काम से अधिक राजनीतिक कारणों से हुआ इनके विभाग का फेरबदल

सुभाष चंद्र

केंद्र सरकार ने अपने दो मंत्रियों के विभागों को बदल दिया है। प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर महामहिम द्वारा यह निर्णय लिया जाता है। सो, अब राजस्थान के सांसद श्री अर्जुन राम मेघवाल को देश के नए कानून मंत्री के रूप में स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया हैं। कैबिनेट मंत्री का दर्जा तो नहीं दिया गया, लेकिन स्वतंत्र प्रभार देकर उन्हें खुला मैदान दिया गया है। जिस पर वह जितना चाहें, काम कर सकते हैं। वहीं, अरुणाचल प्रदेश से आने वाले श्री किरन रिजीजू से कानून मंत्रालय लेकर उन्हें भू-विभाग विभाग का मंत्री बनाया गया है।
ऐसा नहीं है कि कानून मंत्री का स्वतंत्र प्रभार मोदी सरकार में दिया गया है। इससे पहले महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के लोकसभा सदस्य रमाकांत खलप को 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल की सरकार में कानून राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभारद्) बनाया गया था। बाद में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में अरुण जेटली 2000 से 2002 तक लगभग दो साल इसी पद पर रहे।
सोशल मीडिया पर भले ही इसे प्रमोशन और डिमोशन के तौर पर कई पोस्ट किए गए हों, लेकिन इसके पीछे केंद्र सरकार के रणनीतिकारों की राजनीतिक सूझ-बूझ और आने वाले चुनावों में उसका लाभ लेने की मंशा दिखती है। राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस सत्ता में है। मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत के खिलाफ राज्य के उपमुख्यमंत्री के रूप में जनता के बीच पैठ बनाने वाले नेता श्री सचिन पायलट ने मोर्चा खोला हुआ है। इसका लाभ भाजपा लेने की फिराक में है। हाल ही में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा की उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा है। इसलिए सीधे सादे और मितव्ययी की छवि लिए श्री अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्रालय देकर जनता में बड़ा संदेश देने की कोशिश की गई है। दरअसल, संस्कृति मंत्रालय से कानून मंत्रालय को बड़ा माना जाता है।

रिजिजू बौद्ध धर्म से आते हैं और मेघवाल भी अनुसूचित जाति से आते हैं। अर्जुन राम मेघवाल राजस्थान के बीकानेर से लोकसभा सांसद हैं। वह तीसरी बार सांसद चुने गए हैं। ऐसे में संभव है कि एक तरफ रिजिजू का फोकस अरुणाचल प्रदेश करने और इधर, राजस्थान में विधानसभा चुनावो के मद्देनजर मेघवाल की पद्दोन्नति करके भाजपा राजनीतिक फायदा उठाने की उम्मीद कर रही हो।

अव्वल तो यह भी है कि मेघवाल की जीवन यात्रा बहुत सारे लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है। मेघवाल ने राजस्थान के बीकानेर में रॉबर्ट वाड्रा के कथित अवैध भूमि सौदे को प्रकाश में लाने का काम किया था, जिसके बाद वह राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गए थे। अर्जुन राम मेघवाल के राजनीतिक जीवन की शुरुआत साल 2009 में हुई थी, जब भाजपा के टिकट पर बीकानेर लोकसभा से पहला चुनाव जीता था। इसके बाद साल 2014 के लोकसभा चुनाव में दूसरी बार सांसद निर्वाचित हुए। केन्द्र सरकार में वित्त व कंपनी मामलात राज्य मंत्री संसदीय कार्यमंत्री, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण राज्य मंत्री रहे। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीकानेर से लगातार तीसरी बार सांसद निर्वाचित हुए।बताया जाता है कि केंद्रीय मंत्री को सरकार की तरफ से कार दी गई है, लेकिन वह इसका इस्तेमाल करने की बजाय साइकिल से चलना ज्यादा पसंद करते हैं। वह शपथ ग्रहण समारोह में राष्ट्रपति भवन भी साइकिल से ही पहुंचे थे। पूर्व नौकरशाह होने से सरकारी कामकाज की अच्छी समझ, वित्त मंत्रालय के राज्य मंत्री रहते हुए अच्छा काम किया। मेघवाल को प्रधानमंत्री मोदी की पसंद माने जाते हैं।

अर्जुन राम मेघवाल ने कामकाज संभालने के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘मेरी शीर्ष प्राथमिकता सभी को त्वरित न्याय दिलाने की होगी।’ एक सवाल के जवाब में मेघवाल ने कहा कि सरकार और न्यायपालिका के बीच कोई टकराव नहीं है। रीजीजू ने मेघवाल से मुलाकात की और नयी जिम्मेदारी के लिए शुभकामना दी।

वहीं, हम श्री किरन रिजिजू की बात करें, तो उनके कई बयानों से सरकार और न्यायपालिका की टकराहट का अंदेशा हो रहा था। भाजपा इसको लेकर गंभीर हो रही थी। कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर किरन रिजिजू लगातार न्यायपालिका पर सवाल उठा रहे थे। सार्वजनिक तौर पर वह न्यायपालिका और न्यायाधीशों को लेकर तंज कस रहे थे। इससे न्यायपालिका और सरकार के बीच की दूरियां बढ़ने लगी थीं। कानून मंत्री रहते हुए किरेन रिजिजू लगातार न्यायपालिका पर सवाल उठा रहे थे। उधर, न्यापालिका भी इस मसले पर गंभीर थी। पिछले कुछ दिनों में सुप्रीम कोर्ट के कई ऐसे फैसले आए, जो एक तरह से केंद्र सरकार के खिलाफ ही थे। ऐसे में अगर रिजिजू और न्यायपालिका के बीच का ये विवाद आगे भी जारी रहता तो आने वाले दिनों में केंद्र सरकार को ज्यादा फजीहत का सामना करना पड़ सकता था। अगले साल लोकसभा चुनाव भी है। इसलिए संभव है कि सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। अगले साल अप्रैल में ही अरुणाचल प्रदेश में भी चुनाव होने हैं। ऐसे में संभव है कि इसकी तैयारियों के लिए रिजिजू को फ्री किया गया हो। कानून मंत्री रहते हुए वह ज्यादा समय अरुणाचल प्रदेश में नहीं दे सकते थे।