देहरादून। मानसून आने से पहले ही उत्तराखंड में सियासी उफान आ गया है। अब तक नदियों में उफान को राज्य के लोग देख रहे थे। इस बार महज चार महीने बाद वही सवाल उत्तराखंड के सामने आ गया है कि राज्य का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा ? शुक्रवार को नाटकीय घटनाक्रम में तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया है। उसके बाद से राज्य के विधायकों और मंत्रियों में से संभावित नाम तलाशे जा रहे हैं, लेकिन अंतिम निर्णय दिल्ली को करना है। जिस प्रकार से तीरथ सिंह रावत को तमाम विधायकों से उपर ला दिया गया, ऐसे में यदि दिल्ली अपनी पसंद का नाम घोषित करें, तो आश्चर्य नहीं है।
देहरादून की सियासी गलियारों में संभावित मुख्यमंत्रियों के नाम के रूप में राज्य के शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। इनका नाम चार महीने पहले उस समय भी चला था, जब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने पद से त्यागपत्र दिया था। उस समय दिल्ली की ओर से तीरथ सिंह रावत को हरी झंडी मिली और 10 मार्च को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
उत्तराखंड की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि धन सिंह रावत संघ के संस्कार से आते हैं। इसके साथ ही राज्य के कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत, हरक सिंह रावत और सतपाल महाराज की जमीनी पकड़ मायने रखती है। आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा इनके प्रभाव वाले क्षेत्र को नाराज नहीं करना चाहेगी। सूत्रों का कहना है कि भाजपा में जिसका नाम सीएम पद के लिए जोरों से चलता है, उसके हिस्से में कुर्सी नहीं आती है। ऐसे में किसी और को सीएम बना दिया जाए तो किसी को हैरत नहीं होना चाहिए।
असल में, संवैधानिक नियमों के तहत तीरथ सिंह रावत को 10 सितंबर तक विधानसभा का सदस्य बनना था। राज्य में विधानसभा की दो सीटें गंगोत्री और हल्द्वानी खाली हैं, जहां उपचुनाव होना है। यहां से ये चुनाव में आ सकते थे। वैसे, राज्य में अगले साल फरवरी-मार्च में ही विधानसभा चुनाव होना है। ऐसे में केंद्रीय चुनाव आयोग की अनुशंसा पर यह राज्य चुनाव आयोग पर निर्भर करता कि वो उपचुनाव कराती है या नहीं। यदि उपचुनाव नहीं होता, तो संवैधानिक संकट खड़ा होता। इसलिए तीरथ सिंह रावत ने त्यागपत्र दिया है।