गुजरात में सत्ता बचाने की जद्दोजहद

गुजरात ने विकास के जिस नए मुकाम को हासिल किया है, उसका पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही जाता है और जिनके कारण विश्व में भारत का मान-सम्मान बढ़ा है, उन्हें अपने ही राज्य में शर्मसार नहीं होना पड़ेगा। जो भी हो, दोनो राज्यों में जय-पराजय तो जनता के हाथों में है, चाहे उसे कितना ही प्रलोभन क्यों न दिया जाए। अब वह शिक्षित है और वह समझ चुकी है कि उसका हित करने वाला कौन है, कौन नहीं। इसलिए आठ दिसंबर तक दोनों राज्यों के मतदाताओं सहित देश को इंतजार तो करना ही पड़ेगा।

निशिकांत ठाकुर

आज देश में घरों और गली-चौराहों पर दो ही बातों की चर्चा सुनाई देती है। पहला, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और दूसरा गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव का परिणाम क्या आएगा। राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ तो दूरगामी परिणाम के लिए अपेक्षित है, इसलिए इस पर चर्चा बाद में करूंगा, लेकिन गुजरात विधानसभा का चुनाव तो इसी वर्ष एक और पांच दिसंबर को होने वाला है, जिसका परिणाम 8 दिसंबर को हिमाचल प्रदेश के साथ ही घोषित होगा। दोनों राज्य भाजपा शासित है, लेकिन इनकी सत्ता को बरकरार रखना भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है। गुजरात में 182 विधानसभा सीट हैं और इस प्रदेश में 27 वर्ष से भाजपा की सरकार सत्तासीन है। इतिहास गवाह है कि हिमाचल प्रदेश में तो हर पांच साल बाद सरकार बदल जाती है, इसलिए वहां वर्तमान विपक्ष कांग्रेस आशाओं से ओतप्रोत है। गुजरात में भी कांग्रेस इसलिए आशान्वित है, क्योंकि भाजपा की वर्षों पुरानी सरकार होने के कारण सरकार विरोधी लहर तेज हैं। इसलिए दोनो राज्यों में कांग्रेस और भाजपा पूरी ताकत झोंक रही है और सीना ठोंककर दावा भी कर रही है कि सरकार तो इन्हीं की बनेगी। जनता का निर्णय अगले माह आएगा, लेकिन इस बीच दोनों दलों के राजनीतिज्ञ अपना-अपना खम ठोककर अपने-अपने दावे तरह-तरह के गुणा-भाग से लोगों में पेश कर सत्ता पर अपनी बढ़त होने का प्रमाण पेश कर रहे हैं। आमलोगों का मत तो यही है कि इस प्रदेश में मुकाबला तो भाजपा और कांग्रेस के ही बीच है। यहां आम आदमी पार्टी केवल कांग्रेस का वोट काटने के लिए मैदान में है इसका सरकार बनाने से कोई लेना देना नहीं ।

