देश की न्यायिक व्यवस्था में मील का पत्थर साबित होगा एक जुलाई

अंग्रेजों के जमाने में बने आपराधिक कानूनों की जगह बने तीन नए कानून, सोमवार यानी एक जुलाई से लागू हो जाएंगे। पुलिस और न्यायिक महकमे के साथ अन्य सरकारी एजेंसियां इन कानूनों को लागू करने की तैयारी में लगी हैं। माना जा रहा है कि इससे भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक बदलाव आएंगे और औपनिवेशिक काल के कानूनों का अंत हो जाएगा। विपक्षी पार्टियां इन तीनों कानूनों पर अमल रोकने की मांग कर रही हैं और इसे लेकर सोमवार को संसद में हंगामा देखने को मिल सकता है।

 

कृष्णमोहन झा

आज एक जुलाई है। यह तारीख भारतीय लोकतांत्रिक और न्यायिक व्यवस्था में मील का पत्थर साबित होगी। आज से ही देश में पुराने आपराधिक कानून को समाप्त करके नए आपराधिक कानूनों को लागू किया जा रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पहले देश की संसद में इसका मसौदा पेश किया। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने इसकी एक एक बात को सांसदों के समक्ष रखा। सदन ने जब इसे पास कर दिया, उसके बाद देश में यह कानून लागू होने जा रहा है।
पुराने आपराधिक कानूनों को निरस्त करना और नए कानूनों को अपनाना देश की वर्तमान वास्तविकताओं को दर्शाता है। भारतीय लोकाचार और संस्कृति को प्रतिबिंबित करने के लिए इन कानूनों का नाम बदला गया। जैसे कि भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 – पुरातन ब्रिटिश औपनिवेशिक युग से प्रस्थान का प्रतीक है, जिसमें सजा पर न्याय पर जोर दिया जाता है।
भारत सरकार ने जो तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 बनाए हैं, इसका उद्देश्य राष्ट्र की अद्वितीय सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक पहचान की रक्षा करना तथा उसे पुष्ट करना है। अंग्रेज़ों द्वारा बनाए गए और अंग्रेज़ी संसद द्वारा पारित किए गए इंडियन पीनल कोड, 1860, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (1898), 1973 और इंडियन एवीडेंस एक्ट, 1872 कानूनों को सरकार ने समाप्त कर दिया है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा 15 अगस्त को देश के सामने रखे गए पांच प्रण में से एक प्रण यह भी था कि गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त करना। आज के ये तीनों विधेयक एक प्रकार से मोदी जी के इस एक प्रण की अनुपालना करने वाले हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आजादी से पहले के बनाए गए कानून को निरस्त करके उसे नए सुधारों के साथ देश में लागू करने का मन बनाया है।
भारतीय न्याय संहिता विधेयक-2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक-2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 को लेकर राज्यसभा में हुई चर्चा के बाद केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने कहा कि हम इन पर अगस्त, 2019 से ही विचार-विमर्श, चर्चा, सलाह कर रहे थे। सिर्फ कानूनों के नाम नहीं बदले हैं, बल्कि इनके उद्देश्य के अंदर आमूलचूल परिवर्तन किया गया है। इन तीनों कानून का उद्देश्य दंड देने का नहीं है, बल्कि न्याय देने का है, इनमें न्याय का विचार है।  हमारे भारतीय विचार में न्याय एक प्रकार से अंब्रेला टर्म है। ‘न्याय’ शब्द में गुनाह करने वाला और विक्टिम, जिसको गुनाह के कारण भुगतना पड़ा है, दोनों को समाहित करके न्याय की एक संपूर्ण कल्पना है।
