देशद्रोह कानून को लेकर ऐसी हो रही है बयानबाजी

नई दिल्ली। केंद्र सकार की ओर से कई प्रकार की कानूनों को खत्म किया गया है और कइयों को खत्म अथवा उसके प्रभाव को कम करने की बात कही जा रही है। इसी कड़ी में देशद्रोह कानून को लेकर कई प्रकार की बातें हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशद्रोह कानून के प्रावधान पर फिर से विचार करने और पुनर्विचार करने को कहा है। प्रधानमंत्री ने अप्रचलित राजद्रोह कानून को हटाने का आग्रह किया।

केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू की ओर से कहा गया है कि राजद्रोह कानून का मालमा कई दिनों से सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। आज हमने सुप्रीम कोर्ट को साफ-साफ बताया कि प्रधानमंत्री के आदेश पर ये फैसला लिया गया है कि राजद्रोह कानून पर हम पुनर्विचार और पुन: जांच करेंगे। अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे लगभग 1500 ऐसे कानून हैं जिनकी जरूरत नहीं थी और उन्हें हमने हटाया है और राजद्रोह कानून भी पुराना कानून है।

इसके साथ ही केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू ने यह भी कहा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आईपीसी की धारा 124ए, 1860 की वैधता की जांच में अपना कीमती समय नहीं लगाने और भारत सरकार द्वारा किए जाने वाले सेक्शन 124ए पर फिर से विचार करने की प्रतीक्षा करने का आग्रह किया है। सरकार उचित रूप से हितधारकों के विचारों को ध्यान में रखेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि देश की संप्रभुता और अखंडता को संरक्षित किया जाए, जबकि देशद्रोह पर कानून की पुन: जांच और पुन: विचार किया जाए।

पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने कहा कि हमने पिछले कुछ महिनों और सालों में देखा है कि कैसे राजनीतिक पार्टियों ने इस क़ानून का दुरुपयोग कर संविधान के मूल मर्यादा और अक्स पर प्रहार किया। इसे जितनी जल्दी हटाया जाए बेहतर है। यह अंग्रेजों के वक्त का क़ानून है जिसका कुछ औचत्य नहीं है।

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि केंद्र ने उच्च न्यायालय में हलफनामा दायर कर कहा कि वे राष्ट्रद्रोह के प्रावधान पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार है। हमारा मानना है कि इस धारा को भारत के फ़ौजदारी से निकाल देना चाहिए। ऐसा लगता है कि सरकार नहीं चाह रही कि उच्च न्यायालय इस पर कोई फैसला ले।