लखनऊ। देश के लगभग हर मत पंथ संप्रदाय के मानने वालों का अयोध्या से गहरा नाता रहा है। विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री विनोद बंसल ने कहा कि बात चाहे जैन मुनियों की हो या सिख समाज से जुड़े धर्म गुरुओं की, बौद्ध समाज की हो या आर्य समाज की, सभी के महा पुरुष अयोध्या से गहरे जुड़े रहे। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने तो चारों वेदों की ‘ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका’ नामक अमर ग्रंथ की रचना ही अयोध्या के सरयू तट पर की थी। आर्य समाज के लिए भी वह किसी तीर्थ से कम नहीं है।
रविवार को लखनऊ के इंदिरा नगर स्थित आर्य समाज मन्दिर में ‘राष्ट्रोत्थान में आर्य समाज के नियमों की उपादेयता’ विषय पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने यह भी कहा कि आर्य समाज के 10 नियमों में से आधे से अधिक ‘सत्य’ मार्ग पर चलना सिखाते हैं। उसी सत्य की पुन: प्रतिष्ठार्थ राम भक्तों ने गत 5 शताब्दियों तक संघर्ष किया, बलिदान दिए और अनेक बार जय-पराजय के बाबजूद श्री राम जन्मभूमि पर अपना दावा कभी नहीं छोड़ा। यही सत्यनिष्ठा, श्री राम के आदर्श और धर्म की पुनर्स्थापना का सामाजिक संकल्प ही 22 जनवरी को अयोध्या में राम लला को अपने मूल भव्य गर्भ गृह में विराजमान करेगा।
इस पावन दिवस के महा अनुष्ठान में विश्व के 50 करोड़ से अधिक राम भक्त प्रत्यक्ष व परोक्ष रुप से सहभागी होकर राम मन्दिर को एक महान राष्ट्र मन्दिर बनाएंगे। जन्मभूमि मन्दिर के लिए हुए संघर्ष में 6 करोड़ से अधिक, निधि समर्पण अभियान में 63 करोड़ से अधिक लोगों की सहभागिता ने ही इसे विश्व का सबसे बड़ा जनांदोलन व जन जागरण अभियान बनाया तथा बजरंग दल व दुर्गा वाहिनी जैसे संगठनों को जन्म दिया। अब 22 जनवरी का यह कार्यक्रम भी विश्व का सबसे बड़ा अनुष्ठान बनने जा रहा है।
इस अवसर पर जिला आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान पू स्वामी वेदामृतानंद सरस्वती, उप प्रधान अभियंता श्रीमती कांति कुमार, आर्य समाज इंदिरा नगर के प्रधान श्री अक्षय भाई व उपमंत्री श्री देशबंधु ने श्री बंसल को साफा-चुंदड़ी पहना कर शौर्य की प्रतीक तलवार भेंट की।
कार्यक्रम में यज्ञ के बाद आचार्य शुचिषद् मुनि, दर्शनाचार्या विमलेश आर्या व दार्शनिक विद्वान डॉ रूपचंद ‘दीपक’ के प्रवचन तथा भजनोपदेशक अलका आर्या व कुमारी मुदिता के भजनों ने उपस्थित जन समूह को मंत्र मुग्ध कर दिया।