पुलिस को कानून के तहत काम करना होता है: एमवी राव, डीजीपी, झारखंड

पहले झारखंड की छवि घनघोर नक्लल प्रभावित राज्यों में थी। धीरे-धीरे इसमें सुधार हुईं। राज्य पुलिस बेहतर काम करने की कोशिश में हैं। राज्य की वर्तमान हालत में पुलिस की भूमिका कैसी है ? इस पर नेशनल बुलेटिन के लिए सुभाष चन्द्र ने झारखंड के पुलिस महानिदेशक श्री एम वी राव जी से विस्तार में बात की। पेश है उस बातचीत के प्रमुख अंश:

नक्सल प्रभावित राज्य झारखंड का पुलिस महानिदेशक होना कितना चुनौती भरा है ?

देश में उग्रवाद प्रभावित राज्यों में झारखंड राज्य दूसरे स्थान पर माना जाता है। राज्य के 24 जिले में से 19 उग्रवाद प्रभावित हैं। अधिकांश क्षेत्र पहाड एवं जंगल से आच्छादित होने के कारण आवागमन भी आसान नहीं है। उग्रवादी हिंसा रोकने तथा विकास कार्य यथा सडक निर्माण, पुल पुलिया निर्माण, ग्रामीण विद्युतीकरण आदि कार्यों में लगे कर्मियों पदाधिकारियों एवं ठेकेदारों की सुरक्षा में पुलिस को काफी महेनत एवं योजनाबद्ध तरीके से काम करना पडता है।

आपने जब से पदभार ग्रहण किया है, कोई ऐसी वारदात, जिसमें नक्सल कनेक्शन हो ?

एक ही ऐसी घटना घटी है, जिसमंे एक पुलिसकर्मी और एक एसपीओ उग्रवादी अभियान में शहीद हुए हैं। लेकिन अनेक स्थानों पर पुलिस के साथ हुए मुठभेड में उग्रवादी मारे गए हैं। काफी मात्रा में विस्फोटक पदार्थ, हथियार एवं अन्य आग्नेयास्त्र बरामद किया गया है।

यह पूरा साल कोरोना की भेंट चढ गया। इस समय पुलिस के सामने आंतरिक सुरक्षा के साथ सामाजिक दायित्वों का निर्वहन भी महत्वपूर्ण हो जाता है। झारखंड पुलिस ने आपकी नजर में कैसा काम किया है ?

कोरोना वायरस की रोकथाम हेतु मार्च के अंतिम सप्ताह से लाॅकडाउन घोषित किया गया। यह एक ऐसा चुनौती भरा कार्य रहा, जो पूर्व में किसी ने ना देखा और ना ही किया है। यह अभी तक पुलिस के द्वारा किए गए सभी कार्यों से बिलकुल ही भिन्न रहा। राज्य में हमने राज्यवासियों के सहयोग से इस कार्य को पूर्ण किया। झारखंड पुलिस ने बिना किसी तरह के बल प्रयोग के लाॅकडाउन और उसके बाद भी अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करा रही है।

राज्य सीमाई क्षेत्र खासकर जो पश्चिम बंगााल की सीमाओं से लगे हैं, वहां अधिक आपराधिक घटनाएं होती हैं। आप इसे कैसे देखते हैं ?

इस देश का प्रत्येक राज्य और राज्य के अलग अलग जिलों का अलग अलग भौगोलिक क्षेत्र का अपना खासियत है। वहां के जातीय धार्मिक आर्थिक राजनीतिक परिप्रेक्ष्य अलग अलग होते हैं। ये ऐसे मुद्दे हैं, जो स्थान विशेष पर निर्भर करते हैं। झारखंड राज्य के सीमावर्ती राज्यों में कानून व्यवस्था के संबंध में किसी प्रकार की टिप्पणी करना अनुचित होगा, क्योंकि हमें अपने राज्य के कानून व्यवस्था के संबंध में सोचना चाहिए।

कभी नक्सली तो कभी रोहिंग्या को लेकर राजनीतिक बयानबाजी होती है। एक भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी के रूप में आप इसे कैसे देखते हैं ?

कोई भी सार्वजनिक मुददा भारत ही नहीं, पूरे विश्व में राजनीति से अछूत नहीं रह पाता है। समाज से जुडे अन्य मुददों के साथ साथ नक्सल, रोहिंग्या पर समय-समय पर अलग-अलग राजनीतिक दलों द्वारा अपना बयान या टिप्पणी की जाती है। लेकिन पुलिस को भारत के संविधान और राज्य में लागू कानून के दायरे में अपने कर्तव्य का निर्वहन करना है, जिसमें राजनीतिक बयानों का कोई प्रभाव नहीं होता है।