नई दिल्ली। हालाँकि भारत में बेटियों को पारिवारिक संपत्ति में बेटों की तरह बराबर का अधिकार है, लेकिन वास्तव में यह सच्चाई से कोसों दूर है। सनफीस्ट मॉम्स मैजिक द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि केवल 7% बेटियों को ही वसीयत के ज़रिए समान विरासत मिलती है। लंबे समय से चली आ रही यह मान्यता कि “बेटियाँ पराया धन होती हैं” (बेटियाँ आखिरकार किसी और की ज़िम्मेदारी होती हैं) अभी भी भारतीय परिवारों में बहुत प्रचलित है।
अली हैरिस शेरे, चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर, बिस्कुट एंड केक क्लस्टर, फूड्स डिविजन, आईटीसी लिमिटेड ने अभियान के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “भारत में ऐसी कई माताएँ हैं जिन्हें विरासत के मामले में अपने माता-पिता द्वारा अनुचित व्यवहार का सामना करना पड़ा हैं, लेकिन अब वही माताएं अपनी बेटियों के लिए अपने परिवारों में सही मायने में बदलाव ला सकती हैं। ‘विल ऑफ चेंज’ अभियान के माध्यम से, हम बेटियों को विरासत में समान अधिकार देने और बदलाव की माँ (#MomOfChange) बनने के लिए माताओं को प्रेरित करना चाहते हैं।”
समय के साथ, भारत के माताओं ने उनसे जुड़े विभिन्न मुद्दों पर आवाज़ उठाई है और अपनी बात रखी है। माताओं को प्रभावित करने वाले मुद्दों के समाधान के लिए प्रसिद्ध ब्रांड, आईटीसी सनफीस्ट मॉम्स मैजिक, अपने पिछले अभियानों के माध्यम से उन्हें प्रेरित करता रहा है। समानता की दिशा में बदलाव का समर्थन करते हुए ब्रांड की नवीनतम पहल ‘विल ऑफ चेंज’ समाज में सबसे अधिक प्रचलित पूर्वाग्रहों को उजागर करती है, जिसमें विरासत की बात आने पर बेटियों को नजरअंदाज किया जाता है। यह अभियान माताओं को, परिवर्तन के स्तंभ के रूप में, इस महत्वपूर्ण अभियान का नेतृत्व करने और उन्हें #MomOfChange बनने के लिए सशक्त बनाने का आह्वान करता है।
एक ब्रांड के तौर पर, सनफीस्ट मॉम्स मैजिक का मानना है कि माँ एक सबसे बड़ी ताकत होती है और वह अपने बच्चों के रास्ते में आने वाले दुनिया के पूर्वाग्रहों से लड़ सकती है। ‘विल ऑफ चेंज’ पहल के साथ, ब्रांड समाज में सबसे अधिक प्रचलित पूर्वाग्रहों का सामना करता है और माताओं को इस बदलाव की जिम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित करता है।
इस अभियान में शेफाली शाह और मनीष चौधरी अभिनीत एक बेहद भावनात्मक और विचारोत्तेजक फिल्म का उल्लेख किया गया है। फिल्म में दिखाया गया है कि विरासत के फैसलों में बेटियों को कैसे नजरअंदाज किया जाता हैं, भले ही वे परिवार में कितना भी योगदान क्यों न देती हों। यह कहानी एक आधुनिक पारिवारिक पृष्ठभूमि पर आधारित है, जिसमें श्री शेखर वर्मा एक वकील के साथ अपनी वसीयत तैयार रहे हैं। जब उनकी बेटी श्रेया उन्हें दस्तावेज़ इकट्ठा करने में मदद करती है, तब यह पता चलता है कि केवल उनके बेटे अर्जुन को ही उनके पारिवारिक संपत्ति का उत्तराधिकारी बनाया जा रहा है। माँ की भूमिका निभाने वाली शेफाली शाह, सूक्ष्मता से लेकिन शक्तिशाली तरीके से इस फैसले को चुनौती देती है, और अपने पति को याद दिलाती है कि दैनिक जीवन में हम अपनी बेटी को हमेशा “बेटा” मानते हैं, लेकिन जब विरासत की बात आती है तो वह “बेटी” बन जाती है। उसकी बातों का उसके पति पर गहरा प्रभाव पड़ता है और वह उसे उसके पक्षपाती निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए प्रोत्साहित करती है।