अनंत अमित
हमारे देश के राजनेताओं में नैतिकता की गिरावट दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। कई बड़े नेता विवादास्पद बयान देकर चर्चाओं में बने रहते हैं, जबकि कई निर्वाचित विधायकों, सांसदों और मंत्रियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इससे राजनीति के प्रति जनता का विश्वास कमजोर होता जा रहा है। राजनीति में अपराध का इतना घालमेल हो गया है कि अब यह पहचानना मुश्किल हो गया है कि कौन-सा जनप्रतिनिधि अपराधी है और कौन स्वच्छ छवि का है।
राजनीति में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों के आने से राजनीति दागदार हो रही है और नेताओं और जनता के बीच दूरी बढ़ती जा रही है। वर्तमान समय में राजनीति सेवा नहीं, बल्कि व्यवसाय बन चुकी है। अब वही लोग राजनीति में सफल होते हैं जो बड़े नेताओं के परिवार से आते हैं या धनबल के सहारे चुनाव लड़ते हैं। सेवा, संगठन और वफादारी का महत्व समाप्त हो गया है और राजनीति पूरी तरह पैसों की चकाचौंध में लिप्त हो गई है।
पहले जमीन से जुड़े कार्यकर्ता जनप्रतिनिधि बनते थे और जनता की समस्याओं को समझते थे। लेकिन अब राजनीति में बाहरी और धनबल के सहारे आए लोग जनता से कट चुके हैं। ऐसे नेता चुनाव जीतने के बाद जनता की समस्याओं की अनदेखी करते हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 45% विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। 1861 विधायकों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा की है। इनमें से 1205 विधायकों पर हत्या, हत्या की कोशिश, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर आरोप हैं। लोकसभा में 46% सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। 170 सांसदों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास और अपहरण शामिल हैं।
केरल में 95% सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। तेलंगाना (82%), ओडिशा (76%), झारखंड (71%) और तमिलनाडु (67%) में भी बड़ी संख्या में आपराधिक पृष्ठभूमि के सांसद मौजूद हैं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में लगभग 50% सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों को टिकट देने से रोकने के लिए राजनीतिक दलों को कठोर नीति अपनानी चाहिए। गंभीर अपराधों में आरोपित व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए सख्त कानून लागू किए जाने चाहिए। विधायकों और सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामलों का निपटारा फास्ट ट्रैक अदालतों में किया जाए। चुनाव प्रचार में धनबल के प्रयोग पर सख्ती से रोक लगाई जाए।
जनता को शिक्षित और जागरूक करना आवश्यक है ताकि वे अपराधियों को वोट न दें। निष्पक्ष और खोजी पत्रकारिता के माध्यम से ऐसे नेताओं को बेनकाब करना जरूरी है।
अगर समय रहते राजनीति के अपराधीकरण पर रोक नहीं लगाई गई, तो यह हमारे लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। सरकार और समाज को मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे, तभी राजनीति को अपराध मुक्त बनाया जा सकेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। )