बेबस राहुल ! कांग्रेस से कब तक बाहर होंगे संघ-भाजपा के स्लीपर सेल

 

रितेश सिन्हा

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के गुजरात में दिए गए बयान के बाद उहापोह की स्थिति है। गैर-कांग्रेसी पृष्ठभूमि व स्लीपर सेल की पहचान वाले नेता एआईसीसी एवं प्रदेश कांग्रेस में टीम राहुल के लिए चुनौती हैं। राहुल गांधी सार्वजनिक मंच पर अपने बयानों से कार्यकर्ताओं की ताली बटोर लें, पर हकीकत ये है कि इन स्लीपर सेल से जुड़े नेताओं पर कार्यवाही करना उनके बूते से बाहर है। ग्रुप-23 में शामिल नेताओं का समूह का मुखिया भले ही दुनिया छोड़ चुका हो, मगर उनके कारिंदे मजबूती से कांग्रेस को आज भी दबोचे हुए हैं। राहुल की रणनीति को समय-समय पर झटका देते रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की इसमें मौन सहमति झलकती है।
बिहार में स्लीपर सेल की सक्रियता भांपते हुए राहुल गांधी ने खड़गे की अध्यक्षता में होने वाली बैठक को रद्द करवाते हुए कन्हैया कुमार की यात्रा शुरू करवा दी। प्रदेश अध्यक्ष का एक सार्वजनिक टेप गूंज रहा है जिसमें उन्होंने कांग्रेसी नेताओं को भाजपा नेता के अभिनंदन करने का आदेश दिया था। राहुल राजद सुप्रीमो के उस बयान से भी खासे नाराज हैं जिसमें लालू यादव ने ममता का राहुल विरोध पर समर्थन किया था। इसके बाद राहुल ने बिहार में दो बैठकें कर प्रदेश में एकला चलो की राजनीति को हवा देते हुए लालू के पुराने साथी रहे जनता दल की पृष्ठभूमि वाले मोहन प्रकाश को हटवा दिया था। आनन-फानन में कम अनुभवी और यूथ कांग्रेस की पृष्ठभूमि वाले कृष्णा अल्लावरू को प्रदेश की कमान दे दी।
लालू ने उनको साधने के लिए अपने समधी कैप्टन अजय यादव का सहारा भी लिया है, मुलाकात भी हुई, कुछ बात हुई मगर देर हो गई। टीम राहुल ने पलायन रोको नौकरी दो यात्रा से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष की विदाई लगभग तय करते हुए के राजू की रिपोर्ट पर 17 सालों तक एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस की कमान संभालने वाले बिहार में फायर ब्रांड नेता के हाथ में कमान देने का फैसला कर चुके थे। ऐन मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने अड़ंगा लगाकर इसे लटका दिया। राहुल ने खड़गे को दांव देते हुए यात्रा शुरू करवा दी। उधर यूपी में कांग्रेस को खासा नुकसान पहुंचा चुके प्रियंका गांधी के खासमखास सचिव संदीप सिंह की विदाई की सूचना की चर्चाएं हैं।
सूत्रों की माने तो वायनाड सांसद के सचिव का लोकसभा एंट्री पास छीन लिया गया है। यूपी में अच्छे-खासे समर्थन के बावजूद पार्टी को चौपट करने का श्रेय इन्हीं को है। दिल्ली में भाजपा के स्लीपर सेल का तमगा प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव के माथे पर है। ये पंजाब, उत्तराखंड और राजधानी दिल्ली में पार्टी की बर्बादी जिम्मेदार हैं। है। दिल्ली में बड़े नेताओं की मौजूदगी के बाद भी ये महानुभाव किसके बूते सीडब्लूसी जैसी महत्वपूर्ण इकाई के सदस्य और दो राज्यों के प्रभारी बने हुए थे, ये सवाल दिल्ली के नेता एक-दूसरे से पूछते हैं। हरियाणा में भूपेंद्र हुड्डा पर भले ही आरोप हों, मगर उनके बूते ही कांग्रेस वहां दिखाई भी देती है। कुमारी शैलजा ने हरियाणा के अलावा जीते हुए प्रदेश छत्तीसंगढ़ से कांग्रेस की विदाई तय कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
हरियाणा चुनाव में शैलजा ने सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस को झटका दिया। बावजूद इसके खड़गे की मेहरबानी से वे आज भी बतौर महासचिव हैं। मप्र में लोकप्रिय प्रभारी जयप्रकाश अग्रवाल की मेहनत पर पानी फेरते हुए रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कांग्रेस को घुटनों पर ला दिया था। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह, जो एक जमाने में हीरो थे, अपने ही प्रदेश में जीरो हो गए हैं। पांच बार राज्यसभा सांसद रहे सुरेश पचौरी पलटीमार बनकर भाजपाई हो गए। देखा जाए तो भाजपा के स्लीपर सेल बने कांग्रेसी ही मलाई चाट रहे हैं।