कई लोग सवाल उठाते हैं कि जब देश में कानून है, तो इन नये कानून की जरूरत क्या है? ऐसे लोगों को जवाब देते हुए केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने कहा कि ऐसे लोगों को ‘स्वराज’ का मतलब ही मालूम नहीं है।  ‘स्वराज’ का मतलब ‘स्वशासन’ से नहीं होता है। ‘स्व’ शब्द सिर्फ ‘शासन’ से जुड़ा हुआ नहीं है। ‘स्वराज’ मतलब – ‘स्वधर्म’ को जो आगे बढ़ाए, वह ‘स्वराज’ है, ‘स्वभाषा’ को जो आगे बढ़ाए, वह ‘स्वराज’ है, ‘स्वसंस्कृति’ को जो आगे बढ़ाए, वह ‘स्वराज’ है और ‘स्वशासन’ को जो प्रस्थापित करे, वह ‘स्वराज’ है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने शासन परिवर्तन की लड़ाई नहीं लड़ी थी। गांधी जी ने ‘स्वराज’ की लड़ाई लड़ी थी और आज तक आप 75 सालों में से करीब-करीब 60 साल तक सत्ता में बैठे, लेकिन ‘स्व’ को जागृत करने का काम नहीं किया। 2014 से श्री नरेन्द्र मोदी ने इस देश की महान आत्मा को, ‘स्व’ को जागृत करने का काम किया है और वही आज भारत के उत्थान का कारण बना है।
इससे पहले 11 अगस्त,2023  को लोकसभा में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री, श्री अमित शाह ने भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 लोकसभा में पेश किए था। श्री अमित शाह के अनुसार, कानून में कुल 313 बदलाव किए गए हैं, जो भारत के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में एक आमूलचूल परिवर्तन लाएंगे और किसी को भी अधिकतम 3 वर्षों में न्याय मिल सकेगा। खासतौर से इस कानून में महिलाओं और बच्चो का विशेष ध्यान रखा गया है, अपराधियों को सज़ा मिले ये सुनिश्चित किया गया है और पुलिस अपने अधिकारों का दुरुपयोग ना कर सके, ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं। एक तरफ राजद्रोह जैसे कानूनों को निरस्त किया गया है, दूसरी ओर धोखा देकर महिला का शोषण करने और मॉब लिंचिग जैसे जघन्य अपराधों के लिए दंड का प्रावधान और संगठित अपराधों और आतंकवाद पर नकेल कसने का काम भी किया है। श्री अमित शाह ने सदन में आश्वस्त किया कि 1860 से 2023 तक अंग्रेज़ी संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के आधार पर इस देश का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम चलता रहा। अब इन तीनों कानूनों की जगह भारतीय आत्मा के साथ ये तीन कानून स्थापित होंगे जिससे हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा।
15 अक्टूबर, 2022 को प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी ने विधि मंत्रियों और विधि सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा था कि हमारे जैसे विकासशील देश में एक स्वस्थ समाज के लिए और आत्मविश्वास से भरे समाज के लिए एक भरोसेमंद और त्वरित न्याय व्यवस्था की आवश्यकता पर जोर दिया।  हर समाज में न्याय व्यवस्था और विभिन्न प्रक्रियाएं व परंपराएं समय अवधि की जरूरतों के अनुसार विकसित हो रही हैं। जब न्याय मिलता दिखाई देता है, तो संवैधानिक संस्थाओं के प्रति देशवासियों का भरोसा मजबूत होता है और जब न्याय मिलता है, तो आम आदमी का भरोसा बढ़ जाता है।
प्रधानमंत्री ने कहा था कि न्याय देने में देरी सबसे बड़ी चुनौती है और न्यायपालिका इस दिशा में पूरी गंभीरता के साथ काम कर रही है। वैकल्पिक विवाद समाधान के तंत्र पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि यह लंबे समय से भारत के गांवों में बेहतर रूप में उपयोग में लाया गया है और अब इसे राज्य स्तर पर प्रचारित किया जा सकता है। हमें यह समझना होगा कि इसे राज्यों में स्थानीय स्तर पर न्यायिक व्यवस्था का हिस्सा कैसे बनाया जाए।
भारत के आपराधिक कानूनों में इन नए संशोधनों का उद्देश्य न्यायिक प्रणाली को अधिक प्रभावी, पारदर्शी, और आधुनिक बनाना है। ये सुधार न्यायिक प्रक्रिया को तेज और अधिक न्यायसंगत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। नए आपराधिक कानूनों के तहत, यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि सभी नागरिकों को न्याय मिले और अपराधियों को उचित दंड मिले। इन सुधारों का उद्देश्य समाज में कानून और व्यवस्था को बनाए रखना और अपराधों को कम करना है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)