न्यूयॉर्क। सपनों का शहर कहलाने वाला और कभी न सोने वाला अमेरिका का न्यूयॉर्क शहर आज एक यादगार शाम का गवाह बन गया। यादगार इसलिए क्योंकि यहां भारत से आने वाले दो ऐसे लोगों ने वैश्विक नेताओं के सामने बाल मजदूरों की पीड़ा को लेकर अपनी बात रखी, जो खुद कभी बाल मजदूर थे। इनमें से एक झारखंड से आने वाली 20 साल की काजल कुमारी थीं और एक राजस्थान में रह रहे 22 साल के किंशु कुमार। यह ऐतिहासिक मौका था संयुक्त राष्ट्र की ‘ट्रांसफॉर्मिंग एजुकेशन समिट’ का। काजल और किंशु ने बच्चों की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा, ‘बालश्रम और बाल शोषण के खात्मे में शिक्षा की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। इसलिए बच्चों को शिक्षा के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करने होंगे और इसके लिए वैश्विक नेताओं को आर्थिक रूप से ज्यादा प्रयास करने चाहिए।’
इसके समानांतर आयोजित हुई ‘लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन समिट’ में नोबेल विजेताओं और वैश्विक नेताओं को संबोधित करते हुए काजल और किंशु ने बालश्रम, बाल विवाह, बाल शोषण और बच्चों की शिक्षा को लेकर अपनी आवाज बुलंद की। उन्होंने कहा, ‘बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए शिक्षा एक चाभी की तरह है। इससे ही वे बालश्रम, बाल शोषण, बाल विवाह और गरीबी से बच सकते हैं।’ इस मौके पर नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित लीमा जीबोवी, स्वीडन के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन लोवेन और जानी-मानी बाल अधिकार कार्यकर्ता केरी कैनेडी समेत कई वैश्विक हस्तियां मौजूद थीं।
आज भले ही काजल बाल मित्र ग्राम में बाल पंचायत की अध्यक्ष है और एक बाल नेता के रूप में काम कर रही है लेकिन वह कभी अभ्रक खदान(माइका माइन) में बाल मजदूर थी। झारखंड के कोडरमा जिले के डोमचांच गांव में एक बाल मजदूर के रूप में काजल ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, ‘बालश्रम और बाल विवाह का पूरी दुनिया से समूल उन्मूलन बहुत जरूरी है क्योंकि यह दोनों ही बच्चों के जीवन को बर्बाद कर देते हैं। यह बच्चों के कोमल मन और आत्मा पर कभी न भूलने वाले जख्म देते हैं।’
गौरतलब है कि झारखंड का ही बड़कू मरांडी और चंपा कुमारी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर बालश्रम के खिलाफ आवाज उठा चुके हैं। चंपा को इंग्लैंड का प्रतिष्ठित डायना अवॉर्ड भी मिला था। यह दोनों ही बच्चे पूर्व में बाल मजदूर रह चुके थे। बचपन में काजल, माइका माइन में ढिबरी चुनने का काम करने को मजबूर थी ताकि अपने परिवार की आर्थिक मदद कर सके। 14 साल की उम्र में बाल मित्र ग्राम ने उसे ढिबरी चुनने के काम से निकालकर स्कूल में दाखिला करवाया गया। इसके बाद से काजल कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन के फ्लैगशिप प्रोग्राम बाल मित्र ग्राम की गतिविधियों में सक्रियता से भाग लेने लगी।
दरअसल, बालमित्र ग्राम कैलाश सत्यार्थी का एक अभिनव सामाजिक प्रयोग है, जिसका मकसद बच्चों को शोषण मुक्त कर उनमें नेतृत्व, लोकतांत्रिक चेतना के विकास के साथ-साथ सरकार, पंचायतों व समुदाय के साथ मिलकर बच्चों की शिक्षा व सुरक्षा तय करना है। खासकर बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों जैसे- बाल विवाह, बाल शोषण, बाल मजदूरी, बंधुआ मजदूरी व यौन शोषण से बच्चों की सुरक्षा करना।