काशी-तमिल संगमम: एक शाश्वत संवाद

 

धर्मेंद्र प्रधान

जैसे ही प्रात:कालीन बेला में सूर्य देव की पहली किरण भारतीय उपमहाद्वीप पर पड़ती है, वह काशी के प्राचीन घाटों और तमिलनाडु के मंदिरों से भरे सुदूर तटों को एक ही सुनहरे रंग में आलोकित कर देती है। इनके अंतिम क्षणों में भारत अपने इस सबसे गहरे सत्य को प्रकट करता है कि हमारी भारतीय सभ्यता देश की शक्तिशाली नदियों की तरह ही अलगाव में नहीं, बल्कि निरंतर संवाद से आगे बढ़ता है। यही संवाद काशी-तमिल संगमम के विशिष्ट सांस्कृतिक आयोजन में अपनी समकालीन प्रतिध्वनि को प्राप्त करता है, जहां उत्तर भारत का आध्यात्मिक ज्ञान एक कालातीत संवाद के माध्यम से दक्षिण भारत की सांस्कृतिक समृद्धि को गले लगाता है।
भारतीय सभ्यता की कहानी उन नदियों के माध्यम से बुनी गई हैं जिन्होंने इसे पोषित किया है। यह गोदावरी के व्यापक विस्तार से लेकर गंगा के पवित्र प्रवाह तक और झेलम के पहाड़ी गीतों से लेकर ब्रह्मपुत्र की शक्तिशाली धारा तक समृद्ध हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मानते हैं कि ये नदियां केवल भूगोल नहीं हैं, बल्कि हमारी साझा चेतना के जीवंत प्रतीक हैं। उनके जल में उत्तर और दक्षिण की कृत्रिम संरचना ठीक वैसे ही विलीन हो जाती है, जैसे आदि शंकराचार्य की केरल से केदारनाथ तक की आध्यात्मिक यात्रा के दौरान यह विलुप्त हो गई थी।
प्राचीन भारत में शिक्षा और संस्कृति के दो महत्वपूर्ण केंद्रों- काशी और तमिलनाडु के बीच जीवंत संबंधों को पुनर्जीवित करने के लिए वर्ष 2022 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा परिकल्पित काशी-तमिल संगमम अपने तीसरे संस्करण को पूर्ण कर रहा है। यह भारत की संस्कृति की बारीक समझ को गहरा करने का प्रयास है जो यह दर्शाता है कि सांस्कृतिक रूप से भारत में अखंडता का एक विशिष्ट स्तर है। हमारे देश की क्षेत्रीय संस्कृतियां शायद ही कभी स्वायत्त रूप से विकसित हुई हैं। वे केवल हमारे राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता की अभिव्यक्ति के रूप में विकसित हुईं। यही कारण है कि स्पष्ट रूप से बहुत ही अलग लगने वाले हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत, या उत्तर और दक्षिण में संस्कृति के भिन्न प्रतीत होने वाले अन्य पहलू भी अनिवार्य रूप से एक ही हैं। भारत में यह सांस्कृतिक संश्लेषण किसी एक समय में नहीं, बल्कि कई शताब्दियों में सूक्ष्म लेकिन गहन तरीकों से हुआ है। धीमी गति से प्रसार ने हमारी क्षेत्रीय संस्कृतियों के साथ-साथ अखिल भारतीय संस्कृति की समृद्धि में योगदान दिया है। प्रयाग महाकुंभ और अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर के उद्घाटन के बाद फैली दिव्य आभा के साथ, काशी-तमिल संगमम दुर्लभ आध्यात्मिक ऊर्जा से स्पंदित हो रहा है। यह प्रतिभागियों को काशी, प्रयागराज और अयोध्या रूपी तीन महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्रों की धड़कनों का अनुभव करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है।
इस काशी-तमिल सांस्कृतिक संगम के केंद्र में महान ऋषि अगस्त्य हैं, जिनकी काशी से कावेरी तक की उल्लेखनीय यात्रा ने इन भूमियों के बीच एक स्थायी सेतु का निर्माण किया। काशी में अगस्त्येश्वर महादेव मंदिर इस ऋषि की विरासत का जीवंत प्रमाण है। सिद्ध चिकित्सा परंपरा की शुरुआत करने से लेकर सैकड़ों ऋग्वेदिक मंत्रों की रचना करने और भगवान राम को आदित्य हृदय स्तोत्र प्रदान करने तक अगस्त्य ऋषि की विरासत महज भूगोल की परिधि से परे है। यह प्राचीन ज्ञान हमारी समकालीन शिक्षा प्रणाली में एक नवीन अर्थ प्राप्त कर रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 आधुनिक शिक्षा के एक ऐसे संगम के रूप में उभरी है, जिसमें स्थानीय शिक्षा और शास्त्रीय भाषाओं पर इसका एकसाथ फोकस अगस्त्य ऋषि के प्राचीन ज्ञान के उस दृष्टिकोण को प्रतिध्वनित करता है जो अपनी जड़ों से जुडें होने के साथ ही साथ सार्वभौमिक भी है।
