संसदीय समिति की चिंता, बच्चों के लिए बेहद खतरनाक है लगातार स्कूल बंद होना

देश के भविष्य की चिंता सभी को है। बच्चों के स्कूल करीब डेढ़ साल तक बंद रहे हैं। इसकी चिंता अभिभावकों के साथ अब संसदीय समिति ने भी जताई है। अब देखिए आगे सरकार क्या निर्णय सुनाती है ?

नई दिल्ली। करीब पौने दो साल का समय होने को है। बच्चों के स्कूल कोरोना महामारी के कारण बंद है। अभिभावक परेशान हैं। बच्चे भी घर पर रहकर बोर हो रहे हैं। देश के कई नामी-गिरामी डॉक्टरों ने भी इसको लेकर चिंता जताई है। अब संसदीय समिति ने भी इस परिस्थिति पर चिंता जताई है। संसदीय समिति ने साफ तौर पर कहा कि स्कूलों को बंद रखने के परिणामों की अनदेखी करना बहुत गंभीर है। स्कूलों को फिर से खोलना छात्रों के लिए फायदेमंद हो सकता है।

सांसद विनय पी. सहस्रबुद्धे शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष हैं, जिन्होंने हाल ही में अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की। समिति के मुताबिक जब से स्कूल बंद हुए हैं, तब से परिवारों के सामाजिक ताने-बाने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके अलावा घर के कामों में बच्चों की भागीदारी भी बढ़ी है। सबसे जरूरी मुद्दा बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य है, जिस पर स्कूल बंद होने की वजह से गहरा प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे में स्कूल नहीं खोलने के खतरे की अनदेखी नहीं की जा सकती है।

संसदीय समिति ने स्कूल को खोलने के कुछ अहम सुझाव भी दिए हैं। सभी छात्रों, शिक्षकों और उनसे जुड़े कर्मचारियों को पूरी तरह से वैक्सीनेट कर दें, ताकि संक्रमण का खतरा कम रहे। छात्रों की संख्या को दो भागों में बांटकर दो पालियों में क्लास चलवाना। मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग को अनिवार्य कर देना। उपस्थिति के वक्त थर्मल स्क्रीनिंग, सेनेटाइजर की व्यवस्था करना। इसके अलावा जिनके अंदर लक्षण हों, उन्हें अलग कर देना। मौजूदा वक्त में छोटे बच्चे घर की चार दीवारी में कैद हैं, ऐसे में स्कूल ना जा पाने की वजह से माता-पिता और बच्चों के संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।