कहां जाकर रूकेगी नेपाल की सियासी खींचतान ?

प्रधानमंत्री ओली ने देश की प्रतिनिधि सभा को भंग कर दी। मामला सर्वोच्च कोर्ट में गया। वहां पीएम ओली की जवाब को लेकर राजनीति नए तेवर में दिख रही है। इस मामले की सुनवाई शुरू की है और 23 जून से मामले पर नियमित सुनवाई होगी।

काठमांडू। नेपाल की राजनीति में उठा बवंडर फिलहाल शांत होता नहीं दिख रहा है। बीते कुछ महीने से वहां की राजनीतिक गर्मी कम होने का नाम नहीं ले रही है। अब ताजा घटनाक्रम में प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) ने अपने सरकार के उस विवादास्पद निर्णय का बचाव किया है, जिसके तहत प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया गया है। इतना ही नहीं, ओली की ओर से उच्चतम न्यायालय को बताया कि प्रधानमंत्री नियुक्त करने की जिम्मेदारी न्यायपालिका के पास नहीं है। इसके पीछे तर्क दिया गया कि वह राज्य के विधायी और कार्यकारी कार्य नहीं कर सकती।

प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) की इस खबर को मीडिया और राजनीतिक गलियारों में आलोचना भी हो रही है। गौर करने योग्य यह है कि नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी (Vidya Devi Bhandari) ने प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर पांच महीने में दूसरी बार 22 मई को प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया और 12 तथा 19 नवंबर को चुनाव कराने की घोषणा की। इसके बाद मामला न्यायपालिका के पास गया था।

जब मामला उच्चतम न्यायालय में चला, तो प्रधानमंत्री ओली की ओर से लिखित जवाब में कहा गया कि प्रधानमंत्री नियुक्त करने का कार्य न्यायपालिका का नहीं है। बता दें कि न्यायालय ने नौ जून को प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रपति कार्यालय को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। इस नोटिस में स्पष्ट तौर पर 15 दिन के भीतर जवाब देने को कहा गया था।

नेपाली मीडिया में कहा गया कि देश के शीर्ष अदालत को बृहस्पतिवार को अटॉर्नी जनरल के कार्यालय के जरिए प्रधानमंत्री ओली का जवाब मिल गया है। और यह भी कहा गया है कि प्रधानमंत्री ओली (KP Sharma Oli) प्रतिनिधि सभा में विश्वासमत हारने के बाद अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 76 केवल राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का अधिकार प्रदान करता है। अनुच्छेद 76 (5) के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि सदन में विश्वासमत जीतने या हारने की प्रक्रिया की विधायिका या न्यायपालिका द्वारा समीक्षा की जाएगी।

अब देखना दिलचस्प होगा कि नेपाल की राजनीति विधायिका और न्यायपालिका के बीच किस करवट लेती है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) जनता के विश्वास के साथ न्यायालय के हिसाब से खरे उतरते हैं या नहीं ?