नई दिल्ली। आयुष मंत्रालय के अंतर्गत केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (सीसीआरएएस) ने पारंपरिक चिकित्सा में देश की समृद्ध विरासत को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए दो दुर्लभ और महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक पांडुलिपियों – द्रव्यरत्नाकरनिघण्टुः और द्रव्यनामाकरनिघण्टुः को पुनर्जीवित किया है।
इन प्रकाशनों का अनावरण मुंबई में राजा रामदेव आनंदीलाल पोदार (आरआरएपी) केंद्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान किया गया। इस कार्यक्रम में केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के महानिदेशक प्रोफेसर वैद्य रविनारायण आचार्य उपस्थित थे। उन्होंने पारंपरिक आयुर्वेदिक साहित्य के अनुसंधान, डिजिटलीकरण और पुनरुद्धार में ‘केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, आयुष मंत्रालय की गतिविधियों’ पर मुख्य भाषण भी दिया।
मुंबई के प्रसिद्ध पांडुलिपिविज्ञानी और अनुभवी आयुर्वेद विशेषज्ञ, डॉ. सदानंद डी. कामत द्वारा पांडुलिपियों का आलोचनात्मक संपादन और अनुवाद किया गया था। विमोचन समारोह में श्री रंजीत पुराणिक, अध्यक्ष, आयुर्वेद प्रसारक मंडल और प्रबंध निदेशक, श्री धूतपेश्वर लिमिटेड सहित; डॉ. रवि मोरे, प्राचार्य, आयुर्वेद महाविद्यालय, सायन; आयुर्वेद प्रसारक मंडल से डॉ. श्याम नाबर और डॉ. आशानंद सावंत; और डॉ. आर. गोविंद रेड्डी, सहायक निदेशक (आयु), सीएआरआई, मुंबई के गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित रहें।
प्रो. वैद्य रविनारायण आचार्य ने अपने भाषण में भारत के प्राचीन ज्ञान को समकालीन शोध ढांचों के साथ जोड़ने में इस तरह के पुनरुद्धार के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि “ये ग्रंथ केवल ऐतिहासिक कलाकृतियां नहीं हैं – वे जीवित ज्ञान प्रणालियां हैं जो सोच-समझकर अध्ययन और लागू किए जाने पर समकालीन स्वास्थ्य सेवा दृष्टिकोण को बदल सकती हैं”।
इन महत्वपूर्ण संस्करणों से छात्रों, शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और आयुर्वेद चिकित्सकों के लिए अमूल्य संसाधन के रूप में काम करने की उम्मीद है। यह विद्वानों के अन्वेषण और देश के शास्त्रीय चिकित्सा साहित्य के साथ गहन जुड़ाव को प्रेरित करेंगे।