प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत की पर्यावरणीय दृष्टि में हो रहा है बड़ा बदलाव

 

डॉ धनंजय गिरि

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व वन्यजीव दिवस के अवसर पर ग्रह की अद्भुत जैव विविधता के संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने एक्स पर लिखा, “आज विश्व वन्यजीव दिवस पर आइए, हम अपने ग्रह की अविश्वसनीय जैव विविधता की रक्षा और संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराएं। प्रत्येक प्रजाति की अपनी अनूठी भूमिका होती है। आइए, हम आने वाली पीढ़ियों के लिए इस धरोहर को सुरक्षित रखें। भारत द्वारा वन्यजीव संरक्षण में दिए गए योगदान पर हमें गर्व है।”

प्रधानमंत्री मोदी की वन्यजीवों के प्रति रुचि जगजाहिर है। इस अवसर पर उन्होंने अपने गृह राज्य गुजरात के गिर वन्यजीव अभयारण्य में जंगल सफारी का आनंद लिया और एशियाई शेरों को नजदीक से देखा। इस दौरान वे डीएसएलआर कैमरे से शेरों की तस्वीरें खींचते नजर आए, जिसमें एक दिलचस्प क्षण तब कैद हुआ जब एक मादा शेरनी अपने शावक को दुलार रही थी।

उन्होंने एक्स पर एक वीडियो क्लिप भी साझा की, जिसमें भारत की जैव विविधता के प्रति स्वाभाविक लगाव को दर्शाया गया था। यह क्लिप 2023 की है, जब कर्नाटक के मैसूर में “प्रोजेक्ट टाइगर” की 50वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री ने भारत में बाघों की बढ़ती आबादी पर प्रकाश डाला था। उन्होंने कहा था कि “भारत पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के बीच संघर्ष में विश्वास नहीं करता, बल्कि सह-अस्तित्व को समान महत्व देता है।”

मोदी सरकार के कार्यकाल में बाघ संरक्षण में ऐतिहासिक सफलता मिली है। 2010 में भारत में लगभग 1,700 बाघ थे, जबकि 2022 में यह संख्या 3,600 से अधिक हो गई। महज 12 वर्षों में बाघों की संख्या दोगुनी हो चुकी है। आज, दुनिया के लगभग 75% बाघ भारत में पाए जाते हैं, जो वैश्विक स्तर पर वन्यजीव संरक्षण की एक बड़ी सफलता है।

सरकार द्वारा बाघों के शिकार पर सख्त प्रतिबंध लगाए गए, उनके प्राकृतिक आवासों को सुरक्षित किया गया और उनके आहार चक्र को संतुलित बनाए रखने के प्रयास किए गए। इसके अलावा, ग्रामीण इलाकों में मानव-बाघ संघर्ष को कम करने के लिए भी कदम उठाए गए।

प्रधानमंत्री मोदी का गिर अभयारण्य का दौरा इस बात को भी रेखांकित करता है कि भारत में न केवल बाघ, बल्कि शेरों की आबादी भी बढ़ी है। भारत में शेरों का संरक्षण सांस्कृतिक और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि शेर राष्ट्रीय प्रतीक का एक अभिन्न हिस्सा हैं। एशियाई शेर केवल गुजरात के गिर जंगलों में पाए जाते हैं, जहां संरक्षण प्रयासों के कारण 2015 में इनकी संख्या 523 थी, जो 2020 में बढ़कर 674 हो गई।

सरकार द्वारा प्रोजेक्ट लॉयन के तहत शेरों के संरक्षण के लिए 2900 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की गई है। गुजरात के नौ जिलों के 53 तालुका क्षेत्रों में लगभग 30,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में शेरों का निवास है। इस परियोजना के तहत, गिर में उच्च-तकनीक निगरानी केंद्र और एक अत्याधुनिक अस्पताल स्थापित किया गया है।

अप्रैल 2023 में शुरू किया गया इंटरनेशनल बिग कैट्स एलायंस वैश्विक स्तर पर शेरों सहित बड़ी बिल्लियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इतिहास में देखा जाए तो तीन लाख वर्ष पहले शेर अफ्रीका और यूरेशिया के विभिन्न हिस्सों में पाए जाते थे, लेकिन अब इनकी संख्या 30,000 से 1,00,000 के बीच सीमित रह गई है।

गिर वन्यजीव अभयारण्य एशिया में शेरों के एकमात्र प्राकृतिक आवास के रूप में प्रसिद्ध है। यह अभयारण्य 1424 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जिसमें 258 वर्ग किलोमीटर का राष्ट्रीय उद्यान और 1153 वर्ग किलोमीटर का वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र शामिल है। इसे 1969 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था।

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा वन्यजीव संरक्षण को दी जा रही प्राथमिकता भारत की पर्यावरणीय नीतियों में बड़ा बदलाव दर्शाती है। बाघों और शेरों की बढ़ती संख्या यह प्रमाणित करती है कि सरकार और समाज के सामूहिक प्रयासों से जैव विविधता की रक्षा संभव है। प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट लॉयन जैसे कदम भारत को वन्यजीव संरक्षण में वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर कर रहे हैं।

(लेखक संघ से जुड़े विचारक हैं।)