संघ प्रमुख की बताई राह पर चल कर भारत बनेगा विश्व गुरु

भारत को परमवैभव संपन्न शक्ति शक्ति राष्ट्र बनाना ही उनका एकमात्र लक्ष्य है जो संपूर्ण विश्व को सुख-शांति का वह रास्ता दिखा सके जिस पर चले बिना विश्व के कल्याण की कल्पना नहीं की जा सकती। संघ प्रमुख के अनुसार भारत अब दुनिया में ऐसे राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा है जहां सारे सारी दुनिया के लोग आकर चरित्र की शिक्षा लेकर अपने देश लौटेंगे और वहां की भाषा, पूजा पद्धति और भूगोल के अनुरूप मानवता का काम करेंगे।

कृष्णमोहन झा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक चालक मोहन भागवत अक्सर अपने भाषणों में इस बात पर विशेष जोर देते हैं कि अब वह समय आ चुका है जब भारत को विश्वगुरु बनकर सारी दुनिया को सही राह दिखाने की जिम्मेदारी स्वीकार करने के लिए आगे आना चाहिए।उनका मानना है कि दुनिया के शक्तिशाली अपनी शक्ति का उपयोग अपने निजी स्वार्थों के लिए कर रहे हैं जबकि भारत दुनिया के किसी देश का अहित करने की दृष्टि से कोई काम नहीं करता। संघ प्रमुख के इस कथन का आशय यही है कि भारत अब दुनिया में एक शक्तिशाली देश के रूप में उभर रहा है परंतु भारत ने यह शक्ति अपनी सुरक्षा के लिए संचित की है । किसी दूसरे देश में आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए भारत ने अपनी शक्ति का उपयोग कभी नहीं किया । ‘ यशस्वी भारत ‘ शीर्षक से संघ प्रमुख के व्याख्यानों का जो संकलन प्रकाशित हुआ है उसमें शामिल एक भाषण में संघ प्रमुख कहते हैं कि “सारी दुनिया को सुख शांति पूर्वक जीवन जीने की सीख अपने जीवन से देने वाला भारत ही है।” इसी पुस्तक में शामिल एक अन्य भाषण में उन्होंने भारत को सारी दुनिया को अभय देने वाला अपने आप में स्वसुरक्षित एक ऐसा राष्ट्र बताया है जो संपूर्ण दुनिया को फिर से एक बार युगानुकूल मानव संस्कृति की दीक्षा देगा। मोहन भागवत का स्पष्ट मत है कि अग्रजन्मना होने के नाते दुनिया को जीवन की शिक्षा देना हमारा दायित्व है संघ प्रमुख के इन विचारों का निहितार्थ यही है कि भारत विश्व गुरु बनने की क्षमता का धनी राष्ट्र है। दुनिया के समृद्ध और शक्तिशाली देशों की प्रगति में भारतीय मूल के प्रतिभाशाली युवाओं का अमूल्य भारत की ज्ञान संपदा का परिचायक है। भारतीय मूल की उत्कृष्ट प्रतिभाएं वर्तमान समय में विश्व के विकसित और समृद्ध देशों में महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उच्च पदों पर आसीन हैं । आज स्थिति यह है कि उन देशों में भारतीय मूल के वैज्ञानिकों चिकित्साशास्त्रियों , शिक्षाविदों की सहभागिता के बिना उन देशों की प्रगति की रफ्तार मंद पड़ सकती है । इसी संदर्भ में विगत दिनों भोपाल में आयोजित विश्व संघ शिक्षा वर्ग के सम्मेलन में संघ प्रमुख ने जो विचार व्यक्त किए वे यहां विशेष उल्लेखनीय हैं। संघ प्रमुख ने विदेशों में रह रहे स्वयंसेवकों का आह्वान किया था कि भारत को समृद्ध और विश्व गुरु बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्हें वहां अपने कार्य में उत्कृष्टता अर्जित कर वहां के लोगों के लिए आदर्श बनना चाहिए। दुनिया उनका अनुसरण करेगी तो नया वातावरण और सुखी विश्व का निर्माण होगा। संघ प्रमुख ने विभिन्न अवसरों पर अपने सारगर्भित सुझावों के माध्यम से यह बताया है कि भारत को विश्वगुरु की भूमिका निभाने के लिए अपने अंदर क्या बदलाव लाने होंगे। भागवत कहते हैं कि विश्व गुरु बनने के लिए हमें पूर्वज महापुरुषों का स्मरण करते हुए , सुर से सुर मिलाकर एक ताल में कदम मिलाते हुए आगे बढ़ना होगा। आज अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की जो प्रतिष्ठा है उससे यह संदेश मिलता है कि भारत विश्वगुरु बनने की राह पर अग्रसर है। अहम मसलों पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की राय को अहमियत प्रदान की जा रही है । ज्वलंत मुद्दों पर भारत की राय को अनसुना नहीं किया जा सकता। अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत