क्या सीएम बनने की जुगत में पूर्व सीएम रघुबर दास कर रहे हैं देवघर में ये सब ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 जुलाई को देवघर में करीब 4 घंटे तक रूकेंगे। एम्स और एयरपोर्ट जनता को समर्पित करेंगे। बाबा बैद्यनाथ की पूजा अर्चना करेंगे। इसको लेकर सियासी संदेश भी है। राज्य की वर्तमान सरकार और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए यह यात्रा किसी खतरे से कम नहीं है। भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री सरकार को विचलित करने के लिए रणनीति बना रहे हैं।

नई दिल्ली। झारखंड की सत्ता में बहुत कुछ होने का अंदेशा है। कल यानी 12 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देवघर पहुंच रहे हैं। वो देश के पहले प्रधानमंत्री होंगे, जो द्वादश ज्योर्तिलिंग में से एक बाबा वैद्यनाथधाम मंदिर आएंगे और पूजा करेंगे। अभी तक यही कार्यक्रम है कि वो करीब चार घंटे तक देवघर में होंगे। इस दौरान प्रधानमंत्री बनकर तैयार देवघर विमानपतनम और अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एम्स) अस्पताल की सौगात झारखंड को भेंट करेंगे।

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि प्रधानमंत्री दौरे के बाद झारखंड की वर्तमान सरकार को लेकर नया तोड-फोड़ होगा। उस में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास एक बार फिर से सक्रिय हो गए हैं। वो पहले ही देवघर आ गए हैं और लोगों से मिल रहे हैं। उसी कड़ी में बाबा बैद्यनाथ का आर्शीवाद भी लिया।

हालांकि, भाजपा के दूसरे आदिवासी नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी भी देवघर सहित संथाल में घूम घूम कर अपना जनाधार दिल्ली को बता रहे हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सतर्क हैं। वो पहले ही दिल्ली जाकर गृहमंत्री अमित शाह से मिल आए हैं। इसके साथ ही वो देवघर आकर खुद प्रधानमंत्री के आगमन और बाबा दरबार में भक्तों के पहुंचने की तैयारियों का जायजा ले रहे हैं।

सियासी हलकों में चर्चा ए आम हो रही है कि झारखंड में शिबू सोरेन की पार्टी सीधे भाजपा के साथ जाती है तो राज्य की मुस्लिम आबादी और सक्रिय ईसाई मिशनरियों के नाराज होने का खतरा है जो इस समय उनके साथ हैं। ऐसे हालत में राज्य में कांग्रेस के मत प्रतिशत में बड़े उछाल की गुंजाइश पैदा हो जाएगी। लेकिन दूसरी ओर हेमंत सोरेन की व्यक्तिगत मजबूरियां ऐसी हो गयी हैं कि वो भाजपा के साथ जाने में अपनी भलाई देख रहे हैं। लिहाजा, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए एक तरफ कुंआ तो दूसरी तरफ खाई की नौबत बन गयी है।

हेमंत सोरेन का एक धर्मसंकट राष्ट्रपति का चुनाव भी है। भाजपा ने एक आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मु को अपना उम्मीदवार बनाया है जबकि विपक्ष की ओर से यशवंत सिन्हा उम्मीदवार हैं। दोनों का किसी न किसी रूप में झारखंड से जुड़ाव है। हेमंत सोरेन चाहकर भी अपने 30 विधायकों और 2 सांसदों को आदिवासी उम्मीदवार के खिलाफ मतदान के लिए नहीं कह सकते। कुर्सी बचाने के लिए अगर वो ऐसा करते हैं तो झारखंड मुक्ति मोर्चा में वंशवाद के खिलाफ भी वैसा ही बगावत का बिगुल बज सकता है जैसा महाराष्ट्र में बजा है।