राहुल गांधी हिमाचल प्रदेश में अपनी भारत जोड़ो यात्रा छोड़कर प्रचार करने नहीं गए। इसी प्रकार गुजरात में भी राहुल गांधी की एक भी रैली या कार्यक्रम अब तक आयोजित नहीं हुए हैं। इसका मलाल भाजपा नेताओं को गंभीर रूप से है। इसके लिए राहुल गांधी तथा कांग्रेस पर तरह-तरह के आरोप-प्रत्यारोप के माध्यम से यह संदेश देने की भरपूर कोशिश हो रही हैं कि कांग्रेस अपने शीर्ष नेतृत्व को हार के डर से राज्यों में प्रचार के लिए नहीं भेज रही है । इसलिए अब कांग्रेस नेतृत्व ने यह निर्णय लिया है कि राहुल गांधी 22 नवंबर को गुजरात में अपनी पार्टी के लिए प्रचार करने जाएंगे । राहुल गांधी की इस गुजरात यात्रा के लाभ –हानि का पता तो चुनाव के बाद ही चलेगा , लेकिन विपक्षियों के पेट में मरोड़ शुरू हो गया है और इसलिए उनके द्वारा तरह तरह के तंज कसने शुरू हो गए हैं । जबकि, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का गृह राज्य होने के कारण दोनो शीर्ष भाजपा नेतृत्व के कई दौरे तथा रैलियां अब तक हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री ने तो उपहारों का पिटारा ही गुजरात के लिए खोल दिया है। वैसे, कांग्रेस का आरोप तो यह है कि भाजपा दोनो राज्य हार रही है, इसलिए जनता को प्रलोभन देकर अपनी तरफ मोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का कहना है कि गुजरात की जनता उपहार स्वरूप हमें इस बार सरकार बनाने का अवसर दे रही है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और सरदार वल्लभ भाई पटेल के राज्य गुजरात का भाजपा ने जिस तरह से दोहन किया है, उसका सच तो इसी चुनाव में देखने को मिलेगा। जिस तरह से मोरबी पुल हादसा हुआ और गुजरात मॉडल का पोल खुलकर सामने आया, उससे गुजरात के साथ पूरा देश हैरान है। इतनी बड़ी दुर्घटना को जिस हल्के ढंग से लिया गया, उसने पूरे 27 वर्ष के भाजपा शासन के ऊपर कालिख ही पोत दी। अब कोई लीपापोती कितना ही कर ले, उन मृतकों को वापस नहीं लाया जा सकता, उन अबोध शिशुओं को फिर से जीवित नहीं किया जा सकता। लोग यही उदाहरण देते हैं कि प्रधानमंत्री किस तरह से चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल में पुल हादसे पर सीना कूट-कूट कर ममता बनर्जी सरकार पर आरोप लगा रहे थे, लेकिन जब उनके ही गृहराज्य में उनकी सरकार के कार्यकाल में ही मोरबी में इतना बड़ा हादसा हुआ, तो प्रधानमंत्री ने आरोपियों को अब तक जेल क्यों नहीं भिजवाया! दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह रही कि मोरबी अस्पताल को जिस प्रकार प्रधानमंत्री के दौरे के कारण रातोंरात बदलकर चाक-चौबंद और रंगरोगन कर चमकाया गया, वह विपक्षियों के लिए मखौल का ही विषय बना हुआ है।

पिछले दिनों, यानी 12 नवंबर को गुजरात के चुनाव प्रभारी और राजस्थान के मुख्यमंत्री ने अहमदाबाद में कांग्रेस का घोषणा पत्र जारी किया, उसमें गृहणियों, छात्रों, किसानों, दलित-ओबीसी, अल्पसंख्यकों, पंचायत सेवकों सहित दस लाख सरकारी नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण का लाभ महिलाओं के साथ-साथ बेरोजगारों को तीन हजार रुपये प्रतिमाह बेरोजगारी भत्ता और तीन सौ यूनिट मुफ्त बिजली और रोजगार परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक मामले की जांच के लिए फास्ट ट्रैक बनाया जाएगा, जैसी घोषणाएं की गई हैं। घोषणा पत्र के लिए मधुसूदन मिस्त्री ने कहा कि इसे बनाने के लिए छह लाख लोगों से बात की गई हैं और उनकी ज्वलंत समस्याओं को समझकर ही इसे बनाया गया है। घोषणा पत्र में जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही गई है, वह यह कि अहमदाबाद स्थित नरेन्द्र मोदी स्टेडियम का नाम बदलकर फिर से सरदार पटेल के नाम पर कर दिया जाएगा, क्योंकि पाटीदार समाज इससे आहत है और वह चाहते हैं कि स्टेडियम सरदार पटेल के ही नाम पर ही रहे।

चूंकि गुजरात में लंबे समय से भाजपा की सरकार है, इसलिए उसके नेताओं को यह खुशफहमी है कि वह गुजरात की जनता के रग-रग से वाकिफ हैं। इसलिए वह एक करोड़ लोगों से बात करने के बाद ही अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी करेंगे। भाजपा सरकार ने गुजरात के विकास के लिए क्या कुछ किया है जिसके दम पर गुजरात आज देश में विकास की बड़ी ऊंचाई पर पहुंच गया है, इसलिए उसकी सरकार फिर सत्ता में आएगी। उनका यह भी कहना है कि जिस मोदी के नाम से भारत को आज विश्व ने जाना है, इसलिए कोई कारण नहीं बनता कि भाजपा की सरकार वहां फिर से न बने।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)