भारतीय ज्ञान प्रणालियों पर शोध से देश में सांस्कृतिक आदान-प्रदान के आकर्षक पैटर्न का पता चलता है। दरअसल, देश में जहां व्यापारिक मार्ग ज्ञान के राजमार्ग के रूप में भी काम करते हैं, वहीं तीर्थयात्रा मार्ग कलात्मक नवाचार के माध्यम बन गए। काशी तमिल संगमम की पहल इसी मूलभूत रहस्य को उजागर करने पर आधारित है। आईआईटी मद्रास प्रवर्तक टेक्नोलॉजीज फाउंडेशन ने ऑनलाइन कक्षाओं और वर्चुअल रियलिटी के उपयोग के माध्यम से उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा ले जाने के लिए ‘विद्या शक्ति’ के साथ भागीदारी की है। यह ग्रामीण छात्रों को उन्नत विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग व गणित (एसटीईएम) की शिक्षा प्रदान करता है, जो सहयोग की संभावित विशाल रूपरेखा में यह केवल एक धागा ही है।
काशी और तमिलनाडु के बीच संबंध गहरे और स्थायी हैं। तमिलनाडु में 450 से अधिक काशी विश्वनाथ मंदिरों की उपस्थिति केवल सांख्यिकीय सामान्य ज्ञान नहीं है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता की अंतर्निहित एकता का एक जीवंत प्रमाण है। सभी तीर्थस्थल तीर्थयात्रा, व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की अनगिनत कहानियों का प्रतिनिधित्व करते हैं और इन सबने मिलकर हमारे राष्ट्रीय चरित्र को सुंदर आकार दिया है। ये मंदिर न केवल पूजा स्थल के रूप में, बल्कि भारत की विविध परंपराओं को भव्य समग्रता से जोड़ने वाले एक पोर्टल के रूप में भी कार्य करते हैं।
प्राचीन तमिल कहावत “याधुम ऊरे यावरुम केलिर” का अर्थ है कि सभी स्थान हमारी मातृभूमि हैं, सभी लोग हमारे रिश्तेदार हैं। यह उक्ति भारत के वैश्विक दृष्टिकोण ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ यानि कि ‘दुनिया एक परिवार है’ में एक शक्तिशाली प्रतिध्वनि पाती है। हमारा यह प्राचीन दर्शन, जो कि राष्ट्रवाद की आधुनिक धारणाओं से पहले का है, भारत के समावेशी विकास और सांस्कृतिक सद्भाव के लिए एक ब्लूप्रिंट पेश करता है। यह हमें याद दिलाता है कि भारत की ताकत किसी थोपी गई एकरूपता में नहीं, बल्कि विविधता का जश्न मनाने में निहित है। यह मतभेदों को मिटाने में नहीं, बल्कि उस अंतर्निहित एकता को खोजने में है जो इन मतभेदों को सार्थक बनाती हैं।
काशी-तमिल संगमम का आयोजन अपने वार्षिक कैलेंडर की सीमाओं का अतिक्रमण करता है। यह आयोजन निरंतर संवाद और दोनों संस्कृतियों के बीच एक ऐसे जीवंत पुल का प्रतिनिधित्व करता है जो दैनिक आदान-प्रदान, शैक्षणिक सहयोग और आध्यात्मिक संबंधों से और मजबूत होता है। वर्ष भर के सभी छात्र विनिमय कार्यक्रमों, संयुक्त शोध पहलों और सांस्कृतिक प्रदर्शनों में देशवासी ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के दृष्टिकोण को साकार होते देखते हैं। जैसे-जैसे हम विकसित भारत 2047 की ओर बढ़ रहे हैं, यह सांस्कृतिक तालमेल और भी महत्वमय हो जाता है। मोदी सरकार का “विकास भी, विरासत भी” का विजन विकास के लिए रास्ते को भारतीय विरासत के ज्ञान से प्रकाशित होने पर जोर देती है। जिस तरह अगस्त्य ऋषि ने सदियों पहले ज्ञान के पुल बनाए थे, उसी तरह हमें भी अब अपने प्राचीन ज्ञान और आधुनिक आकांक्षाओं, देश की सांस्कृतिक जड़ों और तकनीकी भविष्य के बीच नए संबंध बनाने चाहिए।
काशी-तमिल संगमम का आयोजन हमें याद दिलाता है कि एक विकसित राष्ट्र बनने की हमारी यात्रा हमारे सभ्यतागत लोकाचार से अविभाज्य है। अब समय आ गया है कि हर भारतीय इस भव्य सांस्कृतिक पुनर्जागरण में न केवल भागीदार बने, बल्कि पथप्रदर्शक भी बने, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि भौतिक रूप से प्रगति करते हुए भी हम अपनी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक नींव पर टिके रहें। वास्तव में, इस संतुलन में ही भारत के भविष्य का वह सच्चा सार निहित है, जिसमें हमारी आकांक्षा है एक ऐसे विकसित भारत के पुनर्निर्माण की, जो न केवल आर्थिक ताकत से, बल्कि अपनी सांस्कृतिक एकता की स्थायी ताकत से भी विश्व में सर्वोच्च शिखर पर खड़ा हो।
काशी-तमिल संगमम हमारे समाज के सांस्कृतिक मूल को पुनः प्राप्त करे और ‘भारत को फिर से महान बनाने’ में मदद करे!

(लेखक, केंद्रीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार व्यक्त किए गए विचार निजी हैं।)