सीता : मिथिला की नारी शक्ति का अमर प्रतीक

 

कुमकुम झा

मिथिला की धरती सदा से विद्या, संस्कृति और नैतिकता की गंगा बहाती रही है। यही वह पुण्य भूमि है जहाँ माता सीता ने जन्म लिया — वही जनकनंदिनी, जिन्होंने नारी शक्ति को अमर प्रतिमान बना दिया।
सीता नवमी, जो वैशाख शुक्ल नवमी को मनाई जाती है, केवल एक जन्मतिथि नहीं, बल्कि नारी गरिमा, धैर्य और संकल्प का उत्सव है।

मिथिला के जन-जन का गौरव है कि सीता जैसी साध्वी और तेजस्विनी इस भूमि पर अवतरित हुईं। जिन्होंने अपने तप, त्याग और सत्यनिष्ठा से नारी के असली स्वरूप को संसार के सामने रखा। वे केवल राम की संगिनी नहीं, बल्कि रामकथा में आत्मबल और स्वाभिमान की जीवंत प्रेरणा हैं।

माता सीता का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष और संकल्प की पाठशाला है। स्वयंवर में साहसपूर्वक निर्णय लेकर राम का वरण करना, राजमहल का वैभव छोड़कर वनवास का वरण करना, और लंका में रावण की कैद में रहकर भी अपनी मर्यादा की रक्षा करना — ये सब उनके अद्वितीय आत्मबल के प्रमाण हैं।

सीता ने यह सिखाया कि सहनशीलता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि वही नारी की सबसे बड़ी ताकत है। विपरीत परिस्थितियों में भी वे अडिग रहीं, और राम की विजय का मार्ग प्रशस्त किया। उनका जीवन हर नारी के लिए संदेश है कि कठिनाई चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, धैर्य और आत्मबल से उसे पराजित किया जा सकता है।

आज भी मिथिला की महिलाएँ अपने भीतर सीता की शक्ति को अनुभव करती हैं। घर-परिवार से लेकर शिक्षा, कला और समाज सेवा तक, मिथिला की स्त्रियाँ हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का परचम लहरा रही हैं।

मधुबनी चित्रकला, जो आज अंतरराष्ट्रीय पहचान पा चुकी है, सीता-राम की कथाओं से ही पुष्पित-पल्लवित हुई। मिथिला की लोकगायिकाएँ आज भी गीतों में जनकदुलारी की गाथा को जीवित रखे हुए हैं। शिक्षा और प्रशासन में मिथिला की बेटियाँ डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापक, अधिकारी बनकर अपने सामर्थ्य का परिचय दे रही हैं।

वर्तमान समय में जब नारी अधिकार और आत्मसम्मान की आवाज बुलंद हो रही है, सीता जी का आदर्श हमें नयी दिशा देता है। वे केवल करुणा और कोमलता का ही नहीं, बल्कि संकल्प और धर्मरक्षा की शक्ति का भी प्रतीक हैं।

आज की मिथिला की स्त्री जानती है कि उसकी गरिमा शिक्षा, आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास में निहित है। सीता का रूप — कभी त्यागमयी गृहिणी, तो कभी संकट में अडिग योद्धा — हर स्त्री को भीतर से सशक्त बनाता है।

सीता नवमी केवल मिथिला में नहीं, बल्कि नेपाल और उत्तर भारत में भी हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। यह पर्व सामाजिक एकता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बन चुका है। जनकपुर से लेकर दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी तक लोग मिलकर सीता-राम के विवाह उत्सव का पुनर्निर्माण करते हैं और नारी गरिमा का अभिनंदन करते हैं।

यह पर्व हमें जोड़ता है, समेटता है और हमारी साझा संस्कृति को और अधिक सुदृढ़ बनाता है। माता सीता मिथिला की ही नहीं, सम्पूर्ण मानवता के लिए आत्मबल और नारी गरिमा की प्रेरणा हैं। आज सीता नवमी के अवसर पर हम सबका यह कर्तव्य है कि हम अपनी बेटियों की शिक्षा, आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान की राह को और मजबूत करें। मिथिला की स्त्रियों में जो सृजनशक्ति, धैर्य और संस्कार हैं, वे इस मातृशक्ति के नवजागरण में सबसे अहम भूमिका निभा सकते हैं। आइए, माता जानकी के चरणों में नमन करते हुए हम संकल्प लें कि हम नारी गरिमा को समाज में सर्वोच्च स्थान दिलाएँगे।


(लेखिका, शिक्षिका एवं मिथिला संस्कृति की साधिका)