Home ओपिनियन जातिगत जनगणना के साहसिक फैसले से मोदी सरकार को मिली राजनीतिक बढ़त

जातिगत जनगणना के साहसिक फैसले से मोदी सरकार को मिली राजनीतिक बढ़त

 

कृष्णमोहन झा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में गत दिवस संपन्न केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस बार देश में जनगणना के साथ ही जाति जनगणना कराने का जो फैसला किया है उसका स्वागत भाजपा के साथ ही लगभग सभी विपक्षी दल कर रहे हैं जिनमें कांग्रेस प्रमुख है । गौरतलब है कि कांग्रेस में सोनिया गांधी के बाद सबसे कद्दावर नेता राहुल गांधी काफी समय से जाति जनगणना की मांग कर रहे थे इसमें उन्हें समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल सहित अनेक विपक्षी दलों का भी साथ मिला हुआ था। इसलिए मोदी सरकार के फैसले को वे अगर अपनी जीत बता रहे हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है और उनकी यह उम्मीद भी स्वाभाविक है कि देश में जातिगत जनगणना की उनकी मांग स्वीकार होने से पिछड़ी जातियों में उनका जनाधार और बढ़ेगा। दूसरी ओर यह भी माना जा रहा है कि केंद्र सरकार ने देश में इसी साल शुरू होने जा रही जनगणना के साथ ही जातिगत जनगणना कराने का जो फैसला किया है उसका फायदा भाजपा को बिहार के बाद आगामी विधानसभा आगामी चुनावों में मिलना तय है। उसके बाद होने वाले उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों की विधानसभाओं और आगामी लोकसभा चुनावों में यह एक चुनावी मुद्दा बन सकता है। यद्यपि भाजपा नीत केंद्र सरकार पहले इस मुद्दे पर अनिर्णय की स्थिति में दिखाई दे रही थी परंतु अंततः उसने काफी सोच विचार करने के बाद जातिगत जनगणना कराने का फ़ैसला कर विपक्ष के हाथ से वह मुद्दा छीन लिया जिससे विपक्ष अपने राजनीतिक लाभ के लिए इतने दिनों तक बहुत जोर शोर से उठा रहा था। मोदी सरकार को इस ऐतिहासिक फैसले का श्रेय अवश्य दिया जाना चाहिए क्योंकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार किसी सरकार ने जनगणना के साथ ही जातिगत जनगणना कराने का फ़ैसला किया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सरकार के इस फैसले को ऐतिहासिक कदम बताते हुए कहा कि आज जो कांग्रेस पार्टी विपक्ष में बैठकर जातिगत जनगणना का मुद्दे पर इतनी राजनीति कर रही है उसने और केंद्र में लंबी अवधि तक सत्ता में रहने के बाद इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई । शाह ने कहा कि मोदी सरकार समाज में समानता और हर‌ वर्ग के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
जातिगत जनगणना के केंद्र सरकार के फैसले का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी स्वागत किया है। संघ के वरिष्ठ नेता सुरेश भैया जी जोशी ने कहा है कि जो देश हित में आवश्यक है वह किया जाना चाहिए। यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल में ही अचानक रात्रि में प्रधानमंत्री आवास पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी। जातिगत जनगणना के केंद्र मुद्दे पर संघ ने हमेशा सधी हुई प्रतिक्रिया दी है।
मोदी सरकार द्वारा जनगणना के साथ ही जातिगत जनगणना भी कराने का जो फ़ैसला किया गया है उस पर कांग्रेस पार्टी ने संशय व्यक्त किया है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी का कहना है कि सरकार को इस फैसले का निश्चित समय सीमा के अंदर क्रियान्वयन करने और आंकड़े जारी करने के लिए तत्परता दिखानी चाहिए परंतु राहुल गांधी से भी यह पूछा जा सकता है कि केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार ने 2011 में जो जातिगत जनगणना कराई थी उसकी रिपोर्ट तत्कालीन सरकार ने सार्वजनिक करने की तत्परता क्यों नहीं दिखाई।यह भी माना जा सकता है कि 2011 में कराई गई जातिगत जनगणना में संभवतः ऐसी खामियां रह गई होंगी जिसके कारण उसकी रिपोर्ट तत्कालीन सरकार ने सार्वजनिक नहीं करने का फैसला किया । इसलिए यह तो तय माना जाना चाहिए कि वर्तमान केंद्र सरकार के लिए भी जातिगत जनगणना का काम आसान तो नहीं होगा। जातिगत जनगणना करते समय यह सावधानी नितांत आवश्यक होगी कि किसी भी स्तर पर कोई चूक या खामी न रहने पाए। पर्याप्त बजट जुटाना भी एक चुनौती होगा। और सबसे बड़ी चुनौती तो इसे निश्चित समय सीमा के अंदर पूरा करने की होगी। जातिगत जनगणना का काम समय सीमा के अंदर पूरा होने के जब रिपोर्ट सामने आएगी तो आरक्षण के 50 प्रतिशत वाले कैप को खत्म करने की मांग उठना स्वाभाविक है। मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना की इन चुनौतियों से निपटने की अपनी क्षमता का अच्छी तरह आकलन करने के बाद ही यह साहसिक फैसला किया है। इतना तो तय है कि इस फैसले ने मोदी सरकार को विपक्ष पर राजनीतिक बढ़त दिला दी है। इसके प्रमाण आगे आने वाले चुनावों में देखने को मिल सकते हैं।

(लेखक राजनैतिक विश्लेषक है)