अध्यक्ष बनते ही प्रदर्शन

बिरला फिर अध्यक्ष और मर्यादा की गुहार

नई दिल्ली। राजस्थान से भाजपा सांसद ओम बिरला दूसरी बार लगातार लोकसभा अध्यक्ष बने । इनसे पहले कांग्रेस से सांसद रहे बलराम जाखड़ ही दो बार लोकसभा अध्यक्ष रहे हैं, जिनके बेटे सुनील जाखड़ आजकल पंजाब में भाजपा के अध्यक्ष हैं । बिरला ने अध्यक्ष बनते ही संसदीय परंपरा का ध्यान रखने और संसद व सड़क के विरोध में अंतर रखने का आह्वान किया ।

जवाब में अखिलेश यादव ने भी सही कहा कि हमें उम्मीद है कि इस बार कोई निष्कासन नहीं होगा और विपक्ष की आवाज़ को दबाया नहीं जायेगा ! हम आपके सभी न्यायोचित निर्णयों‌ का स्वागत् करेंगे ! यह उम्मीद भी करते हैं कि आप केवल विपक्ष को ही नियंत्रण में नहीं रखेंगे ! यह अंतिम पंच लाइन कमाल की थी और‌ ओम बिरला के पिछले कार्यकाल की इमेज सामने रखने के लिए काफी थी !

विपक्ष के नेता चुने गये हैं कांग्रेस के राहुल गांधी, जो पहली बार किसी संवैधानिक पद पर पहुंचे हैं, वह भी वंशवाद के चलते नहीं, अपने संघर्ष के दम पर ! राहुल गांधी ने कहा कि उम्मीद है कि विपक्ष को भी बोलने का मौका देकर संविधान की रक्षा का दायित्व निभायेंगे अध्यक्ष महोदय !विपक्ष सदन चलाने में पूरा सहयोग करेगा पर यह भी जरूरी है कि विपक्ष को सदन के अंदर लोगों की आवाज़ उठाने का मौका मिले ।

इसके बावजूद जब ओम बिरला ने इमरजेंसी को लेकर प्रस्ताव रखा, तभी सदन में विरोध और प्रदर्शन के साथ साथ बहिष्कार भी हो गया ! इस तरह सदन स्थगित कर देने की नौबत आ गयी ! पद संभालते ही ओम बिरला ने प्रस्ताव पढ़ा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गयी 25 जून, 1975 को इमरजेंसी की निंदा की और सदस्यों से मौन रखने के लिए कहा ! इस पर विपक्ष ने विरोध किया और प्रदर्शन किया । इसके बाद कार्यवाही स्थगित कर दी गयी !

इसी बीच दिल्ली में ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता ने कहा कि मेरे पति पर ये तानाशाही इमरजेंसी की याद दिलाती है ! सीबीआई ने अरविंद केजरीवाल को‌ कल आबकारी नीति घोटाले में गिरफ्तार किया था और तीन दिन का रिमांड लिया था । इस तरह इमरजेंसी पर प्रस्ताव लाने वाले अध्यक्ष महोदय इस बयान पर भी संज्ञान लेंगे क्या ?

यह भी सामने आ रहा है कि अरविंद केजरीवाल का शूगर लेवल बढ़ गया है और आठ किलो वजन कम हो गया है, क्या यह इमरजेंसी जैसा सलूक नहीं हो रहा ? इमरजेंसी के किस्से दोहराने से पहले अपने गिरेबान में भी झांक कर देखना चाहिए कि नहीं ? पचास साल पूर्व की घोषित इमरजेंसी और दस साल की अघोषित इमरजेंसी में क्या फर्क है? मीडिया चुप, सौ सुख ! सोचिये तो सही !