जोधपुर। भारतीय स्टेट बैंक द्वारा खातेधारी का चैक समय पर समाशोधन ना करना भारी पड़ गया। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने दस हजार रुपये हर्जाना देने के आदेश पारित किये। प्रार्थिया निधि जे. तिवाड़ी व जितेन्द्र तिवाड़ी द्वारा 29 अगस्त 2017 को एक अन्य बैंक का चेक भारतीय स्टेट बैंक के खाते में जमा कराया जो कि भारतीय रिर्जव बैंक के नियमानुसार तीन कार्य दिवस में समाशोधित हो जाना चाहिए, लेकिन बैंक के ढूलमुल रवैये से उक्त चेक आठ दिन बाद समाशोधित हुआ। जब समय पर चैक की राशि प्रार्थीगण के खाते में नहीं आयी तब प्रार्थीगण ने बैंक कर्मचारियों से इस बाबत् पूछतात की, लेकिन कोई सन्तोषजनक जवाब नही मिला, जिससे व्यथित होकर प्रार्थीगण ने एक शिकायत उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, जोधपुर के समक्ष प्रस्तुत की।
प्रार्थीगण के अधिवक्ता विजय कुमार चौहान ने आयोग को इस तथ्य से अवगत कराया कि नियमानुसार तीन कार्यदिवस में किसी भी बैंक का चैक समाशोधित हो जाना चाहिए लेकिन बैंक की लापरवाही से उक्त चैंक आठ दिनों बाद समाशोधित हुआ जिससे प्रार्थीगण को ना केवल वित्तीय असुविधा का सामना करना पड़ा, अपितु मानसिक आघात भी झेलना पड़ा जिसके लिये बैंक उत्तरदायी है।
उपभोक्ता आयोग द्वारा दोनों पक्षों को सुनने के बाद यह निश्चय किया कि स्टेट बैंक का यह कृत्य सेवा में त्रुटि व कमी की श्रेणी में आता है और बैंक के इस कृत्य से प्रार्थीगण क्षतिपूर्ति पाने के अधिकारी है। आयोग ने बैंक को क्षतिपूर्ति के निमित पांच हजार व परिवाद व्यय के निमित पांच हजार, कुल रुपये दस हजार रुपये प्रार्थीगण को दो माह की अवधि में अदा करने के आदेश दिये।