कांग्रेस का दुर्भाग्य यूपी, बिहार, झारखंड, ओडिशा के प्रभारी व प्रदेश अध्यक्ष, महाराष्ट्र के नेता सदन, प्रदेश का बेड़ा गर्क करने वाले और हालिया हटाए गए प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले की पृष्ठभूमि भी गैर-कांग्रेसी रही है। इन नेताओं की नियुक्तियां कौन करवाता है, यह सवाल कांग्रेस में आम चर्चा में है। कांग्रेस विरोध की राजनीति करने वाले ये नेता पार्टी के सरदार हैं। दलित के नाम पर कांग्रेस में अच्छा-खासा कारोबार चल रहा है। प्रदेशों में कांग्रेस की प्रोपर्टी की बिक्री जारी है। कोषाध्यक्ष अजय माकन की खामोशी सवाल खड़े करती है। खड़गे की कांग्रेस में दलित के नाम पर दलित-क्रिश्चयन की पृष्ठभूमि लिए छुटभैये नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर पार्टी का बेड़ा गर्क किया जा चुका है। किसान कांग्रेस अध्यक्ष तो जेल काटने के अलावा कुर्की जब्ती तक झेल चुके हैं, मगर कांग्रेस कार्यालय में इनकी तख्ती बरकरार है। जेल में रहते हुए बिहार के प्रभारी सचिव संगठन को मजबूत कर रहे थे।
कांग्रेस में पहले कभी भी इतनी घटिया सोच नहीं थी। सार्वजनिक रूप से लोकसभा चुनाव खर्च के लिए मिली राशि छीनने वाले प्रभारी महासचिव और सचिव आज भी संगठन में उच्च पदों पर हैं। इनका साथ देने वाले साधारण कार्यकर्ता को इनाम के तौर पर चंडीगढ़ और हिमाचल का प्रभारी सचिव तक बनाया गया। कांग्रेस अध्यक्ष की जानकारी में संगठन मंत्री केसी वेणुगोपाल किसके इशारे पर इनको अंजाम दे रहे हैं। हद तो तब हुई जब जगदंबिका पाल के निजी ड्राइवर और दिल्लीनिवासी को यूपी प्रभारी की कृपा से लोकसभा का टिकट मिला था ताकि भाजपा की जीत सुनिश्चित की जा सके। राहुल भले ही सदन से सड़क की सार्वजनिक सभाओं में तालियां बटोर लेते हों, मगर आज भी पार्टी में उनकी ऐसी हैसियत नहीं कि नकारा और भाजपाई स्लीपर सेल पर कोई कार्यवाही कर सके।
एआईसीसी में ये स्लीपर सेल संगठन में कीमत चुकाकर पद खरीदता है। पद के बूते राज्यसभा खीच लेता है। फिर पद बेचो, टिकट बेचो का खेल शुरू होता है। कांग्रेस जोर-शोर से हर चुनाव में उतरती है। विपक्ष से बिका नेतृत्व, नकारा प्रत्याशियों के साथ पराजित होकर ईवीएम पर ठीकरा फोड़ने बयानवीर सामने आते हैं। चुनाव मंथन के नाम पर मीटिंग्स होती है। मजे की बात देखिए कि सब कुछ तय होता है, हार की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता। कुछ वकील जो कांग्रेसी नेता बने हुए हैं, वे कोर्ट-कचहरी में खाना-पूर्ति कर ठंडे पड़ जाते हैं। सोनिया गांधी के बाद केवल राहुल गांधी ही ऐसे कांग्रेस अध्यक्ष थे जिन्होंने हार ही जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था।
राहुल की परिपाटी पर चलते हुए महाराष्ट्र में महासचिव, पूर्व एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश चैन्नीथला ने ही हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दिया था। उनके इस्तीफ ने अन्य नेताओं पर भी इस्तीफे का दवाब बनाया था। राजनीति के चतुर खिलाड़ी खड़गे, जिन्होंने 15 सालों तक महाराष्ट्र का प्रभार देखा था, तब वहां कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। उनके रहते हालात ऐसे बन गए कि आज वहां एमएलए एक हाथ की अंगुली पर गिने जा सकते हैं। हम नहीं सुधरेगे की तर्ज पर मल्लिकार्जुन खड़गे और उनके सिपाहसलार कांग्रेस को धकेल रहे हैं। भाजपा की लोकप्रियता भले कम हुई हो, मगर कांग्रेस का नकारा संगठन और भ्रष्ट नेताओं के बूते मोदी टीम अपना झंडा बुलंद किए हुए है। हालात ऐसे ही रहे तो खड़गे और राहुल की कांग्रेस 2029 के लोकसभा चुनाव आते-आते केवल दहाई के आंकड़े में ही सिमट कर रह जाएगी।