ने आज जो प्रतिष्ठा अर्जित की है वह भारत को विश्वगुरु की भूमिका निभाने का हकदार बनाती है। यह गौरव वही राष्ट्र अर्जित कर सकता है जो वसुधैव कुटुंबकम् के मूल मंत्र को आत्मसात किया हो । अभी दुनिया के अधिकांश देशों को विगत दो वर्षों में जब भयावह कोरोना त्रासदी का सामना करना उस समय भी भारत ने दिल खोलकर कमजोर और गरीब देशों की मदद की । कोरोना वैक्सीन के उत्पादन और गरीब देशों को उसका निर्यात करने में भारत ने जो विशाल हृदयता दिखाई उसने कोरोना काल में भारत को विश्वगुरु की भूमिका में ला दिया था। कोरोना काल में भारत अपनी एकात्म मानव दृष्टि के कारण सारी दुनिया में सराहना का पात्र बना। इसमें कोई संदेह नहीं कि संपूर्ण विश्व को को एक परिवार मानने वाली भारतीय संस्कृति में वे सारी विशेषताएं मौजूद हैं जो आगे आने वाले समय में सारी दुनिया को भारत को विश्वगुरु के रूप में मान्यता प्रदान करने के लिए विवश कर देंगी । इसलिए इसमें दो राय नहीं हो सकती कि दुनिया को सुख शांति के जिस रास्ते की तलाश है वह भारत ही दिखा सकता है । इसका एक ही मतलब है कि विश्व गुरु बनने की भारत की सामर्थ्य को सारी दुनिया स्वीकार कर चुकी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसी काम में लगा हुआ है ।संघ हमेशा ही जिस हिंदुत्व का पक्षधर रहा है उस हिंदुत्व की भारत को विश्वगुरु का सम्मान दिलाने में सबसे बड़ी भूमिका है क्योंकि हिंदुत्व का मतलब सबकी विविधता में एकता है ।यही विविधता में एकता हमारी संस्कृति की मुख्य पहचान है। गांधीजी ने हिंदुत्व को सत्य की अनवरत खोज के रूप में परिभाषित किया था। संघ प्रमुख ने कहा है कि संघ का अधिष्ठान सत्य और शुद्ध है। इसीलिए सारी दुनिया में हिंदुत्व की स्वीकार्यता बड़ी है। बडे बड़े देशों को भी यह महसूस होने लगा है कि सबको एक सूत्र में बांधने वाला हिंदुत्व जिस देश की संस्कृति की पहचान है वह विश्व गुरु बनकर सारी दुनिया को नयी राह दिखा सकता है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार कहा था कि दुनिया के दूसरे देशों की आकांक्षाओं के अनुरूप यदि हम भारत को विश्वगुरु के रूप में खड़ा करना चाहते हैं तो हमें हमारी सनातनता को, हमारी प्राचीनता को और तब से आज के सातत्य को स्थापित करना पड़ेगा। विद्वानों पर इसके प्रमाण प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी है । हमारी प्राचीन गौरवशाली संस्कृति से नयी पीढी को अवगत कराने के लिए पाठ्य-पुस्तकों में भी प्रमाण सहित इसका वर्णन शामिल करने की आवश्यकता है तभी नई पीढ़ी इसे स्वीकार करेगी । संघ प्रमुख इसी संदर्भ में रामसेतु का उदाहरण देते हुए कहा था कि पहले रामसेतु के अस्तित्व पर बहुत संदेह व्यक्त किया गया लेकिन जब इसके प्रमाण प्रस्तुत किए गए तो सारी दुनिया ने रामसेतु की प्रामाणिकता को स्वीकार किया। संघ प्रमुख ने हमारे देश के प्राचीन सांस्कृतिक गौरव से नई पीढ़ी को परिचित कराने के लिए उसे पाठ्यक्रम में शामिल करने का जो बहुमूल्य सुझाव दिया है उसे निश्चित रूप से अमल में लाया जाना चाहिए । हम अपने महापुरुषों के विचारों को आत्मसात करके विश्व गुरु बनने की दिशा में तेजी से अग्रसर हो सकते हैं। अगर हम दुनिया में भारत को विश्वगुरु के रूप में खड़ा करना चाहते हैं तो हमें मातृशक्ति के सम्मान की सनातन परंपरा को जीवित रखना होगा। भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए देश की आधी आबादी का पुरुषों के बराबर योगदान सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
संघ का हमेशा यह मानना रहा है कि चरित्रवान और संस्कारित व्यक्ति ही परमवैभव संपन्न शक्ति शाली राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं इसलिए 1925 में अपनी स्थापना से लेकर अब तक वह व्यक्ति निर्माण के पुनीत अभियान में जुटा हुआ है। उसने इतने वर्षों में लाखों करोड़ों कार्यकर्ता तैयार किए हैं जिन्होंने स्वयं को समाज और राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित कर दिया है ।