2024: पत्रकारिता पर संकट, 54 पत्रकारों की मौत ने दुनिया को झकझोरा

 

नई दिल्ली। 2024 का वर्ष पत्रकारिता के लिए बेहद दर्दनाक साबित हुआ है। दुनिया भर में 54 पत्रकार अपनी ड्यूटी निभाते हुए मारे गए। इनमें से लगभग एक तिहाई की मौत गाजा में इज़राइली सैन्य कार्रवाइयों के दौरान हुई, जैसा कि रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (RSF) की रिपोर्ट में बताया गया है। यह आंकड़ा दिखाता है कि पत्रकारों के लिए सच्चाई का पीछा करना कितना खतरनाक हो गया है, खासकर संघर्ष क्षेत्रों में, जहां उनकी जान हमेशा खतरे में रहती है।

पिछले एक दशक में पत्रकारिता एक बेहद जोखिम भरा पेशा बन चुकी है। 2013 से 2022 के बीच, RSF ने 1,668 पत्रकारों की मौत का दस्तावेजीकरण किया, यानी हर साल औसतन 80 से अधिक पत्रकार मारे गए। 2012 सबसे दर्दनाक साल था, जब सीरिया में संघर्ष के कारण 147 पत्रकारों ने अपनी जान गंवाई। 2024 में गाजा का संघर्ष पत्रकारों के लिए सबसे घातक साबित हुआ। अक्टूबर 2023 से अब तक कम से कम 138 पत्रकार मारे जा चुके हैं, जिनमें 55 सिर्फ इस साल मारे गए हैं। यह आंकड़ा पिछले 30 वर्षों के किसी भी संघर्ष को पीछे छोड़ देता है।

गाजा और अन्य संघर्ष क्षेत्रों में पत्रकारों की मौतों ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया है। RSF ने इन हत्याओं को अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों का उल्लंघन करार दिया है और अपराधियों को जवाबदेह ठहराने की मांग की है। RSF के महासचिव क्रिस्टोफ डेलोयर ने कहा, “पत्रकारों को निशाना बनाना सच्चाई की आवाज को खामोश करने की सोची-समझी कोशिश है।” उन्होंने सरकारों से पत्रकारों की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की अपील की।

इन खतरों के बावजूद, दुनिया भर में पत्रकार एकजुट होकर खड़े हुए हैं। मृतकों को श्रद्धांजलि देने और पत्रकारों की सुरक्षा की मांग करने के लिए विभिन्न देश एकजुट होकर अभियान चला रहे हैं। विश्व आर्थिक मंच के सदस्य और प्रेस स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक करणवीर सिंह ने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए वैश्विक सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “पत्रकार लोकतंत्र और सच्चाई की आवाज हैं। जब उन पर हमला होता है, तो यह सिर्फ व्यक्तियों पर हमला नहीं होता, बल्कि पूरे समाज के सूचना के अधिकार पर हमला होता है। इन अपराधों को अनदेखा नहीं किया जा सकता।”

सिंह ने संघर्ष क्षेत्रों में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून, जैसे जेनेवा कन्वेंशन, को लागू करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि जवाबदेही की कमी अपराधियों को और अधिक हिंसा के लिए प्रोत्साहित करती है। भारत में भी मीडिया संगठन सरकार से अपील कर रहे हैं कि वह संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंचों पर पत्रकारों की सुरक्षा के लिए दबाव बनाए।

भारत, जो अपने लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए जाना जाता है, के पास पत्रकारिता की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने का मौका है। देश में पत्रकारों को दरपेश चुनौतियों का सामना करने के साथ-साथ, भारत अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में भी योगदान दे सकता है। भारतीय मीडिया संगठनों ने वैश्विक अभियानों को समर्थन देने और खतरे में पड़े पत्रकारों को वित्तीय और कानूनी सहायता प्रदान करने की प्रतिबद्धता जताई है।

2024 में 54 पत्रकारों की मौतें यह याद दिलाती हैं कि सच्चाई की खोज में कितनी बड़ी कुर्बानी दी जाती है। उनकी बहादुरी और समर्पण को भुलाया नहीं जा सकता। जैसे-जैसे पत्रकार दुनिया भर में एकजुट हो रहे हैं, सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और समाज से यह मांग बढ़ रही है कि वे प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाएं। यह लड़ाई सिर्फ पत्रकारों की नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा को बचाने की है।