नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज साइबर अपराध के शिकार लोगों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, को कानूनी सहायता प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया। देश में बढ़ती डिजिटल पहुंच के साथ-साथ साइबर अपराध की घटनाओं में वृद्धि का संज्ञान लेते हुए उन्होंने कहा कि यह एजेंसियों, जांचकर्ताओं, नियामकों और कानूनी समुदाय के लिए चिंता का एक नया क्षेत्र है, और इससे निपटने के लिए तकनीकी और मानवीय विशेषज्ञता विकसित करने का आह्वान किया।
नई दिल्ली के विज्ञान भवन में वैश्विक आतंकवाद निरोधक परिषद (जीसीटीसी) द्वारा आयोजित तीसरे साइबर सुरक्षा सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि निर्दोष लोगों को धोखेबाज तत्वों द्वारा ठगा जा रहा है, और उन्होंने देश के सुदूर कोने में भी डेटा सुरक्षा जागरूकता के महत्व पर जोर दिया।
वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी डिजिटल सोसाइटियों में से एक के रूप में भारत की प्रमुख स्थिति पर प्रकाश डालते हुए, श्री धनखड़ ने जोर देकर कहा कि भारत में 820 मिलियन से अधिक सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं और इसने 500 मिलियन से अधिक व्यक्तियों के लिए बैंकिंग समावेशन हासिल किया है। उन्होंने इस तथ्य की ओर भी ध्यान आकर्षित किया कि वर्ष 2023 तक वैश्विक डिजिटल लेन-देन में देश की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत होगी।
प्रौद्योगिकी की पहुंच सुनिश्चित करने में भारत की उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज दुनिया भारत में सेवा वितरण में प्रौद्योगिकी के बड़े पैमाने पर उपयोग को देखकर दंग है, निस्सन्देह गांव स्तर तक भी। उन्होंने कहा, “प्रौद्योगिकी आम आदमी के बीच एक प्रचलित शब्द बन रहा है, वह अपने लेन-देन को डिजिटल होने का आनंद लेता है।”
बाधाकारी प्रौद्योगिकियों की अपार संभावनाओं की चर्चा करते हुए, उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी प्रौद्योगिकी का न केवल अर्थव्यवस्था, व्यवसाय या व्यक्तिगत उत्पादकता पर बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी प्रभाव पड़ सकता है। यह कहते हुए कि इन उभरती प्रौद्योगिकियों से उत्पन्न चुनौतियों को अवसरों में बदला जाना चाहिए, श्री धनखड़ ने उनकी सकारात्मक क्षमता का दोहन करने के लिए प्रणालियों को अद्यतन करने का आह्वान किया। उन्होंने देश के लाभ के लिए इन प्रगतियों को एकीकृत करने के लिए सक्रिय उपायों की आवश्यकता पर भी जोर दिया