चंडीगढ़। हरियाणा एक ऐसा राज्य है जिसके खिलाडि़यों ने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है और जिसकी पहचान देश के एक उन्नत औद्योगिक राज्य के रूप में होती है लेकिन इसी राज्य की एक और तस्वीर है जो चिंताजनक है। आधिकारिक आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि राज्य में पिछले तीन साल में बाल विवाह के मामलों में इजाफा हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि बाल विवाह के मामले में हरियाणा देशभर में 15वें स्थान पर है।
पिछले दिनों भले ही हरियाणा सरकार ने बाल विवाह को ‘शून्य’ घोषित करने का कानून बनाया है, लेकिन भारत सरकार की साल 2011 की जनगणना के अनुसार बाल विवाह के मामले में राज्य का देश में 15वां स्थान है। इसी जनगणना के अनुसार राज्य में 2,47,860 बाल विवाह हुए हैं। यह देश के कुल बाल विवाह का दो प्रतिशत हैं। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन(केएससीएफ) द्वारा यहां आयोजित ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान में जुटी स्वयंसेवी संस्थाओं ने हरियाणा की इस स्थिति पर चिंता जाहिर की। साथ ही सरकार से अपील की कि नए कानून का सख्ती से पालन करवाया जाए ताकि अपराधियों के मन में खौफ पैदा हो और ‘बाल विवाह’ की सामाजिक बुराई को जड़ से खत्म किया जा सके। इस संबंध में केएससीएफ ने चंडीगढ़ के हरियाणा निवास में राज्य सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ एक सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें ‘बाल विवाह’ पर कैसे लगाम लगाई जाए? इस पर गहन विचार-विमर्श हुआ।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के ताजा आंकड़े भी साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों की तस्दीक करते हैं। इसके अनुसार देश में 20 से 24 साल की उम्र की 23.3 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जिनका बाल विवाह हुआ है। वहीं, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो(एनसीआरबी) के अनुसार हरियाणा में साल 2019 में 20, साल 2020 में 33 और साल 2021 में 33 बाल विवाह के मामले दर्ज किए गए। लैंगिक अनुपात में भी राज्य की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। इसीलिए दूसरे राज्यों से नाबालिग बच्चियों को खरीदकर यहां लाने और शादी करने के मामले भी लगातार सामने आते रहते हैं। इसी साल मई में बिहार के जहानाबाद जिले से एक 14 साल की नाबालिग बच्ची को हरियाणा के कैथल जिले में शादी के लिए बेचे जाने का मामला सुर्खियों में रहा था।
सम्मेलन में बाल विवाह रोकने के लिए कानूनी पहलुओं पर चर्चा की गई। इसमें प्रमुख रूप से बाल विवाह के मामले में अनिवार्य एफआईआर दर्ज करने, बाल विवाह को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट और पॉक्सो एक्ट से जोड़ने पर विमर्श हुआ। इसका मकसद कानून तोड़ने वालों को सख्त से सख्त सजा दिलाना है। साथ ही देश के हर जिले में बाल विवाह रोकने वाले अधिकारी(सीएमपीओ) की नियुक्ति की मांग भी उठाई गई। इन अधिकारियों को बाल विवाह रोकने के लिए उचित प्रशिक्षण देने और उन्हें अभिभावकों को इसके खिलाफ प्रोत्साहन देने की भी बात कही गई।
सम्मेलन में राज्य सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग की सचिव एवं कमिश्नर अमनीत प्रीत कुमार समेत कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन(अमेरिका) द्वारा चलाए जा रहे ‘एक्शन टू जस्टिस प्रोग्राम’ के कंट्री हेड रविकांत एवं कई गणमान्य हस्तियां मौजूद रहीं।
महिला एवं बाल विकास विभाग की सचिव एवं कमिश्नर अमनीत पी. कुमार ने बाल विवाह के नुकसान पर प्रकाश डालते हुए कहा, ‘राज्य में 40 से 45 प्रतिशत लड़कियां बाल विवाह के चलते उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर पाती हैं और समाज की बेहतरी में अपना योगदान देने से वंचित रह जाती हैं। इस स्थिति को बदलना होगा, यह हम सभी के लिए एक चुनौती की तरह है और हम सब मिलकर इसका सामना करेंगे।’ उन्होंने आगे कहा, ‘बाल विवाह रोकने की मुहिम को ग्रामीण स्तर तक ले जाना होगा। सभी सरकारी विभागों और गैरसरकारी संगठनों के संयुक्त प्रयास से हरियाणा को बाल विवाह मुक्त प्रदेश बनाने का अभियान सफल हो पाएगा। केएससीएफ को इस सम्मेलन में हुए गहन विचार-विमर्श के निष्कर्ष के आधार पर बाल विवाह के खिलाफ एक पुख्ता योजना बनानी चाहिए।’
बाल विवाह को ‘शून्य’ घोषित करने का नया कानून लाने के राज्य सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन(अमेरिका) द्वारा चलाए जा रहे ‘एक्शन टू जस्टिस प्रोग्राम’ के कंट्री हेड रविकांत ने कहा, ‘हरियाणा में लैंगिक अनुपात की स्थिति देशभर में अत्यंत दयनीय है। मुझे आशा है कि नया कानून राज्य सरकार के लिए बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई को रोकने में कारगर साबित होगा। सख्त कानून बनने के बाद अब यह सरकारी एजेंसियों व नागरिक संगठनों की जिम्मेदारी है कि वह एकजुट होकर इस सामाजिक बुराई के खिलाफ काम करें और हरियाणा को बाल विवाह मुक्त प्रदेश बनाएं।’