संविधान हत्या दिवस घोषित कर कांटे से कांटा निकालने की कोशिश कर रही बीजेपी

 

नई दिल्ली। केंद्र की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अब कांटे से कांटा निकालने की रणनीति पर अमल करती हुई दिख रही है । बीते लोकसभा चुनाव से शुरू हुई संविधान की लड़ाई अब शासनादेश का शक्ल लेती दिख रही है। भाजपा सरकार ने 11 जुलाई को एक आदेश जारी करते हुए कहा कि अब हर 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाया जायेगा। आखिर भाजपा को बीते 1० सालों के शासन में भी संविधान की हत्या का ख्याल क्यों नहीं आया, जबकि वो बीते दो सरकारों में ज्यादा मजबूत थी। लेकिन इस बार भाजपा ने ‘संविधान हत्या दिवस के पीछे की रणनीति अपनाकर लोकसभा चुनाव में अपनी कम हुई साख को फिर से मजबूत करने की कोशिश में तेजी से जुट गई है। उसे लगता है कि विपक्ष के, खासकर संविधान के मुद्दे को जितना और जितनी जल्दी कुंद किया जाए, पार्टी के भविष्य के लिए उतना ही फायदेमंद होगा।
बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ’37० पार’ का नारा लगाया था, लेकिन जब नतीजे आए तो 24० के आंकड़े पर ही फुलस्टॉप लग गया। अनुमान से 1०० सीटें कम मिलने के बाद बीजेपी में इसको लेकर कई दौर के मंथन हुए। इनमें से एक मुद्दा जिस पर सबसे ज्यादा चर्चा हुई वो था ‘संविधान’। इसी एक मुद्दे को विपक्ष ने चुनाव में जमकर भुनाया था। कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के अन्य दलों ने लोगों को बताया कि बीजेपी 4०० सीटें इसीलिए मांग रही है, क्योंकि वो संविधान बदलना चाहती है। बीजेपी ‘संविधान हत्या दिवस’ के जरिए इसी मुद्दे की काट खोजने में जुटी है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि संविधान हत्या दिवस मनाया जाना हमें याद दिलाएगा कि जब संविधान को रौंदा गया था, तो क्या हुआ था। अधिसूचना में लिखा गया है, ’’25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा की गई थी, उस समय की सरकार ने सत्ता का घोर दुरुपयोग किया था और भारत के लोगों पर ज्यादतियां और अत्याचार किए थे। भारत के लोगों को देश के संविधान और भारत के मजबूत लोकतंत्र पर दृढ़ विश्वास है। इसलिए, भारत सरकार ने आपातकाल की अवधि के दौरान सत्ता के घोर दुरुपयोग का सामना और संघर्ष करने वाले सभी लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ घोषित किया है और भारत के लोगों को भविष्य में किसी भी तरह से सत्ता के घोर दुरुपयोग का समर्थन नहीं करने के लिए पुन: प्रतिबद्ध किया है।’
मालुम हो कि राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव के दौरान संविधान को हाथ में लेकर प्रचार किया और लोगों को समझाने की कोशिश की थी कि बीजेपी अगर दो तिहाई बहुमत से सत्ता में आती है तो बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के बनाए संविधान को बदल देगी। राहुल ने सांसद रहे अनंत हेगड़े और फैजाबाद से सांसद रहे लल्लू सिह जैसे बीजेपी के कई नेताओं के बयान का जिक्र करते हुए लोगों को अपने पक्ष में लागे की कोशिश की औऱ नतीजों में फायदा भी होता साफ दिखा। संविधान को बचाने और दलित तथा पिछड़े मतदाताओं को अपनी ओर खींचने में कामयाब रही विपक्ष के इस नारे से बीजेपी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा और उसकी खुद के दम पर स्पष्ट बहुमत की सरकार नहीं बन पायी। वहीं लोकसभा में भी इंडिया गठबंधन के सांसदों ने संविधान हाथ में लेकर सदन की सदस्यता की शपथ ली और नारे लगाए। विपक्ष के इसी नैरेटिव को सफल होता देख बीजेपी सावधान हुई। बीजेपी विपक्ष के संविधान के मुद्दे को कमजोर करने को लेकर पहले लोकसभा के अंदर आपातकाल को लेकर निदा प्रस्ताव लायी और अब केंद्र सरकार ने हर साल 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाने की घोषणा कर दी। इससे बीजेपी के संविधान बदलने के विपक्ष के नैरेटिव को नुकसान हो सकता है, क्योंकि हर साल अब कांग्रेस को आपातकाल को लेकर 25 जून टीस की तरह चुभेगा। ‘संविधान हत्या दिवस’ के जरिए देश भर में बीजेपी कई बड़े आयोजन करेगी और आपातकाल के घाव को हरा कर देश को ये याद दिलाएगी कि कैसे 1975 में इंदिरा गांधी ने नियम और संविधान को ताख पर रखकर आपातकाल लागू किया था और इससे लोगों को दमन का सामना करना पड़ा था।

विपक्ष के इस बार मजबूती से वापसी करने के बाद से बीजेपी भी माहौल को पूरी तरह भांप चुकी है और इसीलिए सतर्क नजर आने लगी है। वो जानती है कि लोकसभा चुनाव में हुए नुकसान की भरपाई करनी है तो नए सिरे से और तेजी से रणनीति के तहत काम में जुट जाना है, इसमें किसी तरह की कोई चूक की गुंजाइश नहीं रहे। बीजेपी विपक्ष को खासकर कांग्रेस को उसके ही उठाए मुद्दों में ही उलझाना चाहती है. बीजेपी यह भी जानती है कि कांग्रेस पर आपातकाल के जो धब्बे लगे हैं वो इतनी जल्दी धूमिल होने वाले नहीं है। ऐसे में क्यों न ‘संविधान हत्या दिवस’ को संविधान बदलने वाले नारे के काट के रूप में इस्तेमाल किया जाए। आने वाले समय में महाराष्ट्र,हरियाणा समेत तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में बीजेपी की पूरी कोशिश यही है कि वो किसी भी तरह से विपक्ष के संविधान बदलने वाले नारे का तोड़ निकाल सके। इसके लिए फिलहाल उसके पास इमरजेंसी से बड़ा कोई मुद्दा नहीं था क्योंकि कहीं न कहीं यह भी संविधान से ही जुड़ा हुआ है। बीजेपी इसमें कितना सफल रहती है ये तो आने वाला समय ही बताएगा।