इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति चयन प्रक्रिया में खुलेआम गड़बड़झाला

नई दिल्ली।  देश की राजधानी स्थित देश के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में कुलपति चयन में अपनाई गई प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। देश भर के उच्च शिक्षण संस्थानों को पारदर्शिता और शुचिता का पाठ पढ़ाने वाले भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की नाक के नीचे इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति सर्च एवं सिलेक्शन की प्रक्रिया में नियमों का मखौल उड़ाया जा रहा है। जहां कुलपति के पद का उम्मीदवार अपने चयन की सर्च एंड सिलेक्शन कमेटी के सदस्यों के नाम तय करने वाली बैठक का हिस्सा बना रहा यानी जब समिति में अपने चहेते होंगे तभी तो स्वयं का सिलेक्शन होगा। लेकिन भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय व विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और इससे जुड़े देश के नीति निर्धारण करने वाले लोग चुप्पी लगाकर मस्त बैठे हुए हैं कि जब तक कोई शिकायत आएगी तब तक तो हमारा कुलपति सेट हो जाएगा।
कहानी बताने से पहले उसके किरदारों का आप सभी से परिचय जरूरी है। क्योंकि इस पूरे खेल को समझने और उनकी संदिग्ध भूमिका को चिन्हित करने मदद मिलेगी। 01. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की कुलपति पद की रेस में शामिल नाम प्रो. उमा कांजीलाल जो वर्तमान में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की प्रभारी कुलपति हैं। 02. प्रो. मनोज दीक्षित, बीकानेर विश्वविद्यालय, अयोध्या के डॉ रामनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के कुलपति रहते हुए साहब पर नियुक्ति में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप रहे हैं। 03. प्रो. के.पी. सिंह, बरेली विश्वविद्यालय इनके अकादमिक जीवन में वीबीएस पूर्वांचय विश्वविद्यालय सहित भ्रष्ट्राचार के कई गंभीर आरोप रहे हैं 04. प्रो. त्रिवेणी दत्त, बरेली कृषि विश्वविद्यालय और 05. प्रो. ई. सुरेश कुमार आईआईएफएल, हैदराबाद। इतने तेजस्वी और युवा उम्मीदवारों को शॉर्ट लिस्ट किया गया है कि इन पर पूर्व में लगे आरोपों से अकादमिक आसमान और प्रकाशमान हो जाएगा।
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अब जरा इन्हें सिलेक्ट करने वालों के नाम भी देख लीजिए, सर्च एवं सिलेक्शन कमेटी में 01. जी. सतीश रेड्डी, पूर्व चेयरमेन डीआरडीओ (जो कभी भी किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नहीं रहे) नियमों के अनुसार सर्च एंड सिलेक्शन कमेटी का चेयरमेन प्रोफेसर होगा। कहां है शिक्षा मंत्रालय, कहां है यूजीसी और कहां है नियमों का ढिंढोरा पीटने वाले। 02. प्रो. भारत भास्कर निदेशक आईआईएम अहमदाबाद 03. प्रो. के.एन. सिंह कुलपति साउथ बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय पर खुलेआम ठाकुरों का पक्ष लेने का आरोप खुलेआम है।
कहानी को परत दर परत समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर किस प्रकार अकादमिक फ्राड अंजाम दिया जाता है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति पद के लिए प्रक्रिया के तहत सर्च एंड सिलेक्शन कमेटी के नामों पर चर्चा हेतु बैठक हो रही थी। बैठक में कुलपति पद के दो उम्मीदवार प्रो. उमा कांजीलाल प्रभारी कुलपति और प्रो. चंदन भास्कर शामिल थे। ऐसी बैठकों में सदाचरण और अनुशासन का यह साधारण नियम है कि जब ऐसी परिस्थिति होगी तब उम्मीदवार सदस्य बैठक छोड़कर बाहर चला जाएगा और उसके हित से जुड़े हुए प्रकरण के निपटारे के बाद वो दोबारा बैठक का हिस्सा होगा। इस दौरान उम्मीदवार होने के चलते प्रो. चंद्र भूषण शर्मा ने सदाचरण का परिचय दिया और बैठक से बाहर आ गये लेकिन कुलपति पद की उम्मीदवार होने के बावजूद प्रो. उमा कांजीलाल बैठक में बनी रहीं। क्योंकि वो सभी गोटियां अपने मुताबिक सेट करना चाहती थीं।
नियमों की कैसे धज्जियां उड़ाई सकती हैं इसका सबसे उपयुक्त उदाहरण है इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय कुलपति चयन प्रक्रिया। कुलपति के सर्च एंड सिलेक्शन कमेटी का चेयरमेन प्रोफेसर होना चाहिए लेकिन वैज्ञानिक जी. सतीश रेड्डी इस योग्यता को पूरा नहीं करते। उनकी योग्यता पर सवाल नहीं है। सवाल है मूलभूत आर्हता पर। जब किसी क्षेत्र विशेष हेतु आप एलिजेबल ही नहीं हैं तो कैसे पद ले लिया।
खैर, इन बातों का मंत्रालय और यूजीसी पर क्या असर होगा यह तो कह पाना मुश्किल है क्योंकि सर्च एंड सिलेक्शन कमेटी के योग्यता ही सदस्यों का चयन और आरोपों के प्रमाण-पत्र लेकर घूम रहे दिल्ली दरबार के घुम्मकड़ों की फेहरिस्त लंबी है। वैसे आपको बताते चलें कि कुलपति पद के लिए सर्च एंड सिलेक्शन कमेटी का पैनल 19-20 अक्टूबर, 2024 को ही बन गया था लेकिन इसे एक महीने तक दबाकर रखने के बाद 20 नवंबर, 2024 को जमा किया गया। सवाल फिर वही कि आखिर लिफाफा एक महीने तक किसके आदेश या निर्देश का इंतजार कर रहा था। कहीं इस पूरे खेल में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति जिनका अभी कुछ समय ही कार्यकाल पूरा हुआ है का दिमाग तो नहीं दौड़ रहा है। दिल्ली के मैदान गढ़ी में स्थित इस विश्वविद्यालय के मैदान पर वो अपना ही कोई चहेता चाहते हों ताकि उनके कार्यकाल में हुआ कारनामों की फाइलें महफूज रहें।