद(यू) को बड़ी हार का सामना करना पड़ा और भाजपा ने बिहार से बड़ी जीत हासिल की। नीतीश ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया। करीब एक साल के भीतर ही मांझी का बागी रुख देख नीतीश ने फिर से मुख्यमंत्री की कमान संभाली। 2015 के चुनाव में वह राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़े और इस महागठबंधन को बड़ी जीत हासिल हुई। नीतीश ने अपनी सरकार में उप मुख्यमंत्री एवं राजद नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि कुछ घंटों के भीतर ही भाजपा के समर्थन से एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बने। उन्हें नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक चुनौती के तौर पर देखने वाले लोगों ने नीतीश के इस कदम को जनादेश के साथ विश्वासघात करार दिया। हालांकि, वह बार-बार यही कहते रहे कि ‘मैं भ्रष्टाचार से समझौता कभी नहीं करूंगा।’ लेकिन मैकेनिकल इंजीनियर नीतीश कुमार को इस बार अपनी गठबंधन की सरकार चलाने के लिए पहले के मुकाबले कहीं अधिक राजनीतिक कौशल की जरूरत पड़ेगी क्योंकि आंकड़ों की बिसात पर इस बार उनकी पार्टी का पलड़ा गठबंधन सहयोगी भाजपा के मुकाबले कुछ हल